वाल्मीकि नगर में कांग्रेस का ब्राह्मण कार्ड, जातीय समीकरण और युवा चेहरे पर भरोसा
पटना। बिहार के वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट के लिए कांग्रेस ने न केवल ब्राह्मण कार्ड खेला है बल्कि नये चेहरे को भी मौका दिया है। इस सीट पर मशहूर राजनीतिक घराने के शाश्वत केदार को मैदान में उतारा गया है। शाश्वत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय के पोता और पूर्व सांसद मनोज पांडेय के पुत्र हैं। वे अभी 36 साल के हैं और कांग्रेस की युवा इकाई में सक्रिय रहे हैं। उनका मुकाबला जदयू के सीनियर लीडर बैद्यनाथ प्रसाद महतो से है।
कांग्रेस का ब्राह्मण कार्ड
बिहार में वाल्मीकि नगर ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां ब्राह्मण वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। इस क्षेत्र में ब्राह्मण वोटर करीब 2 लाख 15 हजार हैं। इसके बाद थारू जनजाति और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब दो-दो लाख है। कुशवाहा वोट करीब एक लाख 26 हजार हैं। यहां यादव वोटरों की संख्या करीब एक लाख 10 हजार है। यानी यह ब्राह्मण बहुल क्षेत्र है। कांग्रेस ने जातीय समीकरण को ध्यान में रख ही शाश्वत केदार को उम्मीदवार बनाया है। पिछले चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीतने वाले सतीश चन्द्र दूबे ब्राह्मण जाति से ही हैं। केदार पांडेय बिहार के चर्चित मुख्यमंत्री रहे हैं। उनके चुस्त शासन को आज भी लोग फक्र से याद करते हैं। वे केन्द्र सरकार में रेल मंत्री भी रहे थे। उनकी गिनती कांग्रेस के प्रतिष्ठित नेताओं में होती है। केदार पांडेय के पुत्र मनोज पांडेय 1984 में बेतिया से सांसद चुने गये थे। करीब 15 साल पहले मनोज पांडेय का असामयिक निधन हो गया था। शास्वत केदार, मनोज पांडेय के पुत्र हैं। शाश्वत अपनी मां के साथ दिल्ली में रहते हैं। उनकी मां केन्द्र सरकार में सेवारत हैं। शाश्वत दिल्ली में युवा कांग्रेस में सक्रिय रहे हैं। शाश्वत के समृद्ध राजनीतिक विरासत को देख कर कांग्रेस ने उन पर दांव लगाया है।
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युवा चेहरे पर भरोसा
कांग्रेस ने वाल्मीकि नगर सीट पर बहुत माथापच्ची की। और जब खोज कर प्रत्याशी निकाला तो सब हैरान रह गये। पिछला चुनाव लड़ने वाले पूर्णमासी राम ने एक तरह से बगवाती अंदाज में कह दिया था कि वे ही इस सीट से चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस ने उनकी धमकी को नजरअंदाज कर दिया। 2014 में इस सीट पर भाजपा के सतीश चन्द्र झा विजयी रहे थे। लेकिन इस बार सीट शेयरिंग में यह सीट जदयू को मिल गयी। भाजपा से बेआसरा होने के बाद सतीश चन्द्र दूबे कांग्रेस से टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे। इसके अलावा केन्द्र सरकार के पूर्व सचिव आर एस पांडेय, बेतिया के कांग्रेस विधायक मदन मोहन तिवारी, मांझी के कांग्रेस विधायक विजय शंकर दूबे भी इस टिकट के लिए कतार में थे। लेकिन बाजी हाथ लगी शाश्वत केदार के। कांग्रेस ने किसी पुराने नेता की बजाय नये चेहरे पर भरोसा किया। इसके अलावा शाश्वत गौतम के परिवार की इस इलाके में बहुत इज्जत है। कांग्रेस ने वैसे तो अपनी तरफ से मजबूत मोहरा आगे बढ़ाया है लेकिन इस चाल में उसने बहुत देर कर दी।
जदयू की चुनौती
जदयू के उम्मीदवार वैद्यनाथ प्रसाद महतो 2009 में इस सीट पर जीत चुके हैं। 2014 में वे भाजपा के सतीश चन्द्र दूबे से हार गये थे। भाजपा की विनिंग सीट जदयू के दिये जाने से कमल समर्थकों में नाराजगी है। ऊपर से भाजपा ने अपने ब्राह्मण सांसद को बेटिकट कर दिया। इससे ब्राह्मण वोटरों में भी गुस्सा है। वैद्यनाथ प्रसाद महतो को ये सीट मिल तो गयी है लेकिन भाजपा समर्थकों की नाखुशी उनको भारी पड़ सकती है। ब्राह्मण वोट यहां निर्णायक है। अगर ब्राह्मणों ने कांग्रेस की तरफ रूख कर लिया तो जदयू की नैया मंझधार में फंस सकती है। जदयू को कुशवाहा और थारू जनजाति के वोट पर भी भरोसा है। लेकिन थारू लोग किस तादाद में मतदान केन्द्र तक पहुंचते, इस बात पर भी जदयू का भाग्य निर्भर करता है।
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