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उत्तर प्रदेश चुनावः योगी आदित्यनाथ का साथ छोड़ते नेता, बीजेपी कर पाएगी भरपाई?

बीते 48 घंटों में योगी सरकार के दो बड़े मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दिया है और गुरुवार को विधायक मुकेश वर्मा ने भी इस्तीफ़े की चिट्ठी भेज दी है. कई और नेताओं के इस्तीफ़े की चर्चा है. ये बीजेपी को झटका है या स्वाभाविक राजनीतिक घटनाक्रम?

By BBC News हिन्दी
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बीते 48 घंटों में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के दो बड़े नेताओं ने इस्तीफ़ा दे दिया. पहले स्वामी प्रसाद मौर्य और दूसरे दारा सिंह चौहान. दोनों ही नेताओं ने अपने इस्तीफ़े में कहा कि सरकार किसानों, वंचितों, शोषितों और पिछ़ड़ों की उपेक्षा कर रही है.

leaders of yogi government have resigned will bjp be able to compensate

गुरुवार को उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के एक और विधायक ने इस्तीफ़ा दे दिया. शिकोहाबाद से बीजेपी विधायक मुकेश वर्मा ने पार्टी छोड़ दी है. इस्तीफ़ा देने के बाद मुकेश वर्मा ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य उनके नेता हैं, वे जहाँ जाएँगे, वे उनके साथ जाएँगे.

इनके अलावा भी मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में बीजेपी छोड़कर जाने वाले या जाने की तैयारी कर रहे कई नेताओं के नाम चल रहे हैं.

शाहजहांपुर के तिलहर से विधायक रोशनलाल वर्मा, बिल्हौर से विधायक भगवती प्रसाद और तिंदवारी से विधायक ब्रजेश प्रजापति के त्यागपत्र देने की रिपोर्टें भी आईं. इन नेताओं ने भी अपने इस्तीफ़ों में दलितों, पिछड़ों, वंचितों और शोषितों को नज़रअंदाज़ किए जाने के आरोप लगाए हैं.

विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के सूत्र सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं और पत्रकारों को जानकारी लीक कर रहे हैं कि अगले कुछ दिनों में 'बीजेपी कई विधायक और मंत्री' समाजवादी पार्टी का दामन थाम लेंगे.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफ़ीज़ गांधी कहते हैं, "समाजवादी पार्टी ऐसे कई नेताओं के संपर्क में है जो बीजेपी छोड़ना चाह रहे हैं. इन सबका हम स्वागत कर रहे हैं, आने वाले दिनों में कई और नाम बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ेंगे."

ऐसे में अटकलों का बाज़ार गर्म है कि क्या बीजेपी से नेताओं के छिटकने का सिलसिला अभी जारी रहेगा? और बीजेपी में क्या इसे लेकर कोई चिंता है?

मंझे हुए मौर्य ने भाँप लिया है राजनीतिक तापमान?

बीजेपी से इस्तीफ़ा देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य एक मंझे हुए राजनेता हैं. 2017 चुनावों से ठीक पहले वो बसपा छोड़कर बीजेपी में आए थे और मंत्री बने थे. उन्हें ग़ैर यादव ओबीसी वोट का बड़ा नेता माना जाता है.

बीजेपी ने मौर्य को मनाने के संकेत दिए हैं, लेकिन जब उन्होंने बसपा छोड़ी थी तब मायावती ने कहा था कि मौर्य ने पार्टी छोड़कर पार्टी पर उपकार किया है.

मौर्य जब बीजेपी में आए थे तो कई नेताओं को साथ लाए थे. अब ऐसा लग रहा है कि गए हैं तो कई नेताओं को साथ ले जा रहे हैं.

विश्लेषक मानते हैं कि मौर्य और अन्य नेताओं के बीजेपी छोड़ने का स्पष्ट संकेत ये है कि पार्टी में पिछड़ा वर्ग के नेताओं को ये आभास हो रहा है कि उनकी जाति की पूछ नहीं हो रही है.

बीजेपी में भगदड़ मच गई है?

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, "मौर्य और अन्य नेताओं के इस्तीफ़ों से ज़ाहिर हो रहा है कि इन लोगों को समझ आ रहा है कि बीजेपी एक अपर कास्ट (सवर्ण वर्ग) पार्टी हो गई है. ख़ासतौर से योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से पांच साल के शासन में ठाकुर वर्ग को अहमियत दी है उससे अन्य पिछड़े वर्गों में नाराज़गी है. अब जो हालात बन रहे हैं और जिस तरह से लोग पार्टी छोड़ रहे हैं, ख़ासकर ओबीसी नेताओं में एक भगदड़ सी मच गई है, वो बीजेपी और योगी आदित्यनाथ को छोड़कर भाग रहे हैं, इससे लग रहा है कि बीजेपी का कम्यूनल कार्ड फ़ेल हो रहा है."

वहीं बीजेपी पार्टी में भगदड़ या पार्टी नेताओं में नाराज़गी की रिपोर्टों को ख़ारिज करती है. पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं, "बीजेपी में कोई भगदड़ नहीं है. बुधवार को ही दो विधायक बीजेपी में आए हैं. कांग्रेस से नरेश सैनी आए हैं और समाजवादी पार्टी से मुलायम सिंह यादव के समधी हरिओम यादव भी पार्टी में आए हैं. यादव सिरसागंज फिरोज़ाबाद से विधायक हैं. समाजवादी पार्टी के गढ़ से विधायक टूट कर बीजेपी में आ रहे हैं. ये कहना बिल्कुल ग़लत है कि बीजेपी में किसी तरह की भगदड़ है."

पार्टी में भगदड़ के सवाल पर बीजेपी का ये भी कहना है कि पार्टी से जाने वाले नेताओं की तुलना में पार्टी में आने वाले नेताओं की संख्या कहीं ज़्यादा है. त्रिपाठी कहते हैं, "एक महीने के भीतर ही बीजेपी ने कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के विधायकों को पार्टी में शामिल कराया है. जनाधार वाले, साफ़ सुथरी छवि के नेता पार्टी की तरफ़ आ रहे हैं. हमारी पार्टी की समिति के पास कई नेताओं के प्रस्ताव लंबित हैं जो पार्टी में शामिल होना चाहते हैं. हम इनकी समीक्षा कर रहे हैं. जनाधार वाले नेताओं को पार्टी लगातार शामिल कर रही है."

https://twitter.com/yadavakhilesh/status/1481218421346140161/photo/1

बीजेपी से निकल रहे नेता समाजवादी पार्टी का रुख़ कर रहे हैं. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव खुल कर उनका स्वागत कर रहे हैं. पार्टी प्रवक्ता अब्दुल हफ़ीज़ गांधी कहते हैं, "पार्टी की पहली कोशिश है कि जो भी नेता या व्यक्ति सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहा है वो पार्टी का हिस्सा बने. जो नेता बीजेपी से नाराज़ होकर जा रहे हैं समाजवादी पार्टी में खुले दिल से उनका स्वागत है. इससे सामाजिक न्याय की लड़ाई मज़बूत होगी."

ओबीसी नेताओं में रोष?

भारत में जातिगत आधार पर जनगणना नहीं हुई लेकिन ये माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की बड़ी आबादी है. 2014 में आम चुनावों में बीजेपी के सत्ता में आने में और 2017 में उत्तर प्रदेश चुनावों में बीजेपी की जीत के पीछे अन्य पिछड़ा वर्ग के समर्थन को अहम कारण माना गया था.

ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के बाग़ी सुर से बीजेपी को ओबीसी वर्ग में नुक़सान हो सकता है. सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के पास कोई चेहरा है जो ओबीसी को पार्टी के साथ बनाए रख सकता है.

शरत प्रधान कहते हैं, "बीजेपी के पास एक ही चेहरा है नरेंद्र मोदी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही साल 2014 में ओबीसी को बीजेपी की तरफ खींचा था. काफ़ी बड़ी तादाद में ओबीसी बीजेपी के साथ जुड़ गए थे. लेकिन अब योगी सरकार का जो रवैया है उससे ओबीसी बिखर गए हैं. यूपी चुनाव में अब इतना वक्त नहीं रह गया है कि बीजेपी इस नाराज़गी को दूर कर पाए या इसका कोई प्रभावी तोड़ निकाल पाए."

वहीं बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य निर्विवाद रूप से यूपी में पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े नेता हैं.

त्रिपाठी कहते हैं, "यूपी में अब जाति या वोटबैंक की राजनीति ख़त्म हो गई है. भाजपा ने विकास को अहम मुद्दा बना दिया है. आज कोई किसी जाति का ठेकेदार नहीं है. जहां तक स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से हुए नुक़सान का सवाल है, बीजेपी के पास मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा समाज से पहले से ही पर्याप्त संख्या में नेतृत्व है. यूपी में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य निर्विवादित रूप से प्रदेश में पिछड़े वर्ग के सबसे बड़े नेता हैं. बीजेपी में पिछड़े वर्ग की उपेक्षा है, ये दावे निराधार हैं."

भारतीय जनता पार्टी इस बात से भी इनकार करती है कि पार्टी में किसी ख़ास वर्ग में कोई रोष है. पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का कहना है कि पार्टी से वही लोग जा रहे हैं जिन्हें पार्टी में अपना भविष्य नज़र नहीं आ रहा है.

त्रिपाठी कहते हैं, "ऐसे नेता, जिन्हें लग रहा है कि पार्टी के सर्वे में उनकी रिपोर्ट नकारात्मक है या पार्टी के साथ चुनाव लड़ना उनके लिए मुश्किल होगा, या पार्टी के भीतर उनका भविष्य अंधकारमय है, पार्टी से जा भी रहे हैं. लेकिन हम ये बात दावे के साथ कह सकते हैं कि जितने भी नेता अब तक बीजेपी को छोड़कर गए हैं उनका राजनीतिक भविष्य अंधकारमय हुआ है."

स्वामी प्रसाद मौर्य ने दावा किया है कि वो अकेले पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं बल्कि उनके साथ कई विधायक और भी हैं. इस दावे को ख़ारिज करते हुए कहते हैं, राकेश त्रिपाठी कहते हैं, "स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ ही बीजेपी में आने वाले उनके क़रीबी विधायक अनिल मौर्य ने साफ़ कर दिया है कि वो पार्टी नहीं छोड़ेंगे. धर्म सिंह सैनी के बारे में भी अफ़वाह उड़ाई गई कि वो पार्टी छोड़ रहे हैं, उन्होंने भी साफ़ कर दिया है कि वो पार्टी नहीं छोड़ेंगे. ये साफ़ हो रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य की पकड़ कमज़ोर हुई है."

बीजेपी हो रही है मज़बूत फिर क्यों जा रहे हैं नेता?

पिछले कुछ सालों का, ख़ासकर 2014 के बाद का रिकॉर्ड देखा जाए तो बीजेपी में आने वाले नेताओं की तादाद पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं के मुक़ाबले कहीं ज्यादा है. बीजेपी का राजनीतिक जनाधार भी बढ़ा है. पार्टी राज्य और केंद्र में सत्ता में है और अगर सदस्यों के लिहाज से देखा जाए तो बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है. भारतीय जनता पार्टी अपने राजनीतिक इतिहास में इस समय सबसे मज़बूत स्थिति में है. उत्तर प्रदेश चुनावों को लेकर भी विश्लेषकों की राय है कि बीजेपी मज़बूत स्थिति में हैं.

पार्टी के संगठनात्मक ढांचे, संसाधनों और प्रभाव को देखा जाए तो राज्य में चुनाव लड़ रहे अन्य दलों के मुक़ाबले में बीजेपी मज़बूत नज़र आती है. ऐसी स्थिति में भी यदि मंत्री और विधायक पार्टी छोड़कर जा रहे हैं तो ये क्यों नहीं माना जाए कि उन्होंने भांप लिया है कि पार्टी के भीतर सबकुछ सही नहीं है और आगामी चुनावों में पार्टी की स्थिति कमज़ोर हो सकती है?

इस सवाल पर राकेश त्रिपाठी कहते हैं, "उत्तर प्रदेश में बीजेपी का ग्राफ़ लगातार बढ़ रहा है. पिछली बार 2017 में जब हम चुनाव में गए थे तो पार्टी के एक करोड़ 87 लाख सदस्य थे, अब जब हम चुनाव में जा रहे हैं तो हमारे पास तीन करोड़ 80 लाख सदस्य हैं. 3 करोड़ 60 लाख मत पाकर हमने 325 सीटें पाई थीं. अब हमारे पास इससे अधिक पार्टी सदस्य हैं, हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी पिछली बार से अधिक सीटें जीतने जा रही है."

पार्टी छोड़ रहे नेताओं को लेकर बीजेपी का तर्क है कि ये वो लोग हैं जिनका टिकट पार्टी से कट सकता है. पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं, "भारतीय जनता पार्टी के भीतर एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. विधायकों का फ़ीडबैक लिया जाता है और उसी के आधार पर टिकट तय किए जाते हैं. पार्टी मौजूदा विधायकों का सर्वे कराती है. जहां पार्टी पिछली बार नहीं जीत पाई थी वहां भी बेहतर प्रत्याशी के लिए आकलन किया जाता है. टिकट काटना एक राजनीतिक दल के भीतर होने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है. ये बात ज़रूर है कि जिन लोगों को ये संकेत मिले होंगे कि उनकी स्थिति पार्टी में मज़बूत नहीं है वो इधर-उधर मौके देख रहे हैं. लेकिन इससे उनका भला नहीं होगा. जिन लोगों का कल्याण बीजेपी के भीतर नहीं हो पा रहा है, कहीं और उनका कल्याण कैसे होगा?"

क्या ये माना जा सकता है कि जो लोग पार्टी छोड़ रहे हैं उन्हें बीजेपी में अपना भविष्य सुरक्षित नहीं नज़र आ रहा था और वो सिर्फ़ अपने राजनीतिक भविष्य के लिए पार्टी छोड़ रहे हैं? या वाक़ई में ये अपने मतदाताओं के बारे में सोच रहे हैं?

शरत प्रधान कहते हैं, "अब राजनीति बदल गई है. वो ज़माना लद गया है जब नेता एक राजनीतिक विचारधारा से जुड़े रहते थे और उसके लिए अपना राजनीतक करियर भी दांव पर लगा देते थे. अब नेता पहले अपना राजनीतिक हित देखते हैं. असल बात यही है कि जब भी नेताओं को अपनी राजनीति पर ख़तरा नज़र आता है वो दल-बदल लेते हैं. ऐसे नेता गिने-चुने ही होंगे जो आज भी राजनीतिक विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध हैं और एक ही पार्टी में टिके रहते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य हैं या दूसरे नेता हैं, ज़ाहिर है वो अपना हित तो देख ही रहे होंगे. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मौर्य अपने बेटे के लिए भी पार्टी से टिकट मांग रहे थे और इसी बात पर बात नहीं बनी. लेकिन तथ्य ये भी है कि वो आज की राजनीतिक स्थिति को भांप रहे हैं. उन्हें ये लग रहा है कि बीजेपी के साथ इस समय उनका राजनीतिक करियर सुरक्षित नहीं है."

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर सवाल

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पांच साल के कार्यकाल में बीजेपी के साथ-साथ अपनी भी एक अलग और समकक्ष छवि बनाई है. यूपी सरकार को बीजेपी सरकार के बजाए योगी सरकार अधिक कहा जाता है. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या पार्टी छोड़ने वाले नेता ख़ासतौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी नाराज़ हो सकते हैं?

शरत प्रधान कहते हैं, "इसमें कोई शक़ नहीं है कि नाराज़गी ख़ासतौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से है. पिछले पांच साल के कार्यकाल को देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने अपने आप को सर्वोपरि रखने और प्रदर्शित करने की कोशिश की है. ये संकेत और संदेश बार-बार दिया गया है कि यूपी में योगी ही सबकुछ हैं. लखनऊ के राजनीतिक हलकों में ये चर्चा भी है कि योगी आसानी से अपनी पार्टी के नेताओं से भी नहीं मिलते थे. इस बात का मलाल ज़रूर पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं को रहा होगा. अनाधिकारिक तौर पर कई मंत्री ये शिकायत करते हैं कि योगी आदित्यनाथ से मिलना आसान नहीं है."

क्या इससे योगी आदित्यनाथ की छवि भी प्रभावित होगी? शरत प्रधान कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ ने भले ही अपनी एक बड़ी और विशाल छवि बनाई हो लेकिन सत्य यही है कि वो बीजेपी का हिस्सा बनकर ही मुख्यमंत्री बन पाए हैं. अगर योगी आदित्यनाथ को लगता है कि वो पार्टी से बड़े हैं तो फिर ये अपरिपक्व सोच है. भले ही जो नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं वो योगी आदित्यनाथ से नाराज़ हों लेकिन इससे नुक़सान बीजेपी का ही हुआ है."

बीजेपी की गुहा, मौर्य करें पुनर्विचार

स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी से इस्तीफ़ा देने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने उन्हें अपने निर्णय पर पुनर्विचार की सलाह दी है. बीजेपी का भी मानना है कि यदि वो वापस आना चाहते हैं तो उनका स्वागत है.

त्रिपाठी कहते हैं, "भाजपा मानती है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक मंत्री के रूप में प्रदेश में अच्छा काम किया है. पार्टी से बाहर जाकर भी वो यही काम गिना रहे हैं. यदि वो पार्टी से बात करना चाहते हैं तो इसका स्वागत है. हम तो चाहेंगे कि वो पार्टी में रहें. लेकिन अगर वो अलग रास्ता चुनते हैं तो वो स्वतंत्र हैं."

त्रिपाठी कहते हैं, "भाजपा किसी परिवार की पार्टी नहीं है बल्कि पार्टी ही परिवार है. परिवार के भीतर कोई रूठता है या टूटता है तो कोशिश की जाती है कि वो पार्टी के साथ आएं, संवाद करें और अपने मसले हल करें. गिला-शिकवा है तो उसे पार्टी के भीतर ही बैठकर सुलझाए. बावजूद इसके यदि किसी की नाराज़गी इतनी है कि वो पार्टी से जाना चाहता है तो वो अपना रास्ता तय करने के लिए स्वतंत्र हैं. किसी को बंधुआ बनाकर नहीं रखा जा सकता है. पार्टी संवाद में विश्वास रखती है, यदि कोई समस्या है तो पार्टी में संवाद करना चाहिए."

स्वामी प्रसाद मौर्य और अन्य मंत्री और विधायकों के इस्तीफ़ों ने यूपी का सियासी तापमान बढ़ा दिया है. बीजेपी डैमेज कंट्रोल में लगी है. वहीं समाजवादी पार्टी इस स्थिति का फ़ायदा उठाकर ये दिखाने में लगी है कि बीजेपी कमज़ोर हो रही है. जितना नज़र आ रहा है उससे कहीं अधिक घटनाक्रम पर्दे के पीछे चल रहा है.

शरत प्रधान कहते हैं "पिछले दो दिनों के घटनाक्रम ने चुनाव को रोचक कर दिया है. बीजेपी के बड़े नेताओं, मंत्रियों के पार्टी छोड़ने से ये संकेत गया है कि चुनाव में बीजेपी कमज़ोर स्थिति में हो सकती है. वास्तविकता जो भी हो, लेकिन चुनावों में इस तरह के संकेत मायने रखते हैं और इनसे चुनाव प्रभावित होता है. बीजेपी के सामने चुनौती है कि जो नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई कैसे की जाए. लेकिन सवाल यही है कि क्या बीजेपी ये भरपाई कर पाएगी?"

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English summary
leaders of yogi government have resigned will bjp be able to compensate
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