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VIDEO : पाक जाकर मुस्लिम बनीं कुलसुम, करतारपुर में 75 साल बाद भाई से मिली तो छलके आंसू

विभाजन के समय कई ऐसे परिवार अपनों से बिछड़ गए जो दशकों तक नहीं मिल सके। ऐसे ही भाई बहन 75 साल के बाद मिले। करतारपुर में दोनों की मुलाकातें देखने के बाद हर शख्स भावुक हो गया। kartarpur indian sikh brother pak muslim siste

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इस्लामाबाद / करतारपुर (पंजाब), 10 सितंबर : विभाजन के समय बिछड़े भाई बहन 75 साल बाद मिले तो भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा। 1947 में अलग हुए भारतीय सिख अपनी पाकिस्तानी मुस्लिम बहन से करतारपुर में मिले। सात दशकों से अधिक समय तक बिछड़े रहे भाई-बहन करतारपुर में मिले तो एक-दूसरे से लिपटकर काफी देर तक रोते रहे। दोनों की मुलाकात और सरहदों को बेमानी बताती इमोशंस को देखकर वहां मौजूद अन्य लोगों का आंखें भी छलक उठी। दयाल सिंह रिसर्च एंड कल्चरल फोरम (DSRCF) और ट्विटर यूजर गुलाम अब्बास शाह (@ghulamabbasshah) के ट्वीट से ये कहानी सामने आई।

75 साल बाद गुरुद्वारे ने मिलाया

75 साल बाद गुरुद्वारे ने मिलाया

करतारपुर में व्हीलचेयर पर बैठे अमरजीत सिंह जब अपनी बहन कुलसुम अख्तर से मिले तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि 75 साल बाद वे अपनी बहन से मिल सकेंगे। जालंधर के रहने वाले सिख अमरजीत सिंह की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, जब वह पाकिस्तान की अपनी मुस्लिम बहन से मिले। विभाजन के समय अपने परिवार से अलग होने के 75 साल बाद दोनों भाई बहन करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में मिले।

मुलाकात के दौरान सभी की आंखें नम

मुलाकात के दौरान सभी की आंखें नम

अमरजीत सिंह को उनकी बहन के साथ भारत में छोड़ दिया गया था, जबकि उनके मुस्लिम माता-पिता विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए थे। व्हीलचेयर से पहुंचे अमरजीत सिंह अपनी बहन कुलसुम अख्तर से जब मिले तो दोनों की आंखों से भावनाएं छलक उठीं। दोनों की मुलाकात के दौरान सभी की आंखें नम हो गईं।

दोनों एक दूसरे को गले लगाकर रोते रहे

दोनों एक दूसरे को गले लगाकर रोते रहे

बुधवार को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब पहुंचे अमरजीत सिंह ने अपनी बहन से मिलने के लिए वीजा बनवाया और अटारी-वाघा सीमा क्रॉस करने के बाग पाकिस्तान पहुंचे। 65 वर्षीय कुलसुम भाई अमरजीत को देखकर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख सकीं। दोनों एक दूसरे को गले लगाकर रोते रहे। कुलसुम अपने बेटे शहजाद अहमद और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ आई थीं।

भाई-बहन को छोड़ पाकिस्तान गए पिता

भाई-बहन को छोड़ पाकिस्तान गए पिता

फैसलाबाद में रहने वाली कुलसुम अपने भाई से मिलने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर करतारपुर पहुंचीं। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के एक्सप्रेस ट्रिब्यून से कुलसुम ने बताया, उनके माता-पिता 1947 में जालंधर छोड़कर पाकिस्तान चले गए। उन्होंने अपने भाई और बहन को जालंधर में ही छोड़ दिया।

लापता बच्चों की याद में मां का विलाप

लापता बच्चों की याद में मां का विलाप

विभाजन की विभीषिका के बीच भारत छोड़कर पाकिस्तान गए कुलसुम के पिता की गोद में कुलसुम पाकिस्तान में ही पैदा हुईं। परिवार में छोटी कुलसुम बताती हैं कि वे अक्सर अपनी मां से खोए हुए भाई और बहन के बारे में सुनती थीं। उन्होंने बताया, जब भी मां को लापता बच्चों की याद आती थी तो वे खूब रोती थीं। कुलसुम ने कहा, उम्मीद ही नहीं थी कि वह कभी अपने भाई और बहन से मिल पाएंगी, लेकिन नीयति को कुछ और ही मंजूर था।

भारत से गए 'दूत' ने बिछड़े परिवार को मिलाया

भारत से गए 'दूत' ने बिछड़े परिवार को मिलाया

दशकों का विरह झेलने वाली कुलसुम बताती हैं कि कुछ साल पहले उनके पिता सरदार दारा सिंह का एक दोस्त भारत से पाकिस्तान आया और उनसे भी मिला। बकौल कुलसुम, उनकी मां ने सरदार दारा सिंह से अपने बेटे और भारत में छूटी बेटी की चर्चा की। मां ने सरदार को उनके गांव का नाम और जालंधर वाले उनके घर की लोकेशन भी बताई। कहना गलत नहीं होगा कि सरदार दोनों परिवारों के लिए दूत से कम नहीं।

व्हाट्सएप पर संपर्क

व्हाट्सएप पर संपर्क

भाई की जानकारी और उनका नंबर मिलने के बाद कुलसुम ने अमरजीत से व्हाट्सएप पर संपर्क किया। दोनों ने मिलने का फैसला किया। उम्र के छह दशक देख चुकीं कुलसुम ने पीठ में गंभीर दर्द होने बावजूद, अपने भाई से मिलने का फैसला लिया और करतारपुर की यात्रा करने का साहस जुटाया।

मुसलमान होना जानकर सदना लगा

मुसलमान होना जानकर सदना लगा

अमरजीत सिंह ने बताया, जब उन्हें पहली बार पता चला कि उनके असली माता-पिता पाकिस्तान में हैं और मुसलमान हैं, तो यह उनके लिए एक सदमा था। हालांकि, उन्होंने अपने दिल को दिलासा दिया कि उनके अपने परिवार के अलावा कई परिवार एक-दूसरे से अलग हो गए थे। उन्होंने कहा कि वह हमेशा से अपनी सगी बहन और भाइयों से मिलना चाहते थे और यह जानकर खुशी हुई कि उनके तीन भाई जीवित हैं। अमरजीत के एक भाई की जर्मनी में दुर्भाग्यपूर्ण मौत हो चुकी है।

भाई-बहन ढेर सारे तोहफे भी लाए

भाई-बहन ढेर सारे तोहफे भी लाए

बकौल अमरजीत सिंह, बहन कुलसुम से मिलने के बाद वह अब अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए पाकिस्तान आएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने परिवार को भी भारत ले जाना चाहते हैं ताकि वे अपने सिख परिवार से मिल सकें। 75 साल बाद मिले दोनों भाई-बहन एक-दूसरे के लिए ढेर सारे तोहफे भी लाए थे।

मामा को देखकर बोला भांजा- मां ने अपना खोया भाई पाया

मामा को देखकर बोला भांजा- मां ने अपना खोया भाई पाया

कुलसुम के बेटे शहजाद अहमद ने कहा, वह अपने चाचा के बारे में अपनी दादी और मां से सुनते थे। बंटवारे के समय सभी भाई बहन बहुत छोटे थे। उन्होंने कहा, "मैं समझता हूं कि चूंकि मेरे चाचा का पालन-पोषण एक सिख परिवार द्वारा किया गया था, इसलिए वह एक सिख हैं। मेरे परिवार और मुझे इससे कोई समस्या नहीं है। एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट में शहजाद ने कहा, उन्हें खुशी है कि 75 साल बाद भी उनकी मां ने अपना खोया भाई पाया है।

नीचे देखें भाई-बहन के मिलन की वीडियो--

करतारपुर में बिछड़ों की मुलाकात

दिलचस्प है कि करतारपुर कॉरिडोर में बिछड़े परिवारों के मिलने का ये दूसरा मामला है। विगत मई में, एक सिख परिवार में जन्मी महिला भारत में रहने वाले अपने भाइयों से मिली थी। महिला को एक मुस्लिम दंपति ने गोद लिया और पाला था। दोनों की करतारपुर में भावुक मुलाकात हुई थी।

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English summary
kartarpur indian sikh brother pak muslim sister meeting after 75 years
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