झारखंडः सात सालों में डायन बता मार दिए गए 231 लोग, फिर भी क्यों लग रहा है 'भूत मेला'
रांची ज़िला मुख्यालय से 252 किलोमीटर दूर पलामू के हैदरनगर में हज़ारों लोग हर दिन आ-जा रहे हैं. इस आयोजन की देखरेख के लिए पुलिस तक तैनात किए गए हैं. यह मेला चैती नवरात्र के समय बीते कई दशकों से लगता आ रहा है.
झारखंड के पलामू ज़िले में एक तपती दोपहरी और लू के बीच गोबर के उपले में लगे आग में कोई चावल फेंक रहा था तो कोई नारियल.
दूसरी ओर, वहां काले बकरे को लाल टीका लगाया जा रहा था. कबूतर को कीलें चुभोई जा रही थीं. किसी महिला के शरीर में धागा बांधा जा रहा था.
वहीं, बगल में एक पंडित कुछ मंत्र जाप करते हुए मुर्गे को चावल खिला रहे थे. वहां पास बैठी महिलाएं कुछ चूजे को पकड़ कर अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थीं.
इन लोगों को लग रहा था कि इनके शरीर पर किसी डायन ने भूत लगा दिया है. और सब उसका इलाज कराने वहां पहुंचे थे, क्योंकि वहां 'भूत मेला' लगा था.
पुलिस प्रशासन के सामने ये मेला उस राज्य (झारखंड) में होता है, जहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ बीते सात सालों में डायन बताकर 231 लोगों की हत्या कर दी गई है और मरने वालों में अधिकांश महिलाएं हैं.
कब और कहां लगता है ये भूत मेला
ये मेला चैती नवरात्र के समय बीते कई दशकों से लगता आ रहा है.
रांची ज़िला मुख्यालय से 252 किलोमीटर दूर पलामू ज़िले के हैदरनगर में हज़ारों लोग हर दिन आ-जा रहे थे. इस आयोजन की देखरेख के लिए पुलिस तक तैनात किए गए.
पलामू प्रमंडल के कमिश्नर जटाशंकर चौधरी के मुताबिक़, उन्हें इसकी जानकारी पहली बार मिली है.
वहीं रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकाइट्री एंड अलाइड साइंस (रिनपास) के निदेशक डॉक्टर सुभाष सोरेन कहते हैं कि 21वीं सदी में इस तरह का आयोजन होना ही नहीं चाहिए.
इस मेले में एक ओझा के सामने एक महिला बैठी दिखी, जो लगातार गर्दन हिलाए जा रही थी. ओझा कथित तौर पर उनका इलाज कर रहे थे. उन्होंने पूछने पर अपना पूरा नाम नहीं बताया.
बस इतना कहा कि उनका नाम पांडेय जी है. वो यूपी के बनारस से यहां आए हैं. वो कहते हैं कि इस महिला के ऊपर शैतान आकर खेल रही है. इसलिए वह झूल रही है.
लेकिन कैसे पता चला कि इस महिला के ऊपर भूत है?
इसके जवाब में उन्होंने कहा, "मां भगवती के कृपा से पता चलता है. वही खड़ा होकर बोलती हैं कि शैतान है. और ये केवल यहीं आकर पता चलता है. बाहर पता नहीं चलता है कि भूत है."
'...भूत कबूतर में समा गया'
वहीं पास में ही बिहार के रोहतास से आए एक और ओझा संजय भगत के अगल-बगल महिलाओं, बच्चों और पुरुषों की भीड़ जमा थी. लाल चुनरी ओढ़े, आंखों में काजल लगाए संजय लगातार नाच रहे थे.
थोड़ी देर बाद उनके एक सहयोगी ने उनके हाथ में दो कबूतर लाकर रख दिया. कुछ मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने कबूतर के बदन में तीन-चार कीलें चुभों दी. उसके बाद उसे उड़ा दिया. दावा किया कि भूत कबूतर में समा गया और उड़ गया.
हालांकि कबूतर ज्यादा उड़ नहीं पाया. मुश्किल से पांच मीटर की उड़ान के बाद वह गिर पड़ा. पास खड़े एक व्यक्ति ने उसे पकड़ अपने तौलिये में लपेटा और आगे बढ़ गए. उनकी जेब में शराब की बोतल थी.
संजय बताते हैं, "ये काम मैं पिछले 32 साल से कर रहा हूं. जो भक्त कबूतर लेकर आया था, उसके ऊपर शैतानी हरक़त थी. कबूतर के शरीर में किल चुभोने से उसका कल्याण हो गया. अब वो ठीक हो जाएगा. कई राज्यों के लोग शैतानी हरक़त दूर कराने उनके पास आते हैं. वो दावा करते हैं कि ये सब दवाई से ठीक नहीं होता."
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वहीं सासाराम से आए सहयोगी मंटू चंद्रवंशी, संजय की बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "उनके पास ज्यादातर लोग वही आते हैं, जो दिमाग़ से डिस्टर्ब हैं. इलाज़ करा कर थक जाते हैं. तंत्र आदिकाल से चलता आ रहा है. साइंस इसको नहीं मानता, साइंस के हिसाब से चलिएगा तो ये ग़लत है. वेद में भी भूत-पिशाच दिखाया गया है."
क्या वेद आपने पढ़ा है? इसके जवाब में वो कहते हैं, "चलिए ठीक है, आगे पूछिए." फिर मंटू सवाल करते हैं, "साइंस अगर भूत-प्रेत नहीं मानती, सरकार नहीं मानती, तो इसे बंद क्यों नहीं करवाती है."
मंटू के अलावा संजय के कई सहयोगी वहां दिखे. जो भूत भगाने आए लोगों से बीमारी के हिसाब के 10-15 हज़ार रुपये तक वसूल रहे थे.
किसी से कम लेने पर संजय अपने सहयोगियों को डांट भी रहे थे. पैसे का हिसाब मंदिर परिसर से बाहर किया जा रहा था. हालांकि इलाज का रेट पूछने पर सब ने कहा कि भक्त जो इच्छा के अनुसार दे देते हैं, वही रखते हैं.
मंदिर परिसर में मज़ार भी है. यहां इलाज कर रहे आशिक़ अली ने बताया कि मज़ार पर शैतान भगाने सभी धर्म के लोग आते हैं. फ़ातिहा पढ़ने से शैतान भाग जाता है.
आख़िर इतना अंधविश्वास क्यों?
यूपी के सोनभद्र ज़िले के दुधी गांव से आए रोशन कुमार बताते हैं, "मैं पढ़ने में ठीक-ठाक छात्र था. अचानक दिमाग़ ख़राब हो गया. मैं पागल की तरह करने लगा, क्योंकि मेरी चाची ने मेरे ऊपर भूत छोड़ दिया था."
रोशन अपने गांव की ही महिला ओझा मंगरी देवी के साथ यहां आए हैं. मंगरी देवी ने उनका इलाज किया है. दुबले शरीर वाले रोशन ने भावराउ देवरस राजकीय पीजी कॉलेज से हिन्दी और प्राचीन इतिहास विषय से बीए पास किया है.
वहीं डेहरी ऑन सोन से आई राजकुमारी देवी कहती हैं, "ठीक है सरकार ने इस पर बैन लगा दिया है. लेकिन क्या सरकार हमलोगों का इलाज करेगी? घर घर आएगी हम लोगों को देखने के लिए? हम लोग मर रहे हैं, सरकार आ रही है देखने? हॉस्पिटल भी जाते हैं, वहां ठीक नहीं होता है तो हम तांत्रिक के पास जाते हैं."
अंधविश्वास का स्तर इतना गहरा है कि राजकुमारी दावा करती हैं कि उन्होंने भूत को देखा है.
बिहार के सासाराम के चंद्रमा विश्वकर्मा का अपना अनुभव है.
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चंद्रमा विश्वकर्मा कहते हैं, "मेरे हाथ में एक दिन अचानक बिजली के करेंट जैसा झटका महसूस हुआ. हाथ सुन्न होने के साथ काफ़ी भारी हो गया. सात साल इलाज कराए, लेकिन ठीक नहीं हुए. लेकिन मेरी एक मामी थी जिसने दुआ (तंत्र-मंत्र) किया और मैं ठीक हो गया. मैं कैसे मान लूं कि सब इलाज दवाई से ही होता है. मैं तो मानता हूं कि भूत होता है."
झारखंड में पिछले 32 सालों से डायन हत्या के ख़िलाफ़ काम कर रहे आशा संस्था के प्रमुख अजय जायसवाल का अपना अलग अनुभव है.
वो बताते हैं, "ओझाओं के पास जब रोगी पहुंचते हैं, तब उस दिन इलाज नहीं किया जाता. अगले 10 दिन बाद का समय दिया जाता है."
इस दौरान उनके सहयोगी उस रोगी के गांव जाकर सब कुछ मालूम कर आते हैं कि अमुक परिवार किसको डायन बताना चाह रहा है, उनके घर में क्या-क्या है.
वो कहते हैं कि 10 दिन बाद जब रोगी उस तांत्रिक के पास पहुंचता है, तो बिना पूछे तांत्रिक वही सब जानकारी देने लगता है. ऐसे में रोगी चौंक जाता है और उनका विश्वास अटूट हो जाता है.
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आखिर बंद क्यों नहीं हो रहा है यह मेला
पलामू प्रमंडल के कमिश्नर जटाशंकर चौधरी बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "मैंने देखा नहीं है, बस इसके बारे में सुना है. पता चला कि वर्षों से चला आ रहा है. ये एक अंधविश्वास होता है. प्रशासन को कैंपेन चलाना होगा. झारखंड के अलावा पड़ोसी राज्यों में भी कैंपेन चलाना होगा."
"जहां तक बात प्रशासन की ओर से दी जानेवाली सुरक्षा का है, तो मैं नहीं मानता हूं कि प्रशासन की देखरेख में ऐसा चल रहा है. वहां पहुंचनेवाले लोगों की सुरक्षा को देखते हुए पुलिस बल की तैनाती की गई है."
वो आगे कहते हैं, 'जैसे-जैसे लोगों का शैक्षणिक स्तर बढ़ेगा, तब लोगों का इस मेले में आना कम होगा.'
मेला प्रबंधन समिति के सचिव रामाश्रय सिंह बताते हैं कि इस भूत मेले में झारखंड के अलावा, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से लोग आते हैं.
वो कहते हैं, "दवा के साथ-साथ दुआ भी कोई चीज़ होती है. अगर कोई बीमारी दवा से ठीक नहीं हो रही और यहां आने से ठीक हो जाती है, तो क्या दिक़्क़त है?"
जबकि स्थानीय पत्रकार जितेंद्र रावत इसका दूसरा पक्ष बताते हैं. उनके मुताबिक़, कभी भी प्रशासनिक और सामाजिक तौर पर इसे बंद करने का प्रयास नहीं किया गया. अगर प्रयास किया भी जाएगा तो इस बात की संभावना है कि विद्रोह हो सकता है, क्योंकि ओझा, उनके सहयोगी, मेला प्रबंधन समिति के लोगों को चढ़ावा जाता है.
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झारखंड पुलिस की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक़, 2015 से 2022 तक राज्य में डायन-बिसाही मामले में कुल 231 लोगों की हत्या हुई है. उसमें अधिकतर महिलाएं हैं. वहीं, साल 2015 से 2020 तक कुल 4,560 मामले दर्ज किए गए थे.
वहीं अजय कुमार जायसवाल के मुताबिक़, पिछले 26 सालों में केवल झारखंड में लगभग 1,800 महिलाएं मारी गई हैं. फिर भी राज्य सरकार ऐसे आयोजनों पर रोक नहीं लगा पा रही है.
वो आगे बताते हैं, "आशा संस्था की तरफ से 2018 में हमने आठ ज़िलों के 332 गावों में सर्वे किया गया. उसमें पाया कि 258 महिलाओं को समाज ने डायन घोषित कर दिया था. इस दौरान, 103 ऐसे व्यक्ति भी मिले, जो ख़ुद को तांत्रिक बता रहे थे. "
इस संस्था की प्रमुख सहयोगी छुटनी देवी को डायन हत्या के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के लिए 2020 में भारत सरकार ने पद्मश्री से भी नवाज़ा.
कहीं ये लोग मानसिक रोग तो नहीं
झारखंड में मानसिक रोग के इलाज के लिए दो अस्पताल हैं. एक रिनपास और दूसरा सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइकाइट्री, रांची (सीआईपी).
फोन पर हुई बातचीत में रिनपास के निदेशक कहते हैं, "अगर ये आयोजन हो रहा है तो सरकार को वहां टीम भेजकर स्टडी करानी चाहिए. क्या वाकई मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या है या फिर केवल अंधविश्वास का मसला है."
उनके मुताबिक़, "रिनपास में कोविड से पहले हर साल 350-400 रोगी इलाज कराने आते थे. लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद फिर से मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है. इसमें झारखंड के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल के रोगी भी होते हैं."
मेंटल हेल्थ को लेकर काम कर रही संस्था मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव के एडवोकेशी मैनेजर भवेश झा के मुताबिक़, "भारत सरकार ने साल 2020-21 में मेंटल हेल्थ मद में मात्र 40 करोड़ रुपया देश भर के लिए जारी किया गया. इसमें से 20 करोड़ रुपया ही ख़र्च हो पाया. इसी से सरकार की प्राथमिकता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. जबकि डबल्यूएचओ भी कहता है कि कम्यूनिटी आधारित मेंटल हेल्थ प्रोग्राम होना चाहिए."
वो कहते हैं, "ग्रामीण इलाकों में अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है, इस वजह से भी लोग इलाज के लिए ओझाओं के पास जाते हैं."
रात के आठ बज चुके हैं. खेत में लगे प्लास्टिक के तंबुओं में भीड़ जमा है. हरेक तांत्रिक का अपना तंबू है. जिन लोगों ने इन तात्रिकों से अपना इलाज करा लिया है, वो ईंट से चूल्हा बनाकर खाना बना रहे हैं, तो कोई खुले में ही सो रहे हैं. सुबह ये अपने घर चले जाएंगे, लेकिन तांत्रिकों के चेले फिर से नए मरीज़ की तलाश में जुट जाएंगे.
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