जम्मू-कश्मीर परिसीमन : भाजपा के हित में काम के आरोप क्यों, जानिए नेताओं की दलीलें
जम्मू-कश्मीर परिसीमन आदेश के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित की जाने वाली तारीख से जम्मू कश्मीर में 90 विधानसभा सीटें होंगी। इनमें से 43 जम्मू क्षेत्र और 47 कश्मीर क्षेत्र का हिस्सा होंगे।
श्रीनगर, 5 मई : जम्मू-कश्मीर में अंतिम परिसीमन आदेश के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित की जाने वाली तारीख से जम्मू कश्मीर में 90 विधानसभा सीटें होंगी। इनमें से 43 जम्मू क्षेत्र और 47 कश्मीर क्षेत्र का हिस्सा होंगे। 9 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित की गई हैं। इनमें से 6 सीटें जम्मू क्षेत्र में और 3 विधानसभा सीटें कश्मीर घाटी में हैं। बता दें कि इस क्षेत्र में पांच संसदीय सीटें आती हैं। फाइनल डिलिमिटेशन ऑर्डर के मुताबिक परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एकल केंद्र शासित प्रदेश के रूप में देखा है। इस आधार पर कश्मीर घाटी में अनंतनाग क्षेत्र और जम्मू क्षेत्र के राजौरी और पुंछ को मिलाकर एक संसदीय सीट (Parliamentary Constituency) बनाई गई है।
फारूक अब्दुल्ला केंद्र सरकार पर भड़के
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला डिलिमिटेशन के मुद्दे पर आक्रामक रहे हैं। परिसीमन पैनल पर भाजपा के हित में रणनीतिक तरीके से काम करने का आरोप लगाते हुए गत फरवरी में उन्होंने कहा था, उन्हें लगता है कि इस परिसीमन के आधार पर विधानसभा चुनाव कराए जाने के बाद भाजपा को बहुमत मिलेगा और प्रदेश की विधानसभा में 5 अगस्त, 2019 को संसद में विधेयक लाकर निरस्त किए गए संविधान के अनुच्छेद 370 निरस्त करने के फैसले को सही करार दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि बड़ी योजना अनुच्छेद 370 निरस्त करने के समर्थन में प्रस्ताव पारित कराने की है। डिलिमिटेशन में होने वाली देरी पर फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि बीजेपी झूठ बोलती है। प्रेस की स्वतंत्रता खत्म की जा रही है। तानाशाही का आरोप लगाते हुए फारूक ने कहा था, बहुत हो चुका जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल का प्रशासन। आरोपों का खंडन करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वस्त किया था कि परिसीमन और विधानसभा चुनाव कराने के बाद जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। जम्मू कश्मीर यूथ क्लब में अपने संबोधन के दौरान उन्होंने तीखे सवाल भी किए थे. उन्होंने कहा था कि परिसीमन क्यों बंद किया जाना चाहिए, राजनीतिक हितों के लिए ? उन्होंने आक्रामक लहजे में कहा था कि अब कश्मीर में कुछ भी नहीं रूकेगा। डिलिमिटेशन, इलेक्शन और जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद यहां के युवाओं को अवसर मिलेंगे। गृह मंत्री शाह ने फरवरी, 2022 में संसद के बजट सत्र के दौरान लोक सभा में एक बयान दिया था। उन्होंने आश्वस्त किया था कि कई नेता प्रोपगैंडा करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकार जम्मू कश्मीर के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
जम्मू कश्मीर में डिलिमिटेशन
अगस्त, 2019 में संविधान का अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व वाले पैनल को जम्मू कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से तैयार करने (delimitation) का काम सौंपा गया था। परिसीमन आयोग ने जम्मू और श्रीनगर में बैठकें कीं। जम्मू में छह नए निर्वाचन क्षेत्रों और कश्मीर घाटी में एक विधानसभा सीट का प्रस्ताव दिया गया। अधिकांश राजनीतिक दलों ने इस फॉर्मूले का विरोध किया। आपत्तियों को सुनने के बाद डिलिमिटेशन कमीशन ने कुल 90 विधानसभा सीटों की रिपोर्ट बनाई। मसौदे में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के लिए 24 सीटें अलग रखे जाने का प्रस्ताव भी किया गया था। बता दें कि डिलिमिटेशन से पहले जम्मू कश्मीर में कुल विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 83 थी। जम्मू में 37 और कश्मीर में 46 सीटें हैं। परिसीमन आयोग ने विगत 14 मार्च को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक कर लोगों से आपत्तियां और सुझाव मांगे थे।
परिसीमन पर उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के बयान
गत अप्रैल महीने में पीएम मोदी जम्मू कश्मीर दौरे पर गए थे। दौरे से पहले पीएम मोदी आश्वस्त कर चुके हैं कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के प्रति प्रतिबद्ध है। परिसीमन को पारदर्शी बताते हुए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी कह चुके हैं कि जिन राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव की मांग की जा रही है, उन्हें चुनावी प्रक्रिया में भाग लेना चाहिए। इन सबके बीच जम्मू-कश्मीर में परिसीमन से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि अधिकांश स्थानीय राजनीतिक दलों ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने का विरोध किया है। उन्होंने परिसीमन और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव से पहले पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करती रही हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने पार्टियों की मांग नहीं मानी।
जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं के बयान
परिसीमन के लिए गठित पैनल ने अनुसूचित जातियों (SC) के लिए सात और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए नौ आरक्षित सीटों का प्रस्ताव किया था। डिलिमिटेशन पैनल के सहयोगी सदस्यों (associate members) में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य भी शामिल रहे। इन सदस्यों ने परिसीमन के ड्राफ्ट पर असहमति नोट दिए। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने परिसीमन प्रक्रिया का बहिष्कार करते हुए आरोप लगाया था कि पैनल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हितों को देखते हुए काम कर रहा है। कार्यवाही से खुद को दूर करने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से दलील दी गई कि डिलिमिटेशन पैनल की संवैधानिकता जांच के दायरे में है। संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया पक्षपाती और अनुचित रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी कह चुके हैं कि परिसीमन आयोग के प्रस्ताव भाजपा के राजीतिक एजेंडे को प्रमोट करते हैं। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने 2011 में हुई जनगणना का हवाला देते हुए कहा था कि डिलिमिटेशन में साइंटिफिक एप्रोच अपनाने के बजाय राजनीतिक एप्रोच के साथ काम किया गया है। जम्मू कश्मीर में भाजपा नेता देवेंद्र सिंह राणा ने परिसीमन का विरोध कर रहे नेताओं के संबंध में कहा कि ये दल जाति, धर्म औऱ संप्रदाय पर आधारित राजनीति में लिप्त हैं। उन्होंने कहा कि महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे नेता पावर को एक कम्युनिटी तक ही सीमित रखना चाहते हैं।
पीएम मोदी और जम्मू कश्मीर के नेताओं की मुलाकात
परिसीमन से पहले जम्मू-कश्मीर के संबंध में कई बार आरोप-प्रत्यारोप हो चुके हैं। एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में पीएम मोदी ने जून, 2021 में जम्मू-कश्मीर के नेताओं से मुलाकात की थी। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री, फारूक अब्दुल्ला व अन्य वरिष्ठ नेताओं की मुलाकात इसे जम्मू-कश्मीर की सियासत में बदलाव और प्रोग्रेसिव स्टेट के विजन की दिशा में अहम बताया गया। पीएम मोदी ने इस मुलाकात के संदर्भ में कहा था कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र बहाल करने को लेकर प्रतिबद्ध है। इसके लिए जल्द से डिलिमिटेशन होना चाहिए, जिससे चुनाव कराने का रास्ता साफ हो सके। परिसीमन का विरोध कर रहीं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों की मांग खारिज कर केंद्र सरकार कई बार आश्वस्त कर चुकी है कि डिलिमिटेशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद जम्मू कश्मीर में चुनाव कराए जाएंगे। पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल किया जाएगा।
परिसीमन के बाद गुर्जर बकरवाल समुदाय को लाभ ?
जम्मू कश्मीर में परिसीमन और एसटी सीटों के आरक्षण के प्रस्ताव के संबंध में केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने कहा था, जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में गुर्जर बकरवाल समुदाय के लोग रहते हैं। उनकी कई मांगें वर्षों से लंबित थीं। सरकारें आईं और गईं लेकिन उनकी समस्याओं या मांगों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने केंद्र सरकार की सराहना करते हुए कहा, पीएम मोदी ने हमारी सभी मांगें सुनीं। वन अधिकार और एसटी आरक्षण दिया गया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में गुर्जर और बकरवाल को आरक्षण देने पर काम कर रही है। बकरवाल और गुर्जर समाज के लोगों ने दिल्ली आकर पीएम मोदी से मुलाकात भी की थी।
कौन हैं डिलिमिटेशन कमीशन के एसोसिएट मेंबर
फरवरी, 2022 की शुरुआत में परिसीमन आयोग ने कहा था कि उसने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में डिलिमिटेशन के लिए आयोग के पांच सहयोगी (एसोसिएट) सदस्यों द्वारा दिए गए कुछ सुझावों को स्वीकार किया है। पैनल में फारूक अब्दुल्ला, हसनैन मसूदी, अकबर लोन, जितेंद्र सिंह और जुगल किशोर शामिल हैं। बता दें कि 9 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में अस्तित्व में आए। कानून के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में एक विधायिका होगी और लद्दाख में कोई विधानसभा नहीं होगी। अधिनियम में यह प्रावधान भी किया गया कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की विधानसभा में सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 की जाएगी। निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन चुनाव आयोग करेगा।
आजाद को पद्म भूषण, क्या परिसीमन पर कांग्रेस में मतभेद ?
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने परिसीमन के मुद्दे पर कह चुके हैं कि सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस पार्टी ने जम्मू कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने और चुनाव की मांग की थी। सरकार दोनों के लिए सहमत थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आजाद ने कहा है कि अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद पहले दिन से, हमने एक शर्त रखी थी कि पहले चुनाव हो और फिर परिसीमन हो। हम अब भी चाहते हैं कि पहले राज्य का दर्जा दिया जाए और फिर चुनाव हो। डिलिमिटेशन कमीशन द्वारा विधानसभा सीटों को आरक्षित करने के प्रस्ताव पर आजाद का मानना है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों का जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों के बीच समान बंटवारा किया जाना चाहिए। बता दें कि आजाद को इसी साल पब्लिक अफेयर्स कैटेगरी में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। सम्मान ग्रहण करने के बाद आजाद ने कहा कि उन्हें देश में व्यापक रूप से फैली हुई धर्म और जाति आधारित राजनीति को खत्म करने में योगदान देने की उम्मीद है। आजाद ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा था, वे महात्मा गांधी से प्रभावित हैं। बकौल आजाद, 'गांधी जी अब नहीं रहे लेकिन उनके सिद्धांत फीके नहीं पड़े। देश में जातिवाद, घृणा और धर्म की राजनीति व्यापक है। मैं विशेष रूप से किसी एक पार्टी को दोष नहीं देता। सभी दल ऐसा कर रहे हैं। कुछ दल कर रहे हैं। बहुत अधिक, कुछ दल कम कर रहे हैं। लेकिन सभी दल इस तरह की राजनीति को आगे बढ़ाते हैं...। मैं धर्म और जाति की राजनीति मिटाना चाहता हूं।' आजाद को पद्म भूषण से सम्मानित करने के कदम का विरोध चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, कई लोग टिप्पणी करते हैं। आलोचकों को किसी के इतिहास की जानकारी नहीं है। ऐसे लोग केवल पुरस्कार पाने पर टिप्पणी करते हैं। एक अन्य चौंकाने वाले घटनाक्रम में एएनआई सूत्रों ने बताया था कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने उस पद्म पुरस्कार अलंकरण समारोह से किनारा कर लिया, जिसमें आजाद को पुरस्कार दिया गया। इससे पहले अगस्त 2019 में भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (अब दिवंगत) को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के समारोह से नदारद रहे थे।
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 : भाजपा और NC नेताओं का रवैया
जम्मू कश्मीर भाजपा अध्यक्ष रैना भी परिसीमन समेत अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35ए को निरस्त किए जाने के मुद्दे पर मुखर रहे हैं। रैना के मुताबिक अनुच्छेद 370 नफरत की एक दीवार थी। इसके कारण कश्मीर में जम्मू के लोगों को गुलामी की जंजीरों में रहना पड़ रहा था। अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद का जन्म हुआ था। कई निर्दोष लोगों की हत्याएं हुईं। 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद कश्मीर अब शांतिपूर्ण है। हर कोई एक साथ रह रहा है। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने अस्पताल, फ्लाईओवर, रेलवे और स्कूल की परियोजनाएं शुरू की हैं। सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) की ओर से अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने का विरोध किया जा रहा है। डिलिमिटेशन के मसौदे में दिए गए प्रस्ताव के खिलाफ श्रीनगर में कई बार नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं को विरोध करते देखा गया। इन नेताओं ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 दोबारा बहाल करने की मांग की है।