सोनू सूद से प्रेरणा: आदिवासियों ने वो किया जो सरकारें नहीं कर सकीं
लॉकडाउन के दौर में अभिनेता सोनू सूद ने हज़ारों मज़दूरों को उनके घर पहुंचाया है और सैकड़ों को अलग-अलग तरह से मदद की है.
बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने कोरोना महामारी के इस दौर में जिस तरह से लोगों की मदद की और अब भी जिस तरह से वो अलग-अलग तरीक़े से अलग-अलग ज़रूरतमंदों की मदद कर रहे हैं, वो हम सबके सामने है. लेकिन आंध्र प्रदेश के आदिवासी गांवों के युवाओं ने जो किया है वो भी मिसाल है.
सोनू सूद से प्रेरित होकर गांव के युवाओं ने अपने गांव में सड़क निर्माण का फ़ैसला लिया और वो भी बिना किसी अधिकारी और सरकारी मदद के.
आंध्र प्रदेश राज्य के विज़ियनगरम ज़िले के सालुरू मंडल के आदिवासी गांव कोडामा, चिंतामाला, बारा, सिरीवारा बीते 70 सालों से अलग-थलग और मुख्य भूमि से कटे हुए थे.
गांव वालों को सबसे नज़दीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने के लिए भी पांच किलोमीटर का रास्ता पैदल पार करना पड़ता है.
कोडामा गांव समुद्र तल से क़रीब 158 मीटर की ऊंचाई पर है और इसका निकटस्थ कस्बा सालुरू क़रीब 50 किलोमीटर दूर है.
अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाती थी मौत
ऐसे बहुत से मामले रहे हैं जब गर्भवती महिलाओं और बीमार को डोली में बिठाकर या लिटाकर अस्पताल तक ले जाना पड़ा. कई बार तो मरीज़ या गर्भवती की रास्ते में ही मौत भी हो गई और वो अस्पताल तक नहीं पहुंच सके.
प्रजा चैतन्य वेदिका एक ग़ैर-सरकारी संस्था है. इस संस्था के अध्यक्ष कलिसेट्टी अपाला बताते हैं कि कई बार तो अस्पताल पहुंचने से पहले ही मरीज़ों ने दम तोड़ दिया.
यह संस्था सड़क बनाने के काम में गांववालों की मदद कर रही है. हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार से गुहार नहीं लगाई गई.
गांव के आदिवासी नेता मालाती डोरा बताते हैं कि सड़क बनाने को लेकर कई याचिकाएं सरकार को भेजी गईं लेकिन इस दिशा में अधिकारियों की ओर से कोई प्रयास होता नहीं दिखा.
महिलाओं ने गहने तक गिरवी रखे
कोडामा और चिंतामाला गांवों में क़रीब 250 परिवार रहते हैं और यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती और इससे जुड़े काम-धंधे हैं.
वो कहते हैं, ''तकनीकी ने बहुत तरक्की की है और गांव में स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या भी बढ़ी है. इसका एक फ़ायदा यह भी हुआ है कि वीडियो आदि देखकर, पढ़कर युवाओं को काफी लाभ हुआ है और उनमें जागरुकता बढ़ी है.''
अपाला नायडू बताते हैं ''बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने लॉकडाउन के दौर में जिस तरह से प्रवासी मज़दूरों के लिए काम किया उसने यहां के युवाओं को काफी प्रभावित किया. सोनू सूद ने जो भी कुछ किया उससे प्रेरणा लेकर गांव के युवाओं ने फ़ैसला किया कि वो ख़ुद ही अपने गांव की सड़क बनाएंगे और वो भी बिना किसी पर निर्भर हुए.''
नायडू ने बताया कि विचार को हक़ीक़त में बदलने के लिए युवाओं ने गांववालों की मदद से ही फंड जमा करने का फ़ैसला किया. अच्छी बात यह भी रही कि किसी भी गांववाले ने इसका विरोध नहीं किया और सभी इसके लिए तैयार हो गए.
गांववालों ने अपनी तरफ़ से कुल 20 लाख रुपये जमा किये और हर परिवार ने अपनी क्षमता के अनुरूप हज़ार रुपये से लेकर 20 हज़ार रुपये तक का सहयोग किया.
क़रीब 10 लाख रुपये तक की रकम स्थानीय दुकानदारों और व्यापारियों से मिली ताकि जो सोचा उसे अंजाम तक पहुंचाया जा सके. इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए 30 लाख रुपये की ज़रूरत थी.
मालाती डोरा बताते हैं कि कुछ महिलाओं ने तो इसके लिए अपने गहने तक गिरवी रख दिये.
गांववालों ने आंध्र प्रदेश के सिरिवारा, चिंतामाला से लेकर ओडिशा के सबकुमारी तक के लिए छह किलोमीटर और कोडामा से बारी तक के लिए पांच किलोमीटर तक की सड़क बिछाई.
चूंकि यह रास्ता आरक्षित वन क्षेत्र से होकर जाता है तो ऐसे में किसी भी निर्माण संबंधी काम के लिए वन अधिनियमों में संशोधन की ज़रूरत थी और अधिकारियों ने उन्हें बताया भी इस योजना को कार्यान्वित करने के मार्ग में बहुत सी अड़चनें हैं.
कई बार अपील करने के बावजूद सड़क निर्माण के कार्य में कोई प्रगति होती नहीं दिखी. ऐसे में युवाओं ने ज़िम्मेदारी उठाई और इस पूरे काम को सिर्फ़ दो महीने के समयांतराल में पूरा करके दिखाया.
सोनू सूद ने भी गांववालों के इस प्रयास की सराहना करते हुए ट्वीट किया.
This mode of transport: Not any more
Well done Heroes.
We need more individuals like these to take responsibilities on their shoulders and inspire others.
Let’s make this happen. 🇮🇳 https://t.co/MYdAOIgTtK
— sonu sood (@SonuSood) August 24, 2020
उन्होंने इसके बाद 24 अगस्त को भी एक ट्वीट किया और लिखा कि वो जल्दी ही गांव आएंगे.
आंध्र प्रदेश पंचायती राज इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की जुलाई साल 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत राज्य के ग्रामीण इलाक़ों में 14,564 किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य था, जो 1309 बस्तियों को जोड़ता.
500 से अधिक लोगों को मैदानी और 250 से अधिक लोगों को पहाड़ी इलाक़ों में लाभांवित करता.
हालांकि आंध्र प्रदेश में योजना का क़रीब 90 प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर लिया गया है लेकिन फिर भी राज्य की बहुत सी ग्रामीण बस्तियां अब भी इसके तहत जुड़ नहीं सकी हैं.
जुलाई 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक़, क़रीब 47,745 बस्तियों में से क़रीब 10,605 बस्तियां 90 फ़ीसदी काम पूरा हो जाने के बाद भी जुड़ नहीं सकी हैं.