साल 2022 में खेल की दुनिया में कामयाबी का परचम लहराने वाली भारतीय महिलाएं
इस साल खेल की दुनिया में सितारा बनकर उभरीं वे भारतीय महिला खिलाड़ी, जिन्होंने अपने अपने खेल में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया.
खेल के मैदान में 2022 का साल भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए शानदार रहा, कई महिला खिलाड़ियों ने इस साल रिकॉर्ड तोड़े, नए मुकाम बनाए.
पूरे साल जिन महिला खिलाड़ियों का प्रदर्शन क़ाबिले तारीफ़ रहा, उन पर एक नज़र:
निखत ज़रीन
कई सालों तक भारतीय महिला मुक्केबाज़ी में एमसी मैरीकॉम का दबदबा रहा.
इस दौरान तेलंगाना के निज़ामाबाद की निखत ज़रीन ने बिना थके अपना अभ्यास जारी रखा और 2022 में 26 साल की उम्र में उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने का करिश्मा कर दिखाया.
ज़रीन के दबदबे का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि मई, 2022 में आयोजित आईबीए वीमेंस वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के 52 किलोग्राम में गोल्ड मेडल हासिल करने के लिए उन्होंने लगातार पांच मैच जीते और इन पांचों मैचों में उन्होंने प्रतिद्वंद्वी को 5-0 से हराया.
निखत बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली पांचवीं भारतीय मुक्केबाज़ हैं. मैरीकॉम के बाद वो दूसरी ऐसी मुक्केबाज़ हैं जिन्होंने विदेशी ज़मीं पर यह कारनामा कर दिखाया.
ऐसे वक्त में जब भारत धार्मिक आधार पर बंटा हुआ दिखता है और महिलाओं के प्रति हिंसा कम नहीं हो रही हो, उस दौर में निखत की कामयाबी का महत्व बहुत ज़्यादा है.
वर्ल्ड चैंपियनशिप की कामयाबी के दो महीने के बाद ज़रीन ने कॉमनवेल्थ खेलों के 50 किलोग्राम वर्ग में डेब्यू करते हुए गोल्ड मेडल हासिल किया.
किसी भी खिलाड़ी के लिए कामयाबी के लिहाज़ से इससे बेहतर साल क्या हो सकता है.
मीराबाई चानू
मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीत कर भारत के लिए पदकों का खाता खोला था.
अपनी उस कामयाबी को उन्होंने इस साल भी बनाए रखा और इस दौरान दो स्वर्णिम कामयाबी हासिल की.
चार फुट 11 इंच लंबी लेकिन भारी शरीर वाली एथलीट मीराबाई ने सबसे पहले बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल हासिल किया और इसके बाद चोटिल कलाई के साथ अपने वजन से दोगुना वजन उठाकर वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल हासिल किया.
मीराबाई चानू की एक ख़ासियत है कि वे हमेशा मुस्कुराती दिखती हैं. बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में 49 किलोग्राम वर्ग में उन्होंने स्नैच में 88 किलोग्राम भार उठाया जबकि क्लीन एंड जर्क में 113 किलोग्राम भार उठाकर गोल्ड मेडल हासिल किया.
उन्होंने कुल मिलाकर 201 किलोग्राम का भार उठाया जो कॉमनवेल्थ खेलों का नया रिकॉर्ड है. मीराबाई ने दूसरे पायदान पर रही खिलाड़ी से 29 किलोग्राम ज़्यादा का भार उठाया था.
कॉमनवेल्थ खेलों से कहीं ज़्यादा मुश्किल चुनौती वर्ल्ड चैंपियनशिप में होती है. सितंबर में इसकी तैयारियों के दौरान मीराबाई की कलाई चोटिल हो गई थी.
वर्ल्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए मीराबाई जब कोलंबिया की राजधानी बोगोटा पहुंचीं तो पूरी तरह से फ़िट नहीं थीं.
28 साल की मीराबाई किस तकलीफ़ में रहीं होंगी, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि स्नैच में दूसरी कोशिश करते हुए 87 किलोग्राम का भार उठाने में उन्हें मुश्किल हो रही थी.
अपनी पूरी शक्ति को समेटते हुए मीराबाई ने तीसरी और अंतिम कोशिश में 87 किलोग्राम का भार उठाया और क्लीन एंड जर्क में 113 किलोग्राम का वजन उठा कर सिल्वर मेडल हासिल किया, यह वर्ल्ड चैंपियनशिप में उनका दूसरा मेडल है.
पीवी सिंधु
पिछले कुछ सालों में भारत की सबसे कामयाब एथलीट रही हैं पीवी सिंधु. कॉमनवेल्थ खेलों में महिला सिंगल्स में पीवी सिंधु ने अपना पहला गोल्ड मेडल हासिल किया.
चार साल पहले फ़ाइनल मुक़ाबले में पीवी सिंधु को साइना नेहवाल के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
लेकिन इस बार खिताबी मुक़ाबले में सिंधु ने कनाडा की मिचेल ली को 21-15, 21-13 से हराया.
फ़ाइनल मुक़ाबले में उनकी बाएं एड़ी में चोट भी लगी और एक बेहतरीन 57 स्ट्रोक्स की रैली में उन्होंने अंक भी गंवाया लेकिन इन सबका असर मैच के नतीजे पर नहीं पड़ा.
उन्होंने 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों में कांस्य पदक जीता, जबकि 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में सिल्वर मेडल हासिल किया और इस बार उन्होंने गोल्ड मेडल जीता.
दो बार ओलंपिक मेडल हासिल कर चुकी एथलीट के लिए कॉमनवेल्थ खेलों का गोल्ड मेडल सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं हो सकता लेकिन 27 साल की सिंधु ने यह ज़रूर दिखाया कि दबाव के पलों में वह अपना बेहतरीन प्रदर्शन दे सकती हैं.
वैसे 2022 में उन्होंने तीन अन्य खिताब- जुलाई में सिंगापुर ओपन, मार्च में स्विस ओपन और जनवरी में सैय्यद मोदी इंटरनेशनल चैंपियनशिप भी हासिल किए थे.
हालांकि इस साल इंजरी के चलते वह पूरे साल सक्रिय भी नहीं रहीं.
प्रियंका गोस्वामी
प्रियंका गोस्वामी ने कम चर्चित खेल में बड़ा मुकाम हासिल किया. कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान उन्होंने 10 किलोमीटर रेस वॉक में सिल्वर मेडल हासिल किया.
उन्होंने 43 मिनट 38.83 सेकेंड के समय के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ समय निकाला लेकिन ऑस्ट्रेलिया की जेमिमा मोंताग से पिछड़ गयीं.
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर से निकलीं 26 साल की प्रियंका गोस्वामी के पिता बस कंडक्टर हैं.
प्रियंका ने पहले तो जिमनास्टिक और ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में हाथ आजमाए. लेकिन आख़िर में रेस वॉक में जम गयीं.
इसके बाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पोर्ट्स, पटियाला पहुंचीं. नेशनल कैंप में शामिल होने से पहले शहर के गुरुद्वारे के लंगर में भी खाना खाया, लेकिन हौसले कम नहीं होने दिए.
भारत की ओर से टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा ले चुकीं प्रियंका की झोली में आज दो-दो राष्ट्रीय रिकॉर्ड्स हैं.
43 मिनट 31 सेकेंड के साथ 10 किलोमीटर रेस वाक के अलावा एक घंटे 28 मिनट और 45 सेकेंड के साथ 20 किलोमीटर रेस वॉक का राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी उनके नाम ही है.
अन्नू रानी
प्रियंका गोस्वामी की तरह ही अन्नू रानी ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में तब इतिहास बनाया जब जेवलिन थ्रो में मेडल जीतने वाली वह पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं.
चौथी कोशिश में 60 मीटर की दूरी तक जेवलिन फेंक कर अन्नू रानी ने बर्मिंघम में कांस्य पदक हासिल किया.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के बहादुरपुर गांव से निकल कर, इस कामायबी तक पहुंचना 30 साल की अन्नू रानी के लिए बहुत आसान नहीं रहा.
उनका परिवार रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा था. ऐसे में अन्नू ने गन्ने के खेत में बांस के भाले फेंककर अपना अभ्यास जारी रखा.
लेकिन पिछले कुछ समय से वह भारत की नंबर एक महिला जेवलिन थ्रोअर हैं. अन्नू टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.
कॉमनवेल्थ खेलों में कांस्य पदक जीतने के अलावा अन्नू रानी इस वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के फ़ाइनल में भी जगह बनाने में कामयाब रहीं.
सविता पूनिया
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम कोई मेडल भले नहीं जीत सकी, लेकिन उम्मीदों का दरवाजा खोल दिया था. 2022 के वर्ल्ड कप से ठीक पहले टीम की कमान रानी रामपाल के बदले अनुभवी गोलकीपर सविता पूनिया को मिली.
इसके बाद कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय टीम मेडल हासिल करने में कामयाब रही, एफ़आईएच प्रो लीग में भी टीम ने मेडल हासिल किया और साल के अंत तक नेशंस कप जीतने का कारनामा भी कर दिखाया.
कॉमनवेल्थ खेलों में रेफ़री के एक विवादास्पद फ़ैसले के चलते भारतीय टीम फ़ाइनल तक नहीं पहुंच सकी लेकिन पूनिया ने यह तय किया था कि टीम खाली हाथ नहीं लौटेगी.
32 साल की पूनिया ने न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ कांस्य पदक के लिए मुक़ाबले में पेनल्टी शूट आउट में तीन बेहतरीन बचाव करके भारत को 2-1 से जीत दिलाई.
एफ़आईएच प्रो लीग के डेब्यू सीज़न में भी कांस्य पदक दिलाने में पूनिया की अहम भूमिका रही. 14 मुक़ाबलों में उन्होंने कम से कम 57 गोल बचाए.
उनके इस दमदार प्रदर्शन को देखते हुए ही लगातार दूसरे साल उन्हें एफ़आईएच ने साल की महिला गोलकीपर का ख़िताब दिया.
बहुत नरमी से बात करने वाली सविता पूनिया गोलपोस्ट के भीतर किसी फौलाद की भांति नज़र आती हैं और मुश्किल मौकों पर टीम का शानदार ढंग से नेतृत्व भी करती हैं.
मनिका बत्रा
मनिका बत्रा बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में चार साल पुरानी कामयाबी नहीं दोहरा सकीं.
चार साल पहले गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों में मनिका ने टीम और सिंगल्स में गोल्ड मेडल हासिल करते हुए कुल चार मेडल हासिल किए थे.
इस बार उन्हें कोई मेडल नहीं मिला. लेकिन टेबल टेनिस सर्किट में उन्होंने जल्दी ही अपनी वापसी की.
थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में आईटीटीएफ-एटीटीयू एशियन कप में मनिका ने अपने से शीर्ष रैंकिंग वाली तीन खिलाड़ियों को हरा कर कांस्य पदक जीता.
वर्ल्ड रैंकिंग में छठे पायदान पर मौजूद जापानी खिलाड़ी हिना हायता को 11-6, 6-11, 11-7, 12-10, 4-11, 11-2 से हराकर कांटिनेंटल इवेंट में मेडल हासिल करने वाली वो पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं.
कांस्य पदक जीतने के सफ़र में 27 साल की मनिका ने वर्ल्ड रैंकिंग में सातवीं पायदान के चेन जिंगतोंग और 23वीं रैंकिंग की चेन सजू-यो को हराया था.
विनेश फोगाट
टोक्यो ओलंपिक में हार के बाद शारीरिक और भावनात्मक मोर्चे पर विनेश फोगाट को काफ़ी संघर्ष करना पड़ा. ऐसे में उन्हें विश्व स्तरीय टूर्नामेंट में वापसी करते हुए देखना काफ़ी सुखद रहा.
भारतीय एथलीटों के मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा शुरू कराने वाली विनेश ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल की हैट्रिक पूरी की.
इससे पहले वह 2014 और 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में भी गोल्ड मेडल हासिल कर चुकी थीं. बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों के बाद उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता.
2022 के कॉमनवेल्थ खेलों में महिलाओं की 53 किलोग्राम फ्रीस्टाइल इवेंट में चार खिलाड़ियों के बीच ही मुक़ाबला था.
फोगाट ने 2021 के वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्ट पदक विजेता सामंथा स्टेवर्ट को महज 30 सेकेंड में हराकर अपने अभियान की शुरुआत की.
इसके बाद उन्होंने नाइजीरिया की मर्सी अदेकुरोये और श्रीलंका की चामोदया मादुरावालेगे डान को हराकर गोल्ड मेडल हासिल किया.
बेलग्रेड में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक के मुक़ाबले में विनेश ने मौजूदा यूरोपीय चैंपियन स्वीडन की एमा मालमग्रेन को 8-0 से हराया.
2019 के नूर सुल्तान में कांस्य पदक हासिल करने के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में यह फोगाट का दूसरा मेडल है.
इन दो कामयाबियों ने विनेश फोगाट को पटरी पर ला दिया है, ऐसे में आने वाले दिनों में उनकी झोली में और कामयाबी आने की उम्मीद है.
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