भारतीय फौजियों ने लिखी थी रेजांग-ला की शौर्यगाथा, गोला-बारूद खत्म हुआ तो चीनी सैनिकों को बूटों से मारा
लेह। बरसों पहले चीन द्वारा भारत पर किए गए आक्रमण से अपनी सरहदों की रक्षा करते हुए हमारे बहुत से जवानों ने शहादत दी थी। चीनी सेना 18 नवंबर 1962 को लेह-लद्दाख की दुर्लभ बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़ आई थी, तब भारतीय सेना की रेजांगला-कंपनी के नाम से जानी जाने वाली चार्ली कंपनी के अहीरवाल-जवानों ने डटकर मुकाबला किया था। उस दौर में भारतीय सैनिकों के पास खाने-पानी के अलावा गोला-बारूद की भी कमी थी, इसके बावजूद हमारी टुकड़ी ने रणभूमि नहीं छोड़ी और अपने बूटों के सहारे चीनी सैनिकों से लड़ते रहे।
चीन को दिया गया था मुंहतोड़ जवाब
लद्दाख की रेजांगला-पर्वत चोटी पर उस युद्ध में हमारे सैकड़ों जवानों की जान जा चुकी थी। उसके बाद चीन ने एकतरफा युद्ध विराम कर दिया था। युद्ध समाप्ति के 3 महीने बाद बर्फ पिघलने पर हमारे कुछ सैनिकों की लाशें मिलीं। तब वहां हमारे शहीद जवानों के हाथ में ग्रेनेड और टूटे हुए हथियार दिख रहे थे।
आज ही नया युद्ध स्मारक समर्पित
भारतीय लड़ाईयों के इतिहास का यह वह युद्ध था, जब विशाल चीनी सेना को आगे बढ़ने से रोका गया। मेजर शैतान सिंह 1962 के युद्ध में ही शहीद हुए थे। और, रेजांगला-युद्ध ऐसे बहुत से शूरवीरों की बहादुरी की दास्तां है। इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों की स्मृति में आज एक नया युद्ध स्मारक सेना को समर्पित किया गया है। युद्ध स्मारक के उद्घाटन के लिए देश के मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह खुद लेह पहुंचे।
राजनाथ ने कहा, अदम्य साहस की मिसाल
राजनाथ यहां पर 1962 की जंग में हिस्सा लेने वाले जवानों को श्रद्धांजलि देने भी गए और रेजांग-ला में नया युद्ध स्मारक समर्पित किया। इस दौरान उन्होंने लिखा, ''रेजांग-ला की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों की स्मृति में आज एक नया युद्ध स्मारक समर्पित किया गया। यह स्मारक सेना द्वारा रेज़ांग ला में प्रदर्शित उस दृढ़ संकल्प और अदम्य साहस की मिसाल है, जो केवल इतिहास के पन्नो में ही अमर नहीं है, बल्कि हमारे दिलों में भी धड़कता है।'
वीर-अहीर रेजांगला की गाथा
सेना के शिलालेखों पर लिखा है कि, रेजागंला युद्ध के वक्त 1962 में दीवाली के दिन चीन के साथ मुकाबला करके सबसे ऊंची चोटी पर शहादत की अमर गाथा लिखी लिखी गई थी। वहीं, चुशुल (लद्दाख) की हवाई पट्टी पर बने विशाल द्वार पर भी लिखा है- वीर अहीर रेजांगला की गाथा। रेजांगला की यह शौर्य गाथा भारतीय जवानों ने 18 नवंबर 1962 के दिन ही लिखी थी। जिसमें हीरवाल के बहादुरों की टुकड़ी ने जी-जान से मुकाबला किया था।
तेजस्वी ने टि्वटर पर यह लिखा
आज बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने अपने टि्वटर पर लिखा, ''1962 के भारत-चीन युद्ध में आज ही के दिन रेज़ांगला में 120 वीर भारतीय जवानों ने अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए 1300 चीनियों को मार गिराया था। उन वीर सपूतों की याद में रेजांगला के चुशूल में "अहीर धाम" स्मारक भी बना हुआ है जो इन वीर सैनिकों की बहादुरी और साहस का गवाह है।
अब रेजांगला के शहीदों की याद में हर साल कार्यक्रम किए जाते हैं। कहा जाता है कि, आज भी रेजांगला कंपनी के नाम से जानी जाने वाली चार्ली कंपनी में अहीरवाल क्षेत्र के जवान शामिल हैं। वहीं, रेवाड़ी स्थित रेजांगला स्मारक पर उन शहीदों के नाम अंकित हैं।
लद्दाख: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लेह पहुंचे। वे यहां पर 1962 की जंग में हिस्सा लेने वाले सेना के जवानों को रेजांग ला में श्रद्धांजलि देंगे और उन्हें नया युद्ध स्मारक समर्पित करेंगे। pic.twitter.com/aeTnHr89xy
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 18, 2021
18 नवंबर 1962 को लेह-लद्दाख की दुर्लभ बर्फीली पहाड़ियों पर चीन के आक्रमण के बाद भारतीय सेना के जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया था, जिसमें देश के 114 जवान शहीद हो गए थे। शहीद होने वाले जवानों में सबसे ज्यादा अहीरवाल क्षेत्र के जवान थे। जय हिंद pic.twitter.com/aiHEUQlqv3
— Om Prakash Dhankar (@OPDhankar) November 18, 2021
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