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कैसी थी अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की दोस्ती

बाबरी मस्जिद प्रकरण के बाद पार्टी को घाटा हुआ और उत्तर प्रदेश के चुनावों में उसके विधायकों की संख्या घट गई. विधानसभा चुनावों में ख़राब प्रदर्शन के बाद आडवाणी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे.

दो साल बाद हवाला कांड में जब आडवाणी का नाम आया तो बदलाव की आहट बढ़ने लगी. लेकिन आरएसएस के तब के सरसंघचालक राजेंद्र सिंह के कहने के बाद आडवाणी ने खुद इस बात का ऐलान किया कि वो अगले लोकसभा चुनावों में खड़े नहीं होंगे, उनकी जगह वाजपेयी चुनावी मैदान में होंगे.

By BBC News हिन्दी
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अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी
Getty Images
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के साथ ही भारतीय राजनीति में नंबर एक कही जाने वाली अटल-आडवाणी की जोड़ी टूट गई.

यह जोड़ी उनके राजनीतिक संन्यास और 2009 में बीमार होने के बाद से अप्रासंगिक ज़रूर हो गई थी पर इसे भारतीय राजनीति में सदियों तक याद किया जाता रहेगा.

वाजपेयी के संन्यास के बाद लाल कृष्ण आडवाणी राजनीति में बने रहे और अभी भी सांसद हैं, लेकिन देश की राजनीति में उनकी प्रासंगिकता अब बहुत कम रह गई है.

एक वक़्त था जब इस जोड़ी ने देश की राजनीति को प्रभावित किया. अटल बिहारी वाजपेयी उम्र में आडवाणी से बड़े थे.

दोनों की पहली मुलाक़ात 50 के दशक में राजस्थान में हुई थी. वाजपेयी उस समय जन संघ के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ राजस्थान की यात्रा थे. वहीं उनकी मुलाक़ात आडवाणी से हुई थी.

जब वाजपेयी लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे और आडवाणी को जन संघ के विजयी सांसदों की मदद के लिए दिल्ली बुलाया गया था, दोनों एक दूसरे के नजदीक आए और दशक बीतते बीतते दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

अटल बिहारी वाजपेयी, राजमाता विजया राजे सिंधिया, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मदन लाल खुराना, शांता कुमार
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तब दोनों अविवाहित थे और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ वे रहने लगे. पार्टी के लिए दोनों साथ मिलकर काम तो करते ही थे, ख़ाली वक़्त भी साथ में गुजारते थे. वो साथ में फ़िल्में देखते और खाते-पीते भी थे.

साल 1957 में वाजपेयी को जन संघ के तत्कालीन अध्यक्ष दीन दयाल उपाध्याय के कहने पर लोकसभा भेजा गया था. सदन में अपनी भाषण कला से उन्होंने एक अलग पहचान बनाई और जल्द ही एक महत्वपूर्ण विपक्षी नेता के रूप में पहचाने जाने लगे.

अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी
Reuters
अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी

बुरे वक़्त में आडवाणी का साथ

आडवाणी उनके राजनीतिक कार्यों में मदद करते थे. वो उनके सहयोगी भी थे. वाजपेयी को आडवाणी के सहयोग की ज़रूरत इसलिए भी थी क्योंकि वो जन संघ के एक महत्वपूर्ण नेता बलराज मधोक के निशाने पर हुआ करते थे.

मधोक को लगता था कि वाजपेयी कांग्रेस के जासूस हैं क्योंकि वो ग्वालियर से आते थे. सांसद बनने के बाद वो दिल्ली में रहने लगे.

वाजपेयी को लगता था कि भारत जैसे देश में संतुलित उदार दृष्टिकोण की ज़रूरत है ना कि कट्टर विचारों की. यही मधोक की परेशानी बढ़ाती थी. उन्होंने इस बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक एम एस गोवलकर से शिकायत भी की थी.

मधोक को वाजपेयी का जीने का तरीका भी खटकता था.

अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी
AFP
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी

दोस्ती के लिए...?

वाजपेयी की ग्वालियर में साथ पढ़ने वाली सहपाठी राजकुमारी कौल से काफी नजदीकी थी. वो उनसे शादी करना चाहते थे पर उस समय की रूढ़िवादी विचारों के चलते ऐसा नहीं हो पाया.

मधोक ने इस बारे में भी सरसंघचालक से शिकायत की थी पर उन्होंने इसे ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया. इन सभी के बीच आडवाणी का साथ उन्हें मिलता रहा.

जन संघ के अध्यक्ष दीन दयाल उपाध्याय की 1968 में अचानक हुई मौत के बाद वाजपेयी पार्टी के प्रमुख बने. वो पांच सालों तक अध्यक्ष रहे और कार्यकाल समाप्ति के बाद उन्होंने पार्टी की कमान लाल कृष्ण आडवाणी को सौंप दी.

अपने कार्यकाल के दौरान आडवाणी ने मधोक को पार्टी से निष्कासित कर दिया, यह वाजपेयी के लिए एक राहत जैसी बात थी.

अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी
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अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी

भाजपा की शुरुआत

साल 1975 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी और आडवाणी बैंगलोर में एक बैठक कर रहे थे, जहां दोनों को नाश्ते के वक़्त गिरफ़्तार कर लिया गया.

गिरफ़्तारी के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया जहां कुछ वक़्त तक दोनों साथ रहे, फिर वाजपेयी की तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था.

मोरारजी देसाई की सरकार में दोनों मंत्री बनाए गए थे. अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्रालय तो आडवाणी को सूचना-प्रसारण मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई थी.

जनता पार्टी की सरकार के दौरान भी दोनों में नजदीकियां बनी रही. जब संघ के मुद्दे पर जनता पार्टी की सरकार गिरी तो जन संघ के कुछ नेताओं के साथ वाजपेयी ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की.

https://www.youtube.com/watch?v=VGPJ4UfLrEU

पार्टी में आडवाणी का ओहदा वाजपेयी के बाद दूसरे नंबर का था. भाजपा की नीति गांधी के समाजवाद पर आधारित थी.

1984 में हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी पूरे देश में महज दो सीटों पर अपनी जीत दर्ज कर पाई.

आरएसएस के प्रमुख बालासाहेब देवरस ने राजनीतिक पैठ बनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. आडवाणी भाजपा के अध्यक्ष बने और 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने तक वो इस पद पर बने रहे.

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उनके कार्यकाल में वाजपेयी अलग-थलग रहें. ऐसी भी कहानियां हैं कि वाजपेयी इस दौरान पूरे दृश्य से गायब रहे और यह समझा जा रहा था कि वो पार्टी भी छोड़ सकते हैं. पर ऐसा नहीं हुआ.

दोनों के बीच मतभेद

बाबरी मस्जिद प्रकरण के बाद पार्टी को घाटा हुआ और उत्तर प्रदेश के चुनावों में उसके विधायकों की संख्या घट गई. विधानसभा चुनावों में ख़राब प्रदर्शन के बाद आडवाणी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे.

दो साल बाद हवाला कांड में जब आडवाणी का नाम आया तो बदलाव की आहट बढ़ने लगी. लेकिन आरएसएस के तब के सरसंघचालक राजेंद्र सिंह के कहने के बाद आडवाणी ने खुद इस बात का ऐलान किया कि वो अगले लोकसभा चुनावों में खड़े नहीं होंगे, उनकी जगह वाजपेयी चुनावी मैदान में होंगे.

इसके बाद वाजपेयी के नेतृत्व में 1996, 1998 और 1999 में एनडीए की सरकार बनी और वो प्रधानमंत्री.

उनकी सरकार में आडवाणी गृह मंत्री थे लेकिन वाजपेयी खुद को ब्रजेश मिश्रा, जसवंत सिंह और जॉर्ज फर्नांडिस के साथ ज़्यादा देखे जाते थे. इस तरह आडवाणी को खुद से वाजपेयी ने दूर रखा.

https://youtu.be/Gz3kBkz501Q

साल 2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद दोनों में मतभिन्नता साफ़ देखने को मिली. वाजपेयी चाहते थे कि नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री के पद से हटाया जाए लेकिन आडवाणी ने ऐसा होने नहीं दिया.

इसके बाद आडवाणी उप प्रधानमंत्री भी बने और वाजपेयी का कद धीरे-धीरे घटने लगा. एक बार जब वाजपेयी अपने घुटने का इलाज कराना था, उन पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का भी दबाव बनाया गया ताकि आडवाणी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ सके.

लेकिन आडवाणी को यह महसूस हुआ कि वो वाजपेयी की जगह नहीं ले पाएंगे और जब वाजपेयी की राजनीति से दूरी बढ़ी, आडवाणी की राजनीतिक पारी भी धीरे-धीरे समाप्त होती दिखने लगी.

वाजपेयी की राजनीति से संन्यास की घोषणा के बाद आडवाणी का कद भी घटा और नरेंद्र मोदी ने उनकी जगह ले ली.

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English summary
How was the friendship of Atal Bihari Vajpayee and LK Advani
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