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ज्ञानवापी विवाद: 'ये-मस्जिद-कभी-मंदिर-था' - बहस कितनी जायज़?

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे के बाद भारत एक बार फिर 'ये-मस्जिद-कभी-मंदिर-था' मसले पर बहस कर रहा है. आख़िर धर्मस्थलों को तोड़े जाने के मामले में क्या रहा है भारत का इतिहास. एक पड़ताल.

By BBC News हिन्दी
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काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद
Robert Nickelsberg/Getty Images
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने का दावा.

ताजमहल को तेजो महालय मंदिर बताना, बंद 22 कमरों को लेकर विवाद.

क़ुतुब मीनार परिसर की क़ुव्वतुल इस्लाम मस्जिद में पूजा अर्चना की माँग.

मथुरा में ज़िला अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में याचिका पर सुनवाई की अनुमति दी.

हिंदू महासभा का दावा- दिल्ली जामा मस्जिद के नीचे देवी-देवताओं की मूर्ति, खुदाई के लिए लिखा पत्र.

अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद 9 नवंबर, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया था. अपने भाषण में उन्होंने कहा था, "इस फ़ैसले के बाद हमें ये संकल्प करना होगा कि अब नई पीढ़ी नए सिरे से 'न्यू इंडिया' के निर्माण में जुटेगी. आइए एक नई शुरुआत करते हैं."

https://www.youtube.com/watch?v=YYpZ2Uwh40U

तीन साल बाद भारत में वापस एक बार फिर 'ये-मस्जिद-कभी-मंदिर-था' पर बहस हो रही है. अचानक अदालतों में याचिकाओं की बाढ़-सी आ गई है. धार्मिक राष्ट्रवाद पर रिसर्चर शम्सुल इस्लाम कहते हैं, "लोग 5,000 साल पुरानी सभ्यता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं."

ऐसे वक़्त में जब यूक्रेन-रूस युद्ध से दुनिया में सामरिक बदलाव हो रहे हैं, कोरोना से 62 लाख लोगों की मौत के बाद भी वायरस का ख़तरा बना हुआ है और जब साल 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से दुनिया भर में सबसे ज़्यादा क़रीब 17 लाख लोग मारे गए.

देश इन दिनों जब गंभीर आर्थिक, सामाजिक और वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब भारत में हिंदू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद, 400, 500, 600 या हज़ार साल पहले किसने, कितने मंदिर तोड़े और क्यों, और अब उसका क्या हो - इस पर बहस ज़ोर पकड़ रही है.

12 मई को भाजपा प्रवक्ता अनिला सिंह ने ताजमहल की तस्वीर ट्वीट करके कहा था, 'मक़बरा, महल कैसे हो गया भाई.'

https://twitter.com/AnilaSingh_BJP/status/1524615622432329728

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, "क्या मौलिक अधिकार एक ही अल्पसंख्यक समुदाय के लिए है? जब बहुसंख्यक समुदाय अपने अधिकार की बात करता है तो उसे क्यों सांप्रदायिक बता दिया जाता है?"

ज्ञानवापी मस्जिद में 'शिवलिंग' मिलने की ख़बर पर उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने 'हैशटैग' #GyanvapiTruthNow के साथ ट्वीट करके कहा, "'सत्य' को आप कितना ही छुपा लीजिए, लेकिन एक दिन सामने आ ही जाता है क्योंकि 'सत्य ही शिव' है."

https://twitter.com/kpmaurya1/status/1526113341562769408

ज्ञानवापी से फिर छिड़ी बहस

अभी बहस के केंद्र में काशी की ज्ञानवापी मस्जिद है. दावा किया जाता है कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह कभी मंदिर था.

ब्रिटिश लाइब्रेरी में विश्वनाथ मंदिर की तस्वीर के साथ दी गई जानकारी में ज़िक्र है कि 17वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने मंदिर को तबाह कर दिया था और आज के मंदिर को 1777 में इंदौर की अहिल्या बाई होल्कर ने बनाया था.

इतिहासकार हरबंस मुखिया कहते हैं, "काशी और मथुरा का मंदिर औरंगज़ेब ने तोड़ा था, वो उसके हुक़्म से टूटा था. उसी औरंगज़ेब ने पता नहीं कितने मंदिरों और मठों को दान भी दिया. जहां वो एक तरफ़ मंदिरों को तोड़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ़ वो मंदिरों और मठों को दान, ज़मीन और पैसे दे रहा था."

लेकिन आज की तारीख़ में इतिहास की जटिलता को समझना और समझाना शायद ही आसान है. और ऐसे माहौल में सवाल है कि आप इतिहास की सुई को कितना पीछे ले जाएंगे और इससे क्या हासिल करेंगे?

कहां तक संशोधन?

लेखक और प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल पूछते हैं, "ये सवाल पूरे समाज को अपने आप से पूछना पड़ेगा कि इस तरह का ऐतिहासिक करेक्शन या संशोधन आप कहां तक करेंगे?"

अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया अपने संपादकीय में लिखता है, "इतिहास ख़ूबसूरत नहीं है. लेकिन एक आधुनिक देश, ख़ासकर एक विविधतापूर्ण लोकतंत्र को, जो एक बड़ी वैश्विक आर्थिक ताक़त बनना चाहता है, उसे अपनी ऊर्जा इतिहास पर दोबारा मुक़दमेबाज़ी में ख़र्च नहीं करनी चाहिए."

अख़बार लिखता है कि देश पहले से ही कई सांप्रदायिक मसलों का सामना कर रहा है, तब एक और 'मस्जिद-पहले-मंदिर-था' आयाम जोड़ने के ख़तरनाक नतीजे हो सकते हैं.

ज्ञानवापी मसले के सुप्रीम कोर्ट पहुँचने पर अख़बार ने लिखा, "सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालत को सीधी भाषा में बोलना चाहिए कि वो किसी भी याचिका को सुनते वक़्त 1991 (उपासना स्थल विशेष प्रावधान क़ानून) के क़ानून का पालन करें और किसी भी न्यायिक उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा."

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) क़ानून, 1991 कहता है कि 1947 में जो धार्मिक उपासना स्थल जिस स्थिति में था, वैसा ही बना रहे.

लेखक प्रताप भानु मेहता के मुताबिक़, 'अयोध्या के बाद काशी और मथुरा में मंदिरों को वापस करने की बात करना बहुसंख्यक शक्ति का इस्तेमाल है, अब जबकि सत्ता बहुसंख्यकों के पास है.'

प्रताप भानु मेहता
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प्रताप भानु मेहता

वो लिखते हैं, "इन पवित्र स्थानों को वापस लेने का मक़सद धर्म नहीं है. ज्ञानवापी मस्जिद के रहने से काशी विश्वनाथ के प्रति भक्ति पर असर नहीं पड़ा है या फिर वो कम नहीं हुई है. इसे वापस लेने का मक़सद ये दिखाना है कि हिंदुओं के पास ताक़त है और मुसलमानों को उनकी जगह दिखाई जाए."

उधर 'रिक्लेम टेंपल्स' नाम के गुट से जुड़े विमल वी के मुताबिक़ मुस्लिम शासकों ने अपनी 'संस्कृति' के तहत और 'वैचारिक श्रेष्ठता' दिखाने के लिए एक लाख हिंदू मंदिरों को बर्बाद कर दिया और अब मंदिरों को वापस लेने को हिंदुओं को 'ऐतिहासिक न्याय' के चश्मे से देखा जाना चाहिए.

विमल वी के मुताबिक़, इन मंदिरों पर कथित तौर पर 'अतिक्रमण' करने वाले लोगों को निकाल देना चाहिए. उनके अनुसार, 'रिक्लेम टेंपल्स' एक स्वयंसेवी संस्था है और उनका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है. सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से हैंडल मिल जाएंगे, जो पूर्व में हिंदू मंदिरों के साथ कथित अत्याचार की बातें करते हैं.

यहां तक कि पूर्व मंत्री और भाजपा नेता केएस ईश्वरप्पा ने एक बयान में कहा है कि 'मुग़लों ने 36 हज़ार हिंदू मंदिरों को ढहाया और उन्हें क़ानूनी तौर पर वापस लिया जाना चाहिए.'

कुछ हिंदू संगठनों का दावा है कि मुस्लिम शासकों ने क़रीब 60,000 हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया, लेकिन डीएन झा और रिचर्ड ईटन जैसे इतिहासकारों के मुताबिक़, 80 हिंदू मंदिरों को नुक़सान पहुँचाया गया था.

ध्वस्त हिंदू मंदिरों की संख्या पर इतिहासकार हरबंस मुखिया कहते हैं, "60 के दशक में अख़बारों में 300 मंदिरों के तोड़े जाने की संख्या आनी शुरू हुई थी. उसके बाद अगले दो-तीन सालों में 300 से 3,000 हो गए. उसके बाद 3,000 से 30,000 हो गए."

कहा जाता है कि पल्लव राजा नरसिंह वर्मन-प्रथम ने चालुक्य राजधानी वातापी (बादामी) से गणेश प्रतिमा लूटी थी.
Getty Images
कहा जाता है कि पल्लव राजा नरसिंह वर्मन-प्रथम ने चालुक्य राजधानी वातापी (बादामी) से गणेश प्रतिमा लूटी थी.

हिंदुओं द्वारा मंदिरों में लूट?

ऐसा नहीं है कि पूर्व के भारत के हिंदू मंदिरों में लूटपाट सिर्फ़ बाहर से आए ग़ैर-हिंदू आक्रमणकारियों ने ही की.

इतिहासकार रिचर्ड ईटन लिखते हैं, "मंदिरों में स्थापित भगवान और उनके राजसी संरक्षकों के बीच नज़दीकी रिश्तों की वजह से शुरुआती मध्यकालीन भारत में राजसी घरानों के आपसी झगड़ों की वजह से मंदिरों का अपमान हुआ."

ईटन लिखते हैं कि साल 642 में स्थानीय मान्यताओं के अनुसार पल्लव राजा नरसिंह वर्मन-प्रथम ने चालुक्य राजधानी वातापी (बादामी) से गणेश की प्रतिमा लूटी थी.

आठवीं सदी में बंगाली सेना ने राजा ललितादित्य पर बदले की कार्रवाई की और उन्हें लगा कि वो कश्मीर में ललितादित्य साम्राज्य में राजदेव विष्णु वैकुण्ठ की प्रतिमा को बर्बाद कर रहे हैं.

इतिहासकार हरबंस मुखिया बताते हैं कि हिदुओं ने न सिर्फ़ मंदिरों को लूटा, बल्कि मंदिरों पर हमला करके मूर्तियों को उठाकर ले गए.

वो कहते हैं, "कश्मीर के राजा हर्ष ने तो कमाल ही कर दिया था. उन्होंने एक अफ़सर बना दिया था जिसका काम था मूर्तियां उखाड़ना."

ईटन लिखते हैं कि नौंवी शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा गोविंद-तृतीय ने कांचीपुरम पर हमला किया और उस पर क़ब्ज़ा कर लिया. इससे श्रीलंका के राजा इतने डर गए कि उन्होंने सिंहला देश का प्रतिनिधित्व करने वाली कई (शायद भगवान बुद्ध की) प्रतिमाओं को भेजा जिन्हें राष्ट्रकूट राजा ने अपनी राजधानी के शिव मंदिर में स्थापित किया.

क़रीब-क़रीब उसी वक़्त पांड्य राजा श्रीमारा श्रीवल्लभ ने श्रीलंका पर हमला किया और वहां के आभूषण महल में स्थापित सोने के बुद्ध की प्रतिमा को अपनी राजधानी लेकर आए.

तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर
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तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर

इतिहासकार ईटन लिखते हैं कि 11वीं सदी के शुरुआती सालों में चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने अपनी राजधानी को उन प्रतिमाओं से सजाया जिन्हें उन्होंने कई राजाओं से छीना था. इनमें चालुक्य राजा से छीनी गई दुर्गा और गणेश की मूर्ति, उड़ीसा के कलिंग से छीनी गई भैरव, भैरवी और काली की प्रतिमाएं, पूर्वी चालुक्य से छीनी गई नंदी की प्रतिमाएं शामिल थीं.

साल 1460 में ओडिशा के सूर्यवंशी गजपति राजवंश के संस्थापक कपिलेंद्र ने युद्ध के दौरान शिव और विष्णु मंदिरों को ढहाया.

ईटन लिखते हैं कि ज़्यादातर मामलों में राजा शाही मंदिरों को लूटते थे और भगवान की मूर्तियों को लेकर चले जाते थे, लेकिन ऐसे भी मामले सुनाई दिए जिनमें हिंदू राजा अपने विरोधियों के राज मंदिरों को बर्बाद कर देते थे.

इतिहासकार हरबंस मुखिया के मुताबिक़, 'राज परिवारों को मंदिरों से वैधता मिलती थी और विरोधियों के मंदिरों को तोड़ने का मतलब होता था- विरोधी की शक्ति और वैधता के स्रोतों पर हमला करना'.

वो कहते हैं, "सवाल पूछे जाते थे कि आप कैसे राजा हैं जो अपने मंदिर को नहीं बचा सके." हरबंस मुखिया के मुताबिक़, 'मंदिरों पर हमले की एक और वजह उनमें पाया जाने वाला सोना, हीरे-जवाहरात होते थे'.

ईटन कहते हैं कि 'ये पक्के तौर पर कभी पता नहीं चल पाएगा कि कितने हिंदू मंदिरों का अपमान किया गया, लेकिन 12वीं से 18वीं सदी के बीच 80 हिंदू मंदिरों के अपमान के क़रीब-क़रीब पक्के सबूत मिले हैं. हालांकि ये आंकड़ा कई राष्ट्रवादी हिंदुओं के 60 हज़ार के आंकड़े से बहुत दूर है.'

ईटन कहते हैं कि जब मुस्लिम तुर्क आक्रमणकारियों ने हमला किया तो उन्होंने भी वही सब किया, चाहे वो तुग़लक़ साम्राज्य के शासक हों या फिर लोधी साम्राज्य के.

इतिहासकार डीएन झा
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इतिहासकार डीएन झा

हिंदू राजाओं द्वारा बौद्ध तीर्थस्थलों की बर्बादी?

इतिहासकार डीएन झा ने अपनी किताब 'अगेंस्ट द ग्रेन- नोट्स ऑन आइडेंटिटी एंड मीडिएवल पास्ट' में ब्राह्मण राजाओं के हाथों बौद्ध स्तूप, विहार और तीर्थ स्थलों की तबाही की बात की है. हालांकि उनके दावों को चुनौती भी दी गई है.

हिंदुओं में अत्याचारपूर्ण जाति व्यवस्था और जटिल कर्मकांडों की वजह से प्राचीन भारत में लोग बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित होने लगे थे और माना जाता है कि हिंदू धर्म के अनुयायी इसे ख़तरे के तौर पर देखने लगे थे.

एक सोच है कि इससे निपटने के लिए हिंदुओं ने बौद्धों के ख़िलाफ़ अत्याचार किया. बौद्ध धर्म के कुछ पहलुओं का इस्तेमाल कर बौद्धों को वापस अपनी ओर खींचा और बुद्ध को हिंदू भगवान विष्णु का अवतार बताना शुरू कर दिया. हिंदू धर्म के पुनर्जागरण में आचार्य शंकर का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है.

डीएन झा लिखते हैं कि 'एक तरफ़ जहां सम्राट अशोक भगवान बुद्ध को मानने वाले थे, वहीं उनके बेटे और भगवान शिव के उपासक जालौक ने बौद्ध विहारों को बर्बाद किया.'

डीएन झा राजा पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का बड़ा उत्पीड़क बताते हैं जिनके बारे में माना जाता है कि उनकी विशाल सेना ने बौद्ध स्तूपों को बर्बाद किया, बौद्ध विहारों को आग लगा दी और सागल (आज का सियालकोट) में बौद्धों की हत्या तक की.

पुष्यमित्र शुंग के बारे में डीएन झा लिखते हैं कि हो सकता है कि उन्होंने पाटलिपुत्र (आज के पटना) में भी बौद्ध विहारों आदि को बर्बाद किया हो. झा लिखते हैं कि शुंग शासनकाल में बौद्ध स्थल सांची तक में कई भवनों के साथ तोड़फोड़ के सबूत मिले हैं.

चीनी यात्री ह्वेनसांग की भारत यात्रा का हवाला देते हुए झा कहते हैं कि शिव भक्त मिहिरकुल ने 1,600 बौद्ध स्तूपों और विहार को नष्ट किया और हज़ारों बौद्धों को मार दिया.

प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में डीएन झा लिखते हैं कि इसके पुस्तकालयों को 'हिंदू कट्टरपंथियों ने आग लगा दी' और इसके लिए ग़लत तरीक़े से बख़्तियार खिलजी को ज़िम्मेदार ठहरा दिया, जो वहां कभी गए ही नहीं थे.

डीएन झा लिखते हैं कि इस बात में कोई शक़ नहीं है कि पुरी ज़िले में स्थित पूर्णेश्वर, केदारेश्वर, कंटेश्वर, सोमेश्वर और अंगेश्वर को या तो बौद्ध विहारों के ऊपर बनाया गया या फिर उनमें उनके सामान का इस्तेमाल किया गया.

हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय में बौद्ध स्टडीज़ के पूर्व प्रोफ़ेसर केटीएस सराओ, डीएन झा के विचारों को 'पक्षपातपूर्ण' और 'संदेहास्पद' बताते हैं.

वो कहते हैं, "ब्राह्मणों, बौद्धों के बीच बहस या बौद्धिक स्तर पर मतभेद थे, लेकिन ये कहना कि उनमें आपस में किसी तरह की हिंसा हुई, ये सही नहीं है. मुझे आश्चर्य है कि लोग कहते हैं कि हज़ारों को मार दिया गया. ऐसा नहीं हुआ."

'द डिक्लाइन ऑफ़ बुद्धिज़्म इन इंडिया' के लेखक प्रोफ़ेसर सराओ के मुताबिक़, 'हो सकता है कि दोनों पक्षों के बीच स्थानीय या व्यक्तिगत स्तर पर हिंसा हुई हो, लेकिन कोई भी बड़े स्तर पर हिंसा नहीं हुई.'

नालंदा विश्वविद्यालय
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नालंदा विश्वविद्यालय

प्रोफ़ेसर सराओ के मुताबिक़, बख़्तियार खिलजी और उसके लोगों ने नालंदा विश्वविद्यालय को तबाह किया और ऐसे कोई सबूत नहीं हैं कि पुष्यमित्र शुंग जैसे ब्राह्मण राजाओं के राज में बौद्धों या फिर उनके तीर्थ स्थलों के ख़िलाफ़ हिंसा हुई या फिर ब्राह्मणों ने बौद्धों के ख़िलाफ़ अत्याचार किया.

वो ऐसी सोच को विक्टोरियाकालीन इंडोलॉजिस्टों का फैलाया हुआ 'ज़हर' बताते हैं. वो कहते हैं, "प्राचीन काल में अल्पसंख्यकों का संस्थागत उत्पीड़न नहीं होता था."

हालांकि ख़ुद के धर्म को सच्चा मानने वालों का दूसरे धर्म के लोगों के ख़िलाफ़ अत्याचार सिर्फ़ भारत में ही नहीं, भारत के बाहर भी देखने को मिलता है. अहिंसा बौद्ध धर्म के केंद्र में है, लेकिन हमने देखा है कि श्रीलंका और म्यांमार में बहुसंख्यकों पर दूसरे धर्म के लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने के आरोप लगे हैं.

भारत के पड़ोस पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान की कहानी अलग नहीं है. हाल ही में इस्तांबुल में पूर्व में कथिड्रल रहे हागिया सोफ़िया को मस्जिद में बदल दिया गया. यूरोप के धार्मिक युद्धों में गिरिजाघरों में हिंसा देखने को मिली.

लेकिन आज के भारत में इतिहास के इतने जटिल हिस्सों को टीवी पर होने वाली बहसों में पेश करने के तरीक़ों पर इतिहासकार हरबंस मुखिया कहते हैं, "पॉपुलर हिस्ट्री आसान होती है और प्रोफ़ेशनल हिस्ट्री जटिल. एक प्रोफ़ेशनल हिस्ट्री की किताब 1,000 लोग पढ़ेंगे. टीवी चैनल को 10 लाख लोग देखेंगे. (तो सुनने को मिलता है) लिखते रहिए 1,000 लोगों के लिए, हम तो 10 लाख लोगों तक पहुँच जाएंगे."

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English summary
history of India in terms of demolition of shrines
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