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हिजाब विवाद: SC में जोरदार बहस, हिंदू महिलाओं का भी आया जिक्र, किसने क्या कहा ? जानिए

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नई दिल्ली, 20 सितंबर: हिजाब विवाद पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में आठवें दिन भी सुनवाई जारी रही और आगे की सुनवाई कल फिर से होगी। आज हिजाब पर कर्नाटक सरकार के फैसले को लेकर इस विवाद से जुड़े सभी पक्षों की ओर से जोरदार दलीलें पेश की गई हैं। कर्नाटक में शिक्षण संस्थाओं में हिजाब या कोई भी विशेष गैर-आवश्यक धार्मिक पहचान वाली ड्रेस पहनने पर पाबंदी के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धुलिया की अदालत में चल रही है। इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे जबर्दस्त पैरवी कर रहे हैं। वहीं कर्नाटक सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी ठोस दलीलें पेश की हैं।

हिजाब पर सरकार की दलील सही नहीं- मुस्लिम पक्ष

हिजाब पर सरकार की दलील सही नहीं- मुस्लिम पक्ष

कर्नाटक हिजाब बैन के मसले पर मुस्लिम छात्राओं की पैरवी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने हिंदू परंपराओं और हिंदू महिलाओं का भी उदाहरण पेश किया है। दवे ने कहा कि सरकार का कहना है कि संविधान के आर्टिकल 25 और आर्टिकल 26 के तहत सिर्फ धर्म के अभिन्न और अनिवार्य हिस्से को ही संरक्षण मिला हुआ है। सरकार कह रही है कि हिजाब धार्मिक अभ्यास में शामिल हो सकता है, लेकिन यह धर्म का अभिन्न और अनिवार्य अंग नहीं है। इसलिए यह संविधान द्वारा संरक्षित नहीं है। लेकिन, दवे का कहना है कि सरकार की ओर से दी जा रही यह दलील सही नहीं है।

हिजाब गरिमा का प्रतीक- मुस्लिम पक्ष

हिजाब गरिमा का प्रतीक- मुस्लिम पक्ष

दवे ने पहले सबरीमाला मंदिर का तर्क दिया कि जो भी वहां जाते हैं, वह काला कपड़ा ही पहनते हैं। इसपर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यह मामला अभी 9 जजों की संविधान पीठ के पास लंबित है, हम उसपर नहीं जा रहे। जज ने कहा कि यूनिफॉर्म एक बेहतर व्यवस्था है, इससे अमीर हो या गरीब, हर छात्र एक तरह दिखते हैं। लेकिन, दवे ने यह बताने की कोशिश की कि अगर लड़कियां हिजाब पहनना चाहती हैं तो इससे किसके संवैधानिक अधिकार का हनन होता है? उनके मुताबिक हिजाब उनकी गरिमा का प्रतीक है। उनका कहना है कि जैसे हिंदू महिलाएं साड़ी से सिर ढकती हैं, उसी तरह हिजाब में मुस्लिम महिला गरिमापूर्ण नजर आती है। दवे ने कहा कि 75 साल बाद ही इसपर प्रतिबंध लगाने का विचार क्यों आया? दवे बुली बाई सुल्ली डील्स का हवाला देने से भी नहीं चूके। दवे ने अदालत में ही कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय को टारगेट किए जाने का आरोप भी लगाना शुरू कर दिया, इसपर सॉलिसिटर जनरल ने ऐतराज जताते हुए कहा कि वह कानून पर ही दलीलें रखें।

कर्नाटक सरकार का आदेश असंवैधानिक- दुष्यंत दवे

कर्नाटक सरकार का आदेश असंवैधानिक- दुष्यंत दवे

इसके आगे भी दवे अदालत के सामने अपना नरेटिव पेश करते रहे। उन्होंने कहा कि एक समुदाय के मन में डर नहीं बिठाया जा सकता। देश में 160 मिलियन मुसलमान हैं। उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार का आदेश असंवैधानिक,गैरकानूनी है और कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला भी सही नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इस आदेश को रद्द कर देना चाहिए। इस तरह से मुस्लिम पक्ष ने अपनी ओर से हिजाब बैन पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से पूरी ताकत झोंकने की कोशिश की है।

सॉलिसिटर जनरल ने ईरान की घटनाक्रम का दिया हवाला

सॉलिसिटर जनरल ने ईरान की घटनाक्रम का दिया हवाला

हिजाब पर मुस्लिम पक्ष की दलीलों के खिलाफ कर्नाटक सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी बहुत ही ठोस दलीलें रखी हैं। उन्होंने कोर्ट से कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर पाए कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य धार्मिक व्यवस्था है। उन्होंने इस समय ईरान में हिजाब के खिलाफ चल रहे महिलाओं के आंदोलन का जिक्र कर कहा कि वहां तो महिलाएं ही इसके विरोध में खड़ी हो रही हैं। कुरान में जिक्र मात्र होने से वह अनिवार्य इस्लामिक परंपरा नहीं हो जाती। उन्होंने यह दलील भी दी कि वेदशाला और पाठशाला दो अलग-अलग संस्थान हैं। अगर हम धर्मनिरपेक्ष संस्थान चुनते हैं तो हमें उसके नियमों को मानना होगा।

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गैर-आवश्यक धार्मिक प्रथा को संविधान का संरक्षण नहीं- एसजी

गैर-आवश्यक धार्मिक प्रथा को संविधान का संरक्षण नहीं- एसजी

एसजी मेहता ने कहा कि पहले तो इससे पूर्व कोई भी छात्रा हिजाब पाबंदी को लेकर नहीं आई और ना ही यह सवाल कभी उठा। दूसरा ये कि सरकारी आदेश में कहीं नहीं लिखा गया है कि हिजाब बैन है। यह सभी धर्मों के लिए है। केवल हिजाब को बैन करने वाले सर्कुलर का विरोध गलत है। दूसरे समुदाय के लोग भगवा गमछा लेकर आए, उसपर भी प्रतिबंध है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कम से कम 2004 तक किसी ने हिजाब नहीं पहना था। लेकिन, 2021 में यह अचानक शुरू हो गया। तुषार मेहता ने दलील दी कि स्कूल में किसी विशेष धर्म की पहचान नहीं होती। वहां आप केवल स्टूडेंट होते हैं। उन्होंने कहा कि जो धार्मिक प्रथा गैर-आवश्यक हैं, उन्हें संविधान का संरक्षण नहीं है। उन्होंने दलील दी कि धार्मिक प्रथा पर अमल इतना आवश्यक होना चाहिए, जैसे कि सिख के लिए कड़ा और पगड़ी। इसके बिना आप सिख के बारे में सोच भी नहीं सकते, दुनिया में कहीं भी। वह बोले कि याचिकाकर्ताओं की ओर से ऐसा कोई दावा नहीं किया गया कि हिजाब हमेशा से इतना आवश्यक रहा है कि उसके बिना धर्म से बाहर किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में बहस अभी पूरी नहीं हुई है और बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

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English summary
Hijab controversy:In the Supreme Court, the Muslim side argued for covering the head of Hindu women with a sari. Karnataka government said hijab is not a necessary religious practice
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