पश्चिम बंगाल के नए राज्यपाल सीवी आनंद बोस क्या बंगाली हैं?
कोलकाता में राजनेताओं के साथ-साथ आम लोग भी पूछ रहे हैं कि क्या नए राज्यपाल बंगाल के रहने वाले हैं. सच क्या है.
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को पूर्व नौकरशाह डॉक्टर सीवी आनंद बोस को पश्चिम बंगाल का नया राज्यपाल नियुक्त किया है.
उनसे पहले भारत के मौजूदा उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे.
उप-राष्ट्रपति धनखड़ के पद छोड़ने के बाद से मणिपुर के राज्यपाल ला गणेशन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे थे.
कहा जा रहा है कि गणेशन की ओर से बीजेपी को उस तरह का समर्थन नहीं मिल रहा था जो उसे उप-राष्ट्रपति धनखड़ के दौर में मिला करता था.
जानकारों के मुताबिक़, ला गणेशन और ममता बनर्जी सरकार के बीच संबंध काफ़ी बेहतर नज़र आते हैं. हालिया दिनों में राज्यपाल ला गणेशन काली पूजा के मौके पर ममता बनर्जी के घर जा चुके हैं.
इसके साथ ही ममता बनर्जी भी गणेशन के भाई के जन्मदिन के मौके पर उनके घर चेन्नई जा चुकी हैं.
बीजेपी लगातार राज्यपाल और ममता बनर्जी के बीच इन नज़दीकियों को लेकर आपत्ति जताती रही है.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने बुधवार को ही कहा था कि "बंगाल को जल्दी ही ऐसा राज्यपाल मिलेगा जो धनखड़ के नक्शेक़दम पर चलेगा."
इसके बाद गुरुवार को ही नए राज्यपाल का नाम सामने आ गया.
कौन हैं पश्चिम बंगाल के नए राज्यपाल
पश्चिम बंगाल के नए राज्यपाल डॉक्टर सीवी आनंद बोस का जन्म 1951 में केरल के कोट्टायम ज़िले में हुआ था.
स्वतंत्रता सेनानी पीके वासुदेवन नायर के घर जन्म लेने वाले बोस ने अपने करियर की शुरुआत में कलकत्ता के एक बैंक में काम किया था.
डॉक्टर बोस ने बिट्स पिलानी से पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद 1977 में भारतीय सिविल सेवा की नौकरी शुरू की.
नौकरशाह के रूप में उन्होंने केरल समेत कई राज्यों में शीर्ष पदों को संभाला जिनमें केरल के मुख्यमंत्री के करुणाकरण के सचिव का पद भी शामिल है.
इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार में भी कई विभागों में शीर्ष पदों से जुड़ी तमाम ज़िम्मेदारियां संभाली हैं.
केरल के कोल्लम ज़िले में उनकी सस्ते घरों से जुड़ी योजना इतनी सफ़ल रही कि उसे केरल के दूसरे ज़िलों में भी लागू किया गया. इसके बाद उन्हें हाउसिंग मामलों का विशेषज्ञ भी कहा जाने लगा.
डॉक्टर बोस ने अलग-अलग भाषाओं में कुल 40 किताबें लिखीं हैं जिनमें से कई बेस्टसेलर श्रेणी की किताबें हैं.
अपनी नियुक्ति के बाद मीडिया से बातचीत में नए राज्यपाल ने कहा है कि वे केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक पुल का काम करेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि बंगाल से उनका आत्मीय संबंध रहा है.
उनका कहना था कि राजनीतिक तौर पर यह बेहद जागरूक और सक्रिय राज्य है.
इसके साथ ही बोस ने भरोसा दिया है कि बंगाल के विकास के लिए वे राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करते हुए संविधान के दायरे में रहकर हरसंभव सहयोग करेंगे.
क्या राज्यपाल बोस बंगाली हैं?
डॉक्टर सीवी बोस के पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के साथ ही कोलकाता के राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया पर उनका नाम चर्चा का विषय बन गया है.
कोलकाता में आम लोगों से लेकर राजनेता भी ये पूछते दिख रहे हैं कि क्या नए राज्यपाल बंगाली हैं?
इस सवाल का जवाब 'न' में मिलने पर वह कह रहे हैं कि अगर ऐसा नहीं है तो उनके नाम में बोस क्यों जुड़ा है.
और इस सवाल का जवाब दक्षिण भारतीय राज्यों में स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले नायकों के प्रति अगाध प्रेम और श्रद्धा में छिपा नज़र आता है.
दक्षिण भारतीय राज्यों में लोगों के नामों में बोस या बनर्जी जैसे उपनामों का शामिल होना कोई दुर्लभ नहीं है.
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में बच्चों के नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नामों पर रखना काफ़ी आम बात है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक बीआरपी भास्कर कहते हैं, "जो लोग सुभाष चंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी को पसंद करते थे, वे अपने बच्चों का नाम एससी बोस या जेएल नेहरू या मोहनदास रखते थे. मेरे भाई का भी नाम मोहनदास था. मेरे एक अन्य भाई का नाम सुभाष चंद्र था और मेरे पिता का नाम बाबू राजेंद्र प्रसाद था."
राष्ट्रीय नेताओं के नाम पर बच्चों के नाम रखने का सिलसिला सिर्फ़ स्वतंत्रता सेनानियों तक सीमित नहीं है.
सन् 1942 के आंदोलन के नेता रहे जय प्रकाश नारायण के नाम पर आज भी कई लोगों के नाम मिल जाएंगे.
इसी तरह अरुणा आसफ़ अली के नाम पर अरुणा नाम की महिलाएं और राजीव या राहुल नाम के युवा मिल सकते हैं.
केरल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अशरफ़ कडक्कल कहते हैं, "आम लोगों का अपने बच्चों का नाम इन नेताओं के नामों पर रखना इन नेताओं को श्रद्धांजलि देने जैसा है. और उम्मीद करना है कि उनके बच्चे इन नायकों से प्रेरित होंगे."
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