2019 में सत्ता पाने के लिए अहम होगी किसानों की भूमिका, कर्जमाफी होगा सबसे बड़ा मुद्दा
नई दिल्ली। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम और उसके बाद राज्य सरकारों की ओर से किसान कर्जमाफी के बाद एक बात तो साफ हो गई है कि 2019 लोकसभा चुनाव में यह सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। हालांकि ये तो समय ही बताएगा कि ऋण की छूट देने का नारा प्रभावी ढंग से लागू होता है या नही। जिस तरह से उनके पांच राज्यों में इसके प्रभाव दिखाई दे रहे हैं, वे लोकसभा चुनावों का नतीजा तय करेंगे, जिनमें करीब 50 प्रतिशत किसानों का कर्ज होगा।
इन पांच राज्यों में लोकसभा की लगभग 40 प्रतिशत सीटें आती हैं
बता दें कि इन पांच राज्यों में लोकसभा की लगभग 40 प्रतिशत सीटें आती हैं। जिसमें आंध्र प्रदेश (25), उत्तर प्रदेश (80), महाराष्ट्र (48), कर्नाटक (28) और तमिलनाडु (39) सीटे हैं। कुल कृषि ऋण का 49 प्रतिशत हिस्सा इन राज्यों में है। हालांकि, इन पांच राज्यों का राजनीतिक परिदृश्य ऐसा है कि यह बताने में बहुत मुश्किल है कि कौन सी पार्टी सरकार बनायेगी। कुछ राज्यों में स्थिति ऐसी है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष एक ही मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
कुछ राज्यों में अभी से शुरू हो गया विद्रोह
कुछ राज्यों में किसान कर्जमाफी को लेकर अभी से विद्रोह शुरू हो गया है। इसलिए यह बहुत स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों में हर कोई इसके प्रभाव से चिंतित है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में कांग्रेस और बीजेपी की कोई महत्वपूर्ण उपस्थिति नहीं है इसलिए दोनों ही पार्टियां किसी भी तरह से इन राज्यों में अपना पैर जमाने की कोशिश करेंगी। असल में बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बड़े अंतर के साथ सीटें हासिल की थी। इन पांच राज्यों में बीजेपी को 220 में 114 सीटें मिली थीं।
कर्जमाफी के बाद मिला था कांग्रेस को फायदा
लेकिन एक और तथ्य यह है कि 2008 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा ऋण छूट के बाद, कांग्रेस इन पांच राज्यों में 85 सीटें हासिल करने में सक्षम रही है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किसानों की समस्या अधिक गंभीर है। आंध्र प्रदेश में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होंगे। ओडिशा, आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के अलावा सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में भी चुनाव होंगे।