'देश में किसान और किसानी की हत्या हो रही है'
दिल्ली में किसान मुक्ति संसद का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर के 184 संगठनों से जुड़े हजारों किसानों ने हिस्सा लिया.
सूनी मांग, आंखों में आंसू और हाथों में दिवंगत पति की तस्वीर. कुछ इस तरह ललिता सोमवार को राजधानी दिल्ली के संसद मार्ग पहुंची थीं. कर्ज के बोझ में उनके पति सत्या ने करीब चार साल पहले आत्महत्या कर ली थी. सत्या किसान थे. तेलंगाना के यदादिरी भुवनगिरी जिला से ताल्लुक रखने वाली ललिता ने बताया कि उनके पति पर लाखों का बोझ था. वो उसे चुका नहीं पा रहे थे.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "एक के बाद एक कई फसलों की बर्बादी और बढ़ते कर्ज का बोझ वो झेल नहीं पाएं और एक दिन कीटनाशक खाकर जान दे दी." यह कहानी सिर्फ ललिता की नहीं है. हाथों में दिवंगत पतियों और मां-पिता की तस्वीर लिए दर्जनों महिलाएं स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव की किसान रैली 'किसान मुक्ति संसद' में पहुंची थीं.
रैली में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु सहित कई राज्यों से 184 किसान संगठनों से जुड़े हजारों किसान पहुंचे थें. किसान अपनी दुर्दशा और राजनीति छलावे का खुद को शिकार बताकर अपने लिए बेहतर कानून की मांग कर रहे थे.
एक पंक्ति की आखिर में तेलंगाना की सिद्दीपेटी जिला की मनीषा अपनी मां-बाप की तस्वीर हाथ में लिए बैठी थीं. पूछने पर बताया कि करीब तीन साल पहले कर्ज ने उनके सिर से पहले उनकी मां का साया छीन लिया फिर बाप का. उन्होंने बीबीसी को बताया, "नवंबर 2014 को मां ने कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली. कुछ महीने बाद फरवरी 2015 में पापा ने. हमलोगों पर तीन लाख का कर्ज था."
मनीषा की जिंदगी से उनके मां-बाप की मौजदूगी भले ही समाप्त हो गई हो लेकिन कर्ज की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है. वो बताती हैं, "कर्ज माफिया आज भी पैसा मांगने आते हैं. पिछले दिनों वो हमारी बैलगाड़ी उठाकर ले गए थे."
'नहीं मिल रही सरकारी सुविधाएं'
न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्ज माफी की मांग करते हुए किसानों ने रामलीला मैदान से ससंद मार्ग तक विरोध मार्च निकाला. विरोध मार्च में हिस्सा लेने हरदोई जिला से आए लखबिंदर सिंह ने अपने दर्द का जिक्र करते हुए कहा, " हमलोग मुश्किल से फसल पैदा करते हैं. डीजल महंगा है. फसलों की सही कीमत नहीं मिलती हैं."
लखबिंदर सिंह ने बताया कि किसानों को दिए जाने वाली सरकारी सुविधाएं उन्हें नहीं मिल रही हैं. न अच्छे बीज मिल रहे हैं न ही खाद. वहीं, दो हजार किलोमीटर का सफर तय कर कर्नाटक से दिल्ली पहुंचे अशोक गुब्बी ने कहा कि किसानों पर न राज्य सरकार ध्यान दे रही है और न ही केंद्र सरकार. किसान संघर्ष करने को मजबूर हैं. अशोक ने बताया कि उनके साथ करीब छह हजार किसान केंद्र सरकार के समक्ष धरना देने दिल्ली आए हैं. तमिलनाडु के किसान यहां भी नर कंकाल के साथ प्रदर्शन करते दिखें.
'खेती सरकार के लिए घाटे का सौदा'
अर्धनग्न अवस्था में ये किसान दक्षिण भारत में नदियों को जोड़ने और कर्ज माफी की मांग कर रहे थे. इसके साथ ही वो 60 साल के किसानों को पांच हजार रुपए प्रति महीना पेंशन दिए जाने और फसलों की बीमा की मांग कर रहे थे.
रैली के नेतृत्वकर्ताओं में शामिल मेधा पाटकर ने बीबीसी से कहा कि देश में किसान और किसानी की हत्या हो रही है. उन्होंने आरोप लगाए कि देश में कॉर्पोरेट और प्रकृति के आश्रितों के बीच दूरी बढ़ाकर चुनाव जीते जा रहे हैं. उनके कंपनियों को भूमि और जल दिए जा रहे हैं. खेती सरकारों के लिए घाटे का सौदा है.
वहीं, योगेंद्र यादव ने कहा कि पहली बार रैली में देशभर के 184 संगठन एक साथ जुटे हैं. वो सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि देश की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं. किसानों ने स्वामीनाथ कमेटी की सिफारिशों को लागू करने और उनके हित में जरूरी बिल लाने की मांग की.