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पीएम मोदी ने की जिन मोटे अनाजों की चर्चा, वो करते हैं एक तीर से कई शिकार

क्या ज्वार-बाजरे जैसे मोटे अनाजों की खेती में छिपा है भारत की कुछ बड़ी कृषि चुनौतियों का हल? पीएम मोदी क्यों चाहते हैं कि किसान इसकी खेती को बढ़-चढ़ कर अपनाएं

By BBC News हिन्दी
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बाजरा
L VIDYASAGAR/ICRISAT
बाजरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते रविवार अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में मिलेट्स जैसे मोटे अनाजों के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाने के लिए जन-आंदोलन चलाने की बात कही है.

पीएम मोदी ने बताया है कि मिलेट्स कुपोषण दूर करने से लेकर डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों से लड़ने में भी कारगर है.

इसे कम पानी के ख़र्च वाली फसल भी कहा जा रहा है.

और संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को 'अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष' के रूप में मनाने का एलान किया है.

मिलेट्स को सुपर फूड क्यों कहते हैं?


कुपोषण से लेकर जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से जूझती दुनिया में इन दिनों मिलेट्स को सुपर फूड कहा जा रहा है.

सुपर फूड से आशय उन खाद्य सामग्रियों से है जिनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत रूप से ज़्यादा होते हैं. मिलेट्स को भी ऐसी ही फसलों में गिना जाता है.

इनमें ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू जैसी आठ फसलें आती हैं.

इन फसलों में गेहूं और चावल की तुलना में सॉल्युबल फाइबर ज़्यादा होता है.

भारतीय मिलेट्स अनुसंधान संस्थान में प्रिंसिपल साइंटिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ राजेंद्र आर चपके मानते हैं कि इन फसलों में गेहूं और चावल की तुलना में कैल्शियम और आयरन ज़्यादा होता है.

वे कहते हैं, "फिंगर मिलेट (रागी) में कैल्शियम की मात्रा अच्छी होती है. प्रति 100 ग्राम फिंगर मिलेट में 364 मिलिग्राम तक कैल्शियम होता है. यही नहीं, इनमें आयरन की मात्रा भी गेहूं और चावल की अपेक्षा ज़्यादा होती है."

https://www.youtube.com/watch?v=GPo1ucVcNSY&t=6s

जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से क्यों अच्छी है ये फसल?

जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में बारिश के समय और प्रकृति में परिवर्तन देखे जा रहे हैं. इस वजह से कहीं बारिश ज़्यादा हो रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है.

इन दिनों मध्य प्रदेश से लेकर उत्तर-पूर्वी राज्य बाढ़ का सामना कर रहे हैं.

वहीं, बिहार जैसे राज्य बाढ़ और सूखे दोनों समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

यही नहीं, भारत के कई राज्य भूगर्भीय जल संकट से जूझ रहे है. ऐसी चुनौतियों के बीच मिलेट्स क्रॉप एक समाधान की तरह नज़र आती हैं.

डॉ राजेंद्र आर चपके बताते हैं, "गेहूं और चावल की तुलना में मिलेट्स क्रॉप में पानी की खपत काफ़ी कम होती है. उदाहरण के लिए, गन्ने के एक पौधे को अपने पूरे जीवनकाल में 2100 मिलीमीटर पानी की ज़रूरत होती है. वहीं, मिलेट्स क्रॉप जैसे बाजरा के एक पौधे को पूरे जीवनकाल में 350 मिलीमीटर पानी चाहिए होता है. फिंगर मिलेट में भी 350 मिलीमीटर पानी चाहिए होता है. इसी तरह ज्वार को 400 मिलीमीटर पानी चाहिए होता है."

मिलेट
Getty Images
मिलेट

इस तरह मिलेट्स क्रॉप को कम पानी की उपलब्धता वाली जगहों पर भी उगाया जा सकता है. और सूखा पड़ने की स्थिति में भी इन फसलों को उगाया जा सकता है.

डॉ चपके बताते हैं कि 'ये फसलें पशुओं के लिए चारा सुनिश्चित करने के लिहाज़ से भी काफ़ी अहम हैं क्योंकि जहां दूसरी फसलें पानी की कमी होने पर पूरी तरह बर्बाद हो जाती हैं, मिलेट फसलें ख़राब होने की स्थिति में भी पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं.'

वह कहते हैं, "इन्हें बदलती जलवायु के लिहाज़ से भी अहम माना जा रहा है क्योंकि ये सी4 श्रेणी की फसलें हैं. और इन फसलों में कार्बन सोखने की अच्छी क्षमता होती है."

किसानों की आर्थिक हालत के लिहाज़ से भी इन फसलों को बेहतर माना जाता है क्योंकि इन फसलों में कीड़ा लगने की समस्या गेहूं और धान जैसी फसलों की तुलना में कम होती है.

चपके कहते हैं कि 'इनमें से ज़्यादातर फसलें ग्रास (घास) फैमिली के पौधे हैं, ऐसे में इनमें गेहूं और चावल समेत अन्य दूसरी फसलों के मुकाबले रोगों और कीड़े लगने की दिक्कतें कम होती हैं."

कम मेहनत वाली फसलें


दुनिया भर में हीटवेव की वजह से दिन में काम करना मुश्किल होता जा रहा है.

अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी हाल की एक रिपोर्ट में बताया है कि आने वाले सालों में भारत जैसे देशों में दिन के घंटों में काम करना मुश्किल हो जाएगा और इससे असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों पर असर पड़ेगा.

डॉ चपके मानते हैं कि 'ये फसलें इस लिहाज़ से भी अच्छी होती हैं क्योंकि जहां धान उगाने में काफ़ी ज़्यादा मेहनत लगती है. किसानों को कई घंटे पानी में खड़े होकर धान बोना पड़ता है, इसके बाद उसे खाद पानी देने में भी काफ़ी मेहनत लगती है, ऐसे में ये फसलें काफ़ी कम मेहनत लेती हैं और कम मेहनत में ज़्यादा फल देती हैं.'

लेकिन सवाल उठता है कि इन फसलों को कुपोषण के ख़िलाफ़ जंग में अहम क्यों माना जा रहा है.

https://www.youtube.com/watch?v=LNV5Tpr4xaA&t=120s

कुपोषण के ख़िलाफ़ जंग में अहम हथियार

बीते कई दशकों के संघर्ष के बावजूद भारत में कुपोषण अभी भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है. केंद्र सरकार इस समस्या के निदान पर दशकों से खर्च कर रही है. लेकिन अभी भी इस समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा है.

पीएम मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में कहा है कि कुपोषण से लड़ने में भी मिलेट्स काफी लाभदायक हैं, क्योंकि ये प्रोटीन के साथ-साथ एनर्जी से भी भरे होते हैं.

क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ नूपुर कृष्णन मानती हैं कि मिलेट्स अनाज सस्ते और पोषक होने की वजह से कुपोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष में काफ़ी मदद पहुंचा सकते हैं.

वह कहती हैं, "ये बहुत ही सस्ता अनाज है, और पोषण के लिहाज़ से इनमें गेहूं और चावल की तुलना में ज़्यादा एंजाइम, विटामिन और मिनरल पाए जाते हैं. यही नहीं, इनमें सॉल्युबल और इन-सॉल्युबल फाइबर भी ज़्यादा पाया जाता है. इससे हमारे गट बेक्टिरिया को भी फायदा पहुंचता है.

इनमें मैक्रो और माइक्रो पोषक तत्वों का बहुत अच्छा मिश्रण होता है. मैक्रो पोषक तत्व प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट फैट होते हैं. और माइक्रो पोषक तत्व विटामिन और मिनरल्स होते हैं. ये माइक्रो और मैक्रो पोषक तत्वों का मिश्रण काफ़ी स्वास्थ्यवर्धक है. इसे एक ग़रीब शख़्स खाएगा तो उसे कुपोषण से बचाव मिलेगा और एक समृद्ध व्यक्ति खाएगा तो उसे पोषक तत्व मिलेंगे."

https://www.youtube.com/watch?v=BS79UaDStqg

मिलेट्स को जायकेदार कैसे बनाएं

लेकिन आम तौर पर बाजरे की रोटियों की जगह गेहूं की रोटियाँ और चावल खाने का चलन ज़्यादा है.

डॉ नूपुर कृष्णन इसकी वजह बताते हुए कहती हैं, "ये बात सही है कि मिलेट्स की तुलना में चावल थोड़ा ज़्यादा टेस्टी लगता है. और आजकल चावल की ऐसी किस्में आ गयी हैं जिनमें आप एक जगह पकाएं तो उसकी ख़ुशबू काफ़ी दूर तक फैल जाती है. लेकिन सेहत के लिए मिलेट्स ज़्यादा बेहतर होते हैं.

ये हाइपरटेंशन से लेकर डायबिटीज़ जैसी गंभीर समस्या से लड़ने में मदद कर सकता है क्योंकि इन्हें खाने से ग्लाइसेमिक लोड कम हो जाता है. अगर ये ज़्यादा रहेगा तो ब्लड प्रेशर, हायपरटेंशन, वेट लॉस और डायबिटीज़ जैसी समस्या बनी रहेगी."

पीएम मोदी ने कहा है कि इसे आम लोगों में पॉपुलर बनाने के लिए एक जन-आंदोलन चलाने की ज़रूरत है.

लेकिन मिलेट्स जैसे बाजरा आदि को पकाने में होने वाली दुश्वारियों के चलते उन्हें अपनाने में होने वाली दिक्कतों को कैसे दूर किया जा सकता है.

इसका जवाब देते हुए डॉ कृष्णन कहती हैं, "हम एक हफ़्ते में मिलेट्स फूड तीन से चार बार खा सकते हैं, इससे आपकी सेहत सुधरेगी. और रही बात इसे टेस्टी बनाने की तो आप रागी का हलवा, ज्वार की खिचड़ी या पुलाव बना सकती हैं. इसे बच्चे और व्यस्कों को दे सकते हैं. इसे सिर्फ सिलियक डिसीज़ (पाचन संबंधी रोग) में नहीं खाना चाहिए."

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English summary
Cultivation of coarse cereals like jowar and millet in india
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