मनरेगा की मजदूरी को वर्गों में बांटने का फैसला वापस, राज्यों ने जताई थी आपत्ति
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर। मोदी सरकार ने मनरेगा में दी जाने वाली मजदूरी को जातिगत आधार पर बांटने के अपने विवादास्पद फैसले को वापस ले लिया है। इसके साथ ही केंद्र ने मजदूरी के पुराने सिंगल विंडो को फिर से बहाल कर दिया है। मोदी सरकार के इस कदम का तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे कई राज्यों ने विरोध किया था।

द प्रिंट की खबर के मुताबिक केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2 मार्च को सभी राज्य सरकारों को निर्देशित करते हुए एडवाइजरी भेजी थी जिसमें कहा गया था कि 2021-22 से मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान के लिए पेमेंट को एससी, एसटी और अन्य की तीन कैटेगरी में विभाजित किया जाए।
सामाजिक न्याय और सहकारिता मंत्रालय ने इसे लेकर नोट किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य वर्ग के तीन वर्गों में बांटने से लोगों के बीच जातिगत खाई और गहरी हो रही है।
सरकार
ने
आदेश
लिया
वापस
द
प्रिंट
ने
सूत्र
के
हवाले
से
लिखा
है
कि
इस
सप्ताह
ग्रामीण
विकास
मंत्रालय,
वित्त
मंत्रालय,
नीति
आयोग
और
सामाजिक
न्याय
मंत्रालय
के
अधिकारियों
की
बैठक
के
बाद
आदेश
को
वापस
लेने
का
सामूहिक
निर्णय
लिया
गया
था।
इसके
साथ
ही
एक
ही
अकाउंट
से
भुगतान
का
सिस्टम
बहाल
कर
दिया
गया
है।
पिछले
4
साल
में
मनरेगा
की
विभिन्न
योजनाओं
में
935
करोड़
रुपए
की
गड़बड़ी!
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के हवाले से खबर में कहा गया है "वित्तीय वर्ष 2020-21 तक एक ही मास्टर रोल में काम करने वाले श्रमिकों की सभी श्रेणियों (एससी, एसटी और अन्य) को एकल फंड ट्रांसफर ऑर्डर के माध्यम से भुगतान किया गया था।"
अधिकारी ने कहा, "ग्रामीण और सामाजिक मंत्रालय को राज्य सरकारों (तमिलनाडु, कर्नाटक) से अनुरोध प्राप्त हुए और सामाजिक न्याय मंत्रालय को बिना किसी वर्गीकरण के भुगतान की पुरानी प्रणाली को बहाल करने के लिए जानकारी मिली।"