2022 में PM मोदी आये पटना, 1955 में जब नेहरू आए तो छात्रों ने किया था विरोध
नई दिल्ली, 15 जुलाई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पटना यात्रा के दौरान गड़बड़ी फैलाने की साजिश रची गयी थी। पटना स्थित पीएफआइ के दफ्तर में आतंकवादी प्रशिक्षण केन्द्र चलाया जा रहा था। पुलिस ने इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें अतहर परवेज भी है। अतरहर परवेज का भाई मंजर आलम मोदी की पटना सभा (2013) में बम ब्लास्ट का आरोपी है। पुलिस जांच के मुताबिक अतहर परवेज नये लड़कों का ब्रेनवास कर उनके मन में नफरत के बीज बो रहा था।
संवेदनशील मामला होने के कारण अब इस मामले की एनआइए ने भी जांच शुरू कर दी है। पटना के एसएसपी ने पीएफआइ की तुलना आरएसएस से कर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। एक नौकरशाह के राजनीतिक बयान के बाद भाजपा आक्रोश में है। भाजपा ने एसएसपी को निलंबित और बर्खास्त करने की मांग कर दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पटना यात्रा के बाद बिहार में एक नयी राजनीतिक खींचतान शुरू हो गई है। आज से पहले 67 साल पहले जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पटना आये थे तब बिहार में राजनीतिक खलबली मची हुई थी। बस परिचालन विवाद से शुरू हुआ छात्र आंदोलन एक सशक्त राजनीतिक आंदोलन में बदल गया था। पुलिस की गोली से छात्र नेता दीनानाथ पांडेय की मौत के बाद स्थिति विस्फोटक हो गयी थी।
आंदोलन से कांग्रेस की छवि धूमिल
श्रीकृष्ण सिंह की तत्कालीन बिहार सरकार हिलने लगी थी। आजादी के बाद यह पहला छात्र आंदोलन था जिसकी वजह से कांग्रेस की छवि धूमिल हो रही थी। अंग्रेजों ने भारतीय लोगों पर न जाने कितने जुल्म ढाये थे। लेकिन आजादी के आठ साल बाद ही कांग्रेस सरकार ने अपने ही छात्रों पर गोली चलवा दी थी। इस आंदोलन का बिहार की राजनीति पर बहुत गहरा असर पड़ा था। पंडित नेहरू ने पटना आ कर श्रीकृष्ण सिंह की सरकार तो बचा ली लेकिन तत्कालीन परिवहन मंत्री महेश प्रसाद सिंह को 1957 के विधानसभा चुनाव में हार झेलनी पड़ी था। वह इसलिए क्यों कि उनके अड़ियल रवैये के कारण ही छात्र आंदोलन भड़का था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पटना आने के बाद क्या क्या हुआ था, यह भी काबिले गौर है।
12 अगस्त 1955 को उबल रहा था पटना
अगस्त 1955 में पटना बीएन कॉलेज के छात्रों ने बसों के कम परिचालन का मुद्दा उठाया था। तब पटना में सरकारी बसें ही कॉलेज आने-जाने का सुगम जरिया थीं। बसों की कमी के कारण कई छात्रों की क्लास छूट जा रही थी। कई छात्रों की परीक्षाएं छूट जा रहीं थीं। उन्होंने बिहार सरकार के परिवहन मंत्री के सामने अपनी मांगे रखीं। लेकिन सरकार ने इस ध्यान नहीं दिया। तब 12 अगस्त 1955 को छात्रों ने विरोध मार्च निकालने का फैसला किया। जब छात्रों का जुलूस बीएन कॉलेज के पास था तब स्थिति अचानक बेकाबू हो गयी। नवनीत सहाय की किताब - पटना : ए पाराडाइज लॉस्ट, सेगा ऑफ ए 2500 ईयर ओल्ड सिटी फ्रॉम अजातशत्रु टू प्रजेंट डे पटना- में इस घटना का जिक्र है। 12 अगस्त 1955 को पटना में क्या हुआ था, अंग्रेजी अखबार डेक्कन क्रोनिकल में इसकी खबर छपी थी। खबर के मुताबिक, बीएन कॉलेज के सामने पुलिस ने छात्रों के जुलूस पर गोली चला दी जिसमें एक छात्र की मौत हो गयी और पांच घायल हो गये। पुलिस ने आरोप लगाया कि एक उग्र भीड़ ने पुलिस के वाहन में आग लगाने की कोशिश की जिसको रोकने के लिए गोली चलानी पड़ी। पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। पुलिस ने यह भी आरोप लगाया था कि उग्र समूह बीएन कॉलेज के सामने पंजाब नेशनल बैंक की लूटने की कोशिश में था। छात्रों ने पुलिस की इस दलील का कड़ा विरोध किया। बिहार पुलिस की इस बर्बर कार्रवाई का हर तरफ विरोध होने लगा। श्रीकृष्ण सिंह सरकार के खिलाफ जनाक्रोश भड़क गया। छात्र बिहार सरकार को अंग्रेजों की तरह निर्दयी बताने लगे। श्रीकृष्ण सिंह जैस मजबूत मुख्यमंत्री का भी तख्त हिलने लगा। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक इस आंदोलन की गूंज पहुंची। कांग्रेस की छवि और श्रीकृष्ण सिंह सरकार को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नेहरू को खुद पटना आना पड़ा।
प्रधानमंत्री नेहरू 1955 में पटना आये तो क्या कहा ?
छात्र नेता दीनानाथ पांडेय की पुलिस फायरिंग में मौत के बाद बिहार का राजनीतिक तापमान बढ़ गया था। सरकार विरोधी भावना तेजी से बढ़ती जा रही थी। आखिरकार 30 अगस्त 1955 को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पटना आना पड़ा। गांधी मैदान में उनकी सभा हुई। पंडित नेहरू ने इस घटना के लिए प्रेस और कम्युनिस्टों को जिम्मेदार ठहरा दिया। उस समय जयप्रकाश नारायण पटना में ही रहते थे। अगले दिन उन्होंने प्रेस बयान जारी कर नेहरू के बयान की तीखी आलोचना की। सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए कब तक कम्युनिस्टों के नाम का सहारा लेगी। कई बुद्धिजीवियों ने भी पंडित नेहरू के इस दृष्टिकोण की आलोचना की थी। एक छात्र नेता की मौत से भला सरकार कैसे पल्ला झाड़ सकती है। लेकिन उस समय पूरे देश में पंडित नेहरू की लोकप्रियता बुलंदी पर थी। जनता के मन में उनके प्रति एक विशेष सम्मान था। लेकिन अगले चुनाव (1957) में जनता ने सरकार के दुराग्रह के खिलाफ एक संदेश दिया। श्रीकृष्ण सिंह की सरकार दोबार सत्ता में तो आ गयी लेकिन विधायकों की संख्या पहले से कम हो गयी। पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे के मुताबिक जिस परिवहन मंत्री (महेश प्रसाद सिंह) की अनदेखी से छात्र आंदोलन भड़का था वे चुनाव हार गये। उन्हें हराने के लिए छात्रों ने पटना साइंस कॉलेज के मैदान में एक सभा की थी। चुनाव प्रचार के समय सैकड़ों छात्र गंगा पार कर मुजफ्फरपुर पहुंचे जहां महेश प्रसाद सिंह चुनाव लड़ रहे थे। छात्रों के विरोध के कारण परिवहन मंत्री महेश प्रसाद सिंह को चुनाव हारना पड़ा।
इस घटना का छात्रों पर क्या असर पड़ा था ?
भारत के पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे उस समय पटना विश्वविद्यालय में ही पढ़ते थे। उन्होंने एक आलेख में इस घटना का जिक्र किया है। मुचकुंद दुबे ने लिखा है, भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी और पूर्व सांसद (किशनगंज) सैयद शहाबुद्दीन उस समय पटना साइंस कॉलेज के छात्र थे। वे अगस्त 1955 के छात्र आंदोलन के प्रमुख नेता थे। आंदोलन कैसे भड़का था, इसके बारे में उन्होंने लिखा है, इस समय (अगस्त 1955) पटना विश्वविद्यालय में सप्लिमेंट्री परीक्षा चल रही थी। बिहार पथ परिवहन निगम की बस से छात्र कॉलेज आते थे। एक दिन कुछ छात्र परीक्षा देने के लिए बीएन कॉलेज आ रहे थे। उन्होंने ड्राइवर से बीएन कॉलेज के गेट के पास बस रोकने के लिए कहा। ड्राइवर ने उनकी बात अनसुनी कर दी। बस वहां नहीं रोकी। उसने स्टॉप की निर्धारित जगह पर बस रोकी। छात्रों ने परीक्षा छूटने की बात कह कर इसका विरोध किया। इस बात पर बस ड्राइवर और खलासी भड़क गये और उन्होंने छात्रों की पिटाई कर दी। लेकिन कुछ ही देर के बाद यह अफवाह फैल गयी कि एक छात्र की इतनी पिटाई की गयी है कि उसकी मौत हो गयी। यह बात जंगल की आग की तरह फैलने लगी। इसके बाद बस ड्राइवर और खलासी के खिलाफ छात्र गोलबंद होने लगे। फिर एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया। इस आंदोलन के भड़कने के बाद 12 अगस्त 1955 को पुलिस फायरिंग में दीनानाथ पांडेय मारे गये थे। जब पंडित नेहरू पटना आये तो हजारों छात्रों ने पटना विश्वविद्यालय से एयरपोर्ट तक उनके विरोध में एक मार्च निकाला। उस जमाने में नेहरू का विरोध बहुत बड़ी घटना थी।
IFS करने के बाद जब पुलिस वैरिफिकेशन में हुई दिक्कत
मुचकुंद दुबे के मुताबिक, वे और सैयद शहाबुद्दीन एक ही बैच के छात्र थे। 1956 में मुचकुंद दुबे ने इकोनॉमिक्स से एमए किया तो सैयद शहाबुद्दीन ने फिजिक्स से। शहाबुद्दीन बहुत प्रतिभावान छात्र थे। वे फिजिक्स के टॉपर स्टूडेंट थे। एमए करने के बाद मुचकुंद दुबे 1956 में यूपीएससी की परीक्षा में बैठे। लेकिन शहाबुद्दीन कम उम्र होने के कारण उस साल यूपीएससी की परीक्षा नहीं दे पाये। मुचकुंद दुबे 1956 में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुन लिये गये। छात्र आंदोलन की बात भूला कर शहाहुद्दीन ने पूरी तैयारी के साथ 1957 में यूपीपीएस की परीक्षा दी। वे भी विदेश सेवा के लिए चुन लिये गये। इतनी बड़ी परीक्षा पास करने के बाद भी शहाबुद्दीन तब चिंता में पड़ गये जब पुलिस वैरिफिकेशन के नाम पर उन्हें परेशान किया जाने लगा। 1955 के छात्र आंदोलन के कारण बिहार पुलिस का रवैया बदला हुआ था। जब मुचकुंद दुबे ने IFS किया था तो उन्हें भी पुलिस वैरिफिकेशन के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े थे। वे भी छात्र आंदोलन में सक्रिय थे। जब पुलिस ने उनके नाम पर अड़ंगा लगा दिया तो वे तत्कालीन उपमुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिंह से मिलने गये। जब अनुग्रह नारायण सिंह ने इस मामले में हस्तक्षेप किया तब जा कर मुचकुंद दुबे का पुलिस वैरिफिकेशन हुआ और वे भारतीय विदेश सेवा की नौकरी में गये। सैयद शहाबुद्दीन के मामले में पुलिस ने थोड़ा सख्त रवैया अपना लिया था। उनका संबंध कम्युनिस्ट पार्टी से जोड़ कर कुछ संगीन आरोप लगा दिये थे। मामले ने तूल पकड़ा तो बात प्रधानमंत्री नेहरू तक पहुंची। 1955 के छात्र आंदोलन पर उनकी बारीक नजर थी। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के दखल के बाद शहाहुद्दीन का पुलिस वैरिफिकेशन हुआ और वे भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी बने। 1955 में चूंकि पीएम नेहरू पटना आये थे इसलिए उन्होंने निष्पक्ष हो कर अपना फैसला सुनाया था।
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