आरक्षण से निकला ओपिनियन, बीफ से Exit Poll, पर रीयल रिजल्ट देगी अरहर की दाल
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान खत्म होते ही टीवी चैनलों पर धड़ाधड़ आंकड़े गिरने लगे। देखते ही देखते टीवी चैनलों ने सर्वे कंपनियों के साथ मिलकर बिहार में महागठबंधन की सरकार भी बना दी! यह सब हुआ एक्जिट पोल के आधार पर! अब सवाल यह उठता है कि इन एक्जिट पोल पर विश्वास करें या नहीं?
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जी हां यह सब खेल है, जनता के मूड का और चुनाव के शुरू होने से पहले जनता का मूड क्या था और खत्म होते-होते क्या हो गया, इसका खुलासा 8 नवंबर को ईवीएम मशीनों के खुलते ही हो जायेगा। लेकिन जो सबसे अहम बात सामने आयी है, वो यह है कि एक्जिट पोल के सारे परिणाम ओपिनियन पोल के परिणामों से पूरी तरह अलग हैं।
चुनाव से पहले जितने भी ओपिनियन पोल आये, उनमें भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन एनडीए को सबसे ज्यादा सीटें मिलती दिखीं, लेकिन एक्जिट पोल ने थोड़ी मुश्किलों के साथ ही सही, लेकिन सत्ता वापस नीतीश कुमार के हाथों में ही सौंप दी है।
243 सीटों वाली इस विधानसभा में महागठबंधन चुनाव जीतेगा? या फिर भाजपा का विजय रथ चलता रहेगा? इन दोनों के सवाल बेहद पेंचीदे हो गये हैं।
टुडे चाणक्या का सर्वे कहता है एनडीए पूर्ण बहुमत के साथ आयेगी। जबकि सी-वोटर, नील्सन और सीसरो कहते हैं कि महागठबंधन की सरकार बनेगी। हां थोड़ी मुश्किलें जरूर हो सकती हैं, क्योंकि जादुई इनके पास 126 के आस-पास सीटें रह सकती हैं।
अब सवाल यह उठता है कि ऐसे क्या कारण रहे कि एक्जिट पोल के परिणाम ओपिनियन पोल के उलट हो गये-
1. भागवत का बयान
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने जिस दिन आरक्षण नीति में संशोधन की बात कही थी, उसी दिन से महागठबंधन ने इसे मुद्दा बना लिया और गरीब दलितों तक यह संदेश पहुंचाया कि आरएसएस उन्हें दबाना व कुचलना चाहती है। यह वो दौर था जब कई चैनल धड़ाधड़ ओपिनियन पोल दिखा रहे थे।
2) बीफ कांड
बीफ पर पूरे देश में जब बहस गर्म हुई, तो नेताओं ने उसे बिहार के वोटरों को प्रभावित करने के लिये शस्त्र की तरह इस्तेमाल किया। यही कारण है कि वोटों का ध्रुवीकरण जबरदस्त तरह से हुआ। ईवीएम पर असर दिखे न दिखे, लोगों के दिल और दिमाग पर इसका असर दिख रहा है। आपको बताना चाहेंगे कि ज्यादातर लोग एक्जिट पोल का बटन भावनाओं में बहकर दबाते हैं, जबकि ईवीएम पर फैसला सोच समझ कर होता है।
4) अरहर की दाल
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में जिस तरह से अरहर की दाल की कीमतें आसमान छू रही हैं, उसे देखकर यही लगता है कि आने वाले समय में गरीब की थाली में दाल नहीं होगी। रही बात बिहार की, तो यहां एक बड़ा तबका है, जो दाल-रोटी पर ही जी रहा है, मुर्ग मुसल्लम व पनीर दो-प्याजा उसे शायद ही नसीब होता हो।
कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा, कि 8 नवंबर को आने वाले परिणाम एक्जिट पोल से पूरी तरह इतर भी हो सकते हैं। अब कितने इतर होंगे, यह तय करेगी केवल अरहर की दाल। क्योंकि आम आदमी को बीफ के मुद्दे पर बहस करना अच्छा लगता है, लेकिन उसमें उलझना नहीं, आरक्षण मिले, न मिले वह अपने बच्चों को अच्छे ढंग से पढ़ाई करने की सीख ही देता है और फिर प्रचार करने बिहारी आये या गुजराती, इससे आम जनता को फर्क नहीं पड़ता। फर्क तब पड़ता है, जब वह दुकान पर आटा-चावल खरीदने जाता है और एक दिन के राशन में 100 रुपए भी कम पड़ जाते हैं।