बाजवा भी चले ढ़ाई चाल, इमरान का 'नवाज' बनना तय! जानें कब-कब हुआ पाक में तख्तापलट
बेंगलुरु। कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेइज्जती करवा चुका पाक युद्ध का ढोल पीट रहा था। तिलमिलाए पाक सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने भारत के खिलाफ आखिरी गोली तक लड़ने की धमकी दे डाली। कश्मीर को पाकिस्तान की गले की नस बता कर भारत को धमकी देने वाले पाक सेना अध्यक्ष के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान अब केवल काठ के उल्लू साबित हो रहे हैं।
इसलिए पाकिस्तान में कयास लगाए जाने लगे हैं कि वहां की सेना तख्तापलट की तैयारियों में जुट चुकी है। अगर ऐसा होता हैं तो यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार नहीं होगा। पाकिस्तान की आजादी के लगभग एक साल बाद ही मोहम्मद अली जिन्ना के धरती से रुखसत होने के बाद से ही जो सत्ता हथियाने का खेल पाकिस्तान में शुरू हुआ, वो आजतक बदस्तूर जारी है। आए दिन पाकिस्तान में तख्तापलट कर दिया जाता है।आपको जानकर ताज्जुब होगा कि विभाजन के बाद पाकिस्तान में सैन्य शासन लागू कर दिया गया था। जानिए कब कब पाकिस्तान में सेना ने पाकिस्तानी सरकार का तख्तापलट कर खुद काबिज हुई और क्यों ?
20 साल के अंतराल पर हुआ हैं तख्तापलट
बीस साल बाद पाकिस्तान में इतिहास फिर से करवट बदल रहा है। जो बीस साल पहले नवाज शरीफ के साथ हुआ वहीं पाक पीएम इमरान खान के साथ होने जा रहा हैं। क्योंकि पाकिस्तानी फौज के मौजूदा मुखिया जनरल कमर जावेद बाजवा भी अपने पुराने उस्ताद जनरल परवेज मुशर्रफ का अनुकरण करते हुए उनकी राह पर चलने के तेवर दिखा रहे हैं। सबसे रोचक बात ये हैं कि जनरल परवेज मुशर्रफ से ठीक 20 साल पहले जनरल जिया-उल-हक ने पाकिस्तान में तख्ता पलट किया था। और अब ठीक 20 साल बाद जनरल कमर जावेद बाजवा की हरकतों से ऐसे संकेत मिल रहे हैं फिर तो इमरान खान का 'नवाज शरीफ' बनना तय है।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के कश्मीर पर मुंह की खाने के बाद तो साफ हो गया था कि इमरान खान के पाकिस्तान लौटने के बाद पहले जैसे हालात नहीं रहने वाले और अब पाकिस्तानी कारोबारियों को बुलाकर मीटिंग करने के बाद जनरल बाजवा ने अपना इरादा भी एक तरीके से जाहिर कर ही दिया है। बाजवा के इस कदम को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में दखल माना जा रहा हैं।
यूसुफ नजर के हिसाब से सेना का काम मुल्क की हिफाजत से आगे नहीं होना चाहिए और ऐसे में जबकि पाकिस्तान पहले ही कई बार सैन्य शासन के दौर से गुजर चुका है, बाजवा का ताजा कदम तख्तापलट की तरफ उठाया गया एक 'सॉफ्ट-स्टेप' है बेहद गंभीर नतीजे हो सकते हैं। फिर तो बहुत शक-शुबहे की जरूरत है नहीं । साफ है पाकिस्तान में इमरान खान को 'नवाज शरीफ' बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है।
परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को किया सत्ता से बेदखल
पाकिस्तान में सन 1988 से 1999 तक चार सरकारें आईं और चली गईं। 1997 के आम चुनावों में नवाज शरीफ की जीत हुई और वो प्रधानमंत्री बने। नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बना दिया था। एक रोज जब जनरल परवेज मुशर्रफ श्रीलंका में थे, नवाज शरीफ ने उन्हें शक के आधार पर सेनाध्यक्ष के पद से हटा दिया और जनरल अजीज को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बना दिया गया। नवाज शायद ये नहीं जानते थे कि जनरल अजीज परवेज मुशर्रफ के ही आदमी हैं और फिर वही हुआ जिसका डर नवाज को था। जनरल परवेज मुशर्रफ ने श्रीलंका से लौटते ही नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट कर दिया। मुशर्रफ ने नवाज शरीफ और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया और सत्ता हथिया ली।
12 अक्टूबर 1999 को तत्कालीन पाक आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलटा था और तत्काल प्रभाव से खुद को पाकिस्तान का चीफ एक्जीक्यूटिव घोषित कर दिया था। तख्ता पलट के 20 साल बाद आज हालात ये है कि मुशर्रफ को खुद अपने देश से भागकर विदेश में रहना पड़ रहा है। हालांकि, मुशर्रफ को चुनावी समर में हरा कर नवाज शरीफ फिर से प्रधानमंत्री बन गये थे।लेकिन दोबारा फौज के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा था।
बता दें सन 2000 में सैन्य शासक परवेज मुशर्ऱफ ने नवाज शरीफ को देश से बाहर भी करवा दिया। वहीं, पाकिस्तान की अदालत ने नवाज को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी करार दिया था। बहरहाल, परवेज मुशर्रफ ने तो उनकी मौत की तैयारी भी कर ली थी, लेकिन सऊदी अरब और अमेरिका ने दखल दे कर उन्हें देश से बाहर निकलवा लिया। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ फिलहाल जेल में हैं। चुनावों के वक्त वो अपनी बीमार बेगम को छोड़कर बेटी मरियम शरीफ के साथ पाकिस्तान लौटे और तभी गिरफ्तार कर लिया गया। चुनाव तो हारे ही अभी तक जेल में ही हैं और ये सब सिर्फ एक ही वजह से हो रहा है। नवाज शरीफ पाकिस्तानी फौज के मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने में नाकाम रहे। नवाज शरीफ के साथ ऐसा दूसरी बार हुआ है।
1999 में जो तख्तापलट हुआ वो बगैर किसी खून-खराबे के हुआ था और पाकिस्तान की फौजी हुकूमत एक बार फिर उसी रास्ते पर आगे बढ़ती नजर आ रही है। पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने भी बिलकुल वैसे ही हालात पैदा हो गये हैं। ये तो पहले से ही सरेआम है कि इमरान खान को पाकिस्तानी फौज ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा रखा है और उनकी हैसियत किसी प्रवक्ता से ज्यादा कभी नहीं रही। वह सेना की कठपुतली के जैसे काम करते रहे। कश्मीर मुद्दे पर इमरान खान जो भी बोलते और करते रहे जो उन्हें सेना की आदेश से मिलता रहा।
जुल्फिकार अली भुट्टो सरकार का तख्तापलट
परवेज मुशर्रफ से ठीक 20 साल पहले जनरल जिया-उल-हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार का तख्तापलट कर दिया था और खुद शासन की कमान अपने हाथ में ले ली थी। जुल्फिकार अली भुट्टो सरकार का तख्तापलटसन 1973 में जब जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, उन्होंने जियाउल हक को सेना प्रमुख बनाया। इंग्लैंड में कानून की प्रैक्टिस के दौरान जुल्फिकार की मुलाकात इस्कंदर मिर्जा और अयूब खान से हुई थी।1958 में जब जनरल अयूब खान ने सैन्य विद्रोह किया, तब जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी अयूब खान का साथ दिया था और इसका ईनाम भी उन्हें मिला।
जुल्फिकार को अयूब खान सरकार में विदेश मंत्री बना दिया गया, लेकिन कुछ विवादों के बाद उन्होंने 1966 में पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने 30 नवम्बर 1967 को अपनी अलग राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का गठन किया। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इतिहास अपने आपको दोहराता है और फिर पहले आम चुनाव के केवल सात साल बाद ही 4 जुलाई 1977 को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जियाउल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो शासन को खत्म कर पाकिस्तान में तीसरी बार मार्शल लॉ लागू कर दिया। ये पाकिस्तान के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाला मार्शल लॉ था।
इस तरह, जनरल जियाउल हक ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को उनकी पार्टी के सदस्यों सहित गिरफ्तार कर नेशनल एसेंबली भंग कर दी और खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। इसके लगभग एक साल बाद ही भुट्टो को फांसी पर लटका दिया गया। 1988 में जियाउल हक की एक विमान हादसे में मौत हो गई, लेकिन पाकिस्तान में सैन्य शासन बदस्तूर जारी रहा.इसके बाद फिर से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी दोबारा से सत्ता में आई और जुल्फिकार अली भुट्टो की लड़की बेनजीर भुट्टो को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री घोषित कर दिया गया।
1958 का सैन्य तख्तापलट
जिन्ना की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के काबिल बिल्कुल भी नहीं थे। उनमें वो राजनीतिक समझ की नितांत कमी थी, जिसकी जरूरत उस समय पाकिस्तान को थी। आजादी के 9 साल बाद तक पाकिस्तान में संविधान नहीं बन पाया था। इस दौरान बिना संविधान और राजनीतिक स्थिरता के 4 प्रधानमंत्री, 4 गवर्नर जनरल और एक राष्ट्रपति ने देश पर शासन भी कर लिया। ऐसे में पाकिस्तान की जनता एक ऐसे मसीहा का इंतजार कर रही थी, जो उन्हें राजनीतिक स्वतंत्रता और गुलामी के बाद एक और गुलामी से मुक्ति दिला सके।
इस समय देश को एक नया सैन्य जनरल मिला अयूब खान राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने जनरल अयूब खान को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बना दिया और फिर, 7 अक्टूबर, 1958 को राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को अपने अंदर समेटे जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा की सरकार का तख्तापलट कर दिया। उस दिन पहली बार पाकिस्तान ने लोकतंत्र में सैन्य हस्तक्षेप को अपनी नंगी आंखों से देखा था। इसके बाद, पाकिस्तान में 1969, 1977 और 1999 को भी तख्तापलट किया गया। अयूब खान ने पाकिस्तान की सत्ता हथियाकर मॉर्शल लॉ (सैन्य शासन) लागू कर दिया। इससे पहले मेजर जनरल राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने प्रधानमंत्री फिरोज खान नून को गद्दी से उतारा था। फिर मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर जनरल अयूब खान ने 13 दिन बाद खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। इस तरह से अयूब खान ने पूरे 9 साल पाकिस्तान पर राज किया और फिर सन 1969 में जनरल याह्या खान ने तख्तापलट कर उन्हें हुकूमत से बेदखल कर दिया।
इमरान सरकार क्यों बन रहे बाजवा का शिकार
संयुक्त राष्ट्र इमरान खान के भाषण का नंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद आया था। प्रधानमंत्री मोदी पहले ही पाकिस्तान के कारनामों और भारतीय 'युद्ध नहीं बुद्ध' नीति से दुनिया को बाखबर कर दिया था। बाद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री आये और कश्मीर में खून-खराबे की बात करते रहे। अगले दिन भारत ने भी जवाब दे दिया था। एक बात तो धीरे धीरे साफ होने लगी थी कि पाक फौज ने जिस मकसद से नवाज शरीफ को हटाकर इमरान खान को लाया था। वो तो पूरा होने से रहा इमरान खान लाख कोशिशों के बावजूद FATF ने पाकिस्तान को ग्रे-लिस्ट में तो रख ही दिया है, नवंबर तक ब्लैक-लिस्ट में पहुंच सकता है। IMF ने पाकिस्तान को 6 बिलियन डॉलर के कर्ज की हामी तो भर दी लेकिन ऐसी कड़ी शर्तें जड़ दी कि अब तक पहली किस्त का कुछ ही हिस्सा इमरान सरकार को हासिल हो पाया है। अगर पाकिस्तान सरकार ने शर्तें नहीं मानीं तो लोन का मामला बीच में ही अटक जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर पाकिस्तान की फजीहत की पहली गाज गिरी मलीहा लोधी पर। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की प्रतिनिधि मलीहा लोधी को UNGA खत्म होते ही हटा दिया गया। पाकिस्तान लौटने के बाद इमरान खान की ओर से पहला बड़ा फैसला यही लिया गया। इमरान खान ने ये फैसला भी फौजी हुकूमत के कहने पर ही लिया होगा। मालूम नहीं इमरान खान को इस बात का एहसास हुआ या नहीं। लेकिन मलीहा लोधी कि विदाई भी इमरान खान के लिए एक तरह से अलर्ट था। इमरान खान को भी अब तो एहसास हो ही चुका होगा कि उनका भी पत्ता साफ होने वाला है।
बाजवा का कार्यकाल बढ़ाना इमरान की थी मजबूरी
पाकिस्तान में 2018 के आम चुनाव से पहले जनरल राहिल शरीफ पाकिस्तानी फौज के चीफ हुआ करते थे। तब जो माहौल बन रहा था लगता कि नवाज शरीफ को हाशिये पर भेज कर वो भी परवेज मुशर्रफ की तरह फौजी शासक बन सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पाकिस्तान के नये आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा बने और राहिल शरीफ रिटायर होकर अपने दूसरे मिशन में लग गये। बाजवा थोड़े अलग हैं और हाल ही में तीन साल का एक्सटेंशन लेकर 2022 तक के लिए कुर्सी पक्की कर ली है। जब ये फैसला हुआ तो ऊपरी तौर पर तो ऐसा लगा जैसे बाजवा और इमरान दोनों ही एक दूसरे को एक्सटेंशन दे रहे हों।
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