हाथी पर सवार होकर साइकिल ने फूलपुर में मुरझाया कमल
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की दो प्रमुख सीटों गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव के रुझान आ रहे हैं। गोरखपुर में भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी से पीछे है। फूलपुर में भी सपा और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने भाजपा को पीछे कर दिया है। इन सबके बीच अगर किसी के लिए खुशखबरी है तो वो हैं बुआ और बबुआ। बुआ माने बसपा सुप्रीमो मायावती और बबुआ यानी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव। बसपा और सपा के गठबंधन ने गोरखपुर और फूलपुर में भाजपा के कमल को मुरझाने पर मजबूर कर दिया। फूलपुर में सपा के नागेंद्र पटेल ने भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल को हराया है। फूलपुर संसदीय क्षेत्र में साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को 5,03,564 वोट मिले थे वहीं विपक्ष (सपा बसपा और कांग्रेस )को 4,17,093 वोट मिले थे। हालांकि इस उपचुनाव के परिणाम में बसपा और सपा के गठबंधन को फेल होने की संभावनाओं को फिलहाल खारिज कर दिया है।
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गठबंधन पर भाजपा कह रही थी...
जब यह गठबंधन हुआ था तो भाजपा की ओर से लगातार यह कहा जा रहा था कि यह बेमेल जोड़ी है। इतना ही नहीं यूपी के सीएम आदित्यनाथ ने कहा था कि - 'आज फिर दोनों (बीएसपी और एसपी)) के गठबंधन की बातें सुनने में आ रही हैं। ऐसा लगता है कि जैसे कोई तूफान आता है तो सांप और छछूंदर एक साथ मिलके खड़े हो जाते हैं। इनकी ये स्थिति आ चुकी है।' आदित्यनाथ ने गठबंधन पर कहा था कि - 'बसपा और सपा के साथ आने की खबरों पर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि केले और बेर का कोई मेल नहीं होता है। अब केला कौन और बेर कौन, ये आप लोग खुद तय करें।'
जिस जमीन पर भाजपा हुई थी तैयार
दूसरी ओर अब तक के रुझानों से यह साफ दिख रहा है कि जिस दलित-पिछड़ा गठजोड़ के दम पर भाजपा का वनवास उत्तर प्रदेश में खत्म हुआ था, उस गठजोड़ की जमीन दरक रही है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का करिश्माई व्यक्तित्व भी फूलपुर और गोरखपुर में काम नहीं आ सका। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जिस सामाजिक समीकरण ने भाजपा को यूपी में 300 का आंकड़ा पार कराया था उसका केंद्र आदित्यनाथ नहीं थे।
क्या होगा अगला कदम?
मौजूदा रुझान अगर परिणामों में तब्दील हुए तो भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इस सेमिफाइनल में पीछे रह जाएगी। इसके बाद भाजपा हाईकमान, सपा और बसपा के गठबंधन की कोई काट निकालेगा या फिर किसी नए समीकरण की तैयारी शुरू की जाएगी। हालांकि एक सवाल यह भी है कि जिस तरह से यह उपचुनाव बसपा और सपा ने साथ लड़ा क्या वो इसे 2019 में भी जारी रखेंगे?
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