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असम: 'सरकार जिहादी को फांसी पर चढ़ा दे, पर मदरसों पर बुलडोज़र क्यों?' - ग्राउंड रिपोर्ट

असम सरकार ने मदरसों से जुड़े कुछ लोगों के कथित रूप से चरमपंथी गतिविधियों में शामिल होने का हवाला देते हुए बोंगाईगांव और बारपेटा ज़िले में स्थित मदरसों की इमारत को बुलडोज़र से गिरवा दिया. इसके बाद क्या हैं वहां के ज़मीनी हालात?

By BBC News हिन्दी
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"उस रात को जब मदरसे में पुलिस आई थी मैं पढ़ाई कर रहा था. फिर थोड़ी देर बाद हमें मदरसा ख़ाली करने के लिए कहा गया. मैं पुलिस को देखकर डर गया था. मेरा घर इसी गांव में है, इसलिए मैं रात को ही अपनी किताबें और कपड़े लेकर घर चला गया. कुछ छात्रों का घर काफ़ी दूर है, इसलिए उन्हें रात को रहने के लिए गांव की एक मस्जिद ले जाया गया. अगले दिन हमारे मदरसे को तोड़ दिया गया. पता नहीं अब आगे कहां पढ़ाई करूंगा. इस मदरसे में यह मेरा पहला साल था. मैं यहां पढ़ाई करके एक बड़ा आलिम बनना चाहता था."

Assam bulldozer on madarsa

असम के बोंगाईगांव ज़िले के काबाईटरी गांव के एक मदरसे में पढ़ाई करने वाले 16 साल के याहिया अहमद बड़ी मायूसी से यह बातें कहते हैं.

जोगीघोपा थाना क्षेत्र के काबाईटरी गांव में साल 1985 में बनाए गए मरकज़-उल-मा-आरिफ़ कुरियाना मदरसे को ज़िला प्रशासन ने बीते 31 अगस्त को तोड़ दिया था.

इससे पहले असम पुलिस ने 26 अगस्त को इस मदरसे में पढ़ाने वाले हिफ़्ज़ुर रहमान मुफ़्ती को चरमपंथी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार किया था. पुलिस ने अब तक की जांच में यह दावा किया है कि 38 साल के हिफ़्ज़ुर रहमान अल-क़ायदा भारतीय उपमहाद्वीप (एक्यूआईएस) और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) जैसे चरमपंथी संगठनों के लिए काम कर रहे थे.

असम पुलिस ने हिफ़्ज़ुर को ग्वालपाड़ा ज़िले के माटिया थाने में दर्ज जिहादी मॉड्यूल से जुड़े एक मामले (संख्या -105/22) के संबंध में गिरफ़्तार किया है.

बोंगाईगांव शहर से 17 नंबर राष्ट्रीय राजमार्ग पर क़रीब 35 किलोमीटर आगे बढ़ने पर काबाईटरी का एक छोटा सा बाज़ार मिलता है. वहीं थोड़ी दूर आगे सड़क की बाईं तरफ़ काफ़ी ऊंचा सीमेंट का एक पक्का प्रवेश द्वार बना हुआ है, जिस पर मरकज़-उल-मा-आरिफ़ क़ुरियाना मदरसा लिखा हुआ है.

कुछ मीटर आगे दाईं तरफ़ एक बड़ी पक्की मस्जिद बनी हुई है और क़रीब चार बीघा ज़मीन वाले इस परिसर में एक तरफ़ मलबे का ढेर लगा है. जो इसी मदरसे को तोड़े जाने का मलबा है. पास ही में खड़े कुछ लोग मदरसे के टूटने का अफ़सोस जताते दिखते हैं.

वहां मौजूद पास के गांव ईश्वरझारी से आए 30 साल के सिद्दीक़ अली कहते हैं, "मैं 2015 में महाराष्ट्र से मदरसे की पढ़ाई कर लौटा हूं. न्यूज़ में सुना कि इस मदरसे को तोड़ दिया तो काफ़ी दुख हुआ. इसलिए यहां देखने आया हूं. हम जैसे लोग मदरसे में शिक्षक बनने के लिए पढ़ाई करते हैं ताकि यहां बच्चों को पढ़ा सकें."

3,500 की आबादी वाले गांव में एकमात्र मदरसा था

क़रीब 3,500 की आबादी वाले इस गांव में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मुसलमान हैं और पूरे इलाक़े में यह एक मात्र क़ौमी मदरसा था, जहां बीते साल 224 छात्रों ने दाख़िला लिया था. ईंट और सीमेंट से बने दो मंज़िला इस मदरसे के भवन में कुल 12 कमरे थे.

बोंगाईगांव ज़िला उपायुक्त कार्यालय ने 30 अगस्त को जो आदेश जारी किया था, उसमें दो मंज़िला मरकज़-उल-मा-आरिफ़ क़ुरियाना मदरसा भवन समेत उसी ज़मीन पर शिक्षकों के लिए बने असम टाइप घर को मानव निवास के लिए संरचनात्मक रूप से कमज़ोर और असुरक्षित बताया था.

लिहाज़ा ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भवन के निर्माण को असम पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट के विनिर्देश और आईएस मानदंड के विपरीत बताते हुए ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था.

निर्माण के पहले सभी निर्देशों का पालन किया

ज़िला प्रशासन की इस कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए मरकज़-उल-मा-आरिफ़ क़ुरियाना मदरसा प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष मुशर्रफ़ हुसैन ने बीबीसी से कहा, "ज़िला प्रशासन ने मदरसे के भवन को असम पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट के नियमों के ख़िलाफ़ बताते हुए तोड़ा है, लेकिन आप मलबे को देखे हमने इसके निर्माण में कितने मोटे रॉड और मज़बूत सामग्रियों का इस्तेमाल किया था. इस भवन के निर्माण से पहले हमने यहां की मिट्टी की जांच करवाई थी और पंचायत के अनापत्ति प्रमाण पत्र से लेकर सभी सरकारी निर्देशों का पालन किया था."

"अगर किसी व्यक्ति का जिहादी संगठन से कोई लिंक पाया गया है तो सरकार उसके ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें लेकिन लोगों के चंदे के पैसे से बने मदरसे को तोड़ देना किस तरह न्याय हो सकता है. हमारे साथ यह अन्याय हुआ है."

वो कहते हैं, "पुलिस रात के समय मदरसे को ख़ाली कराने आई थी उस दौरान मदरसे में 163 छात्र मौजूद थे. हमें एक नोटिस थमाते हुए पुलिस ने केवल तीन घंटे का समय दिया था. दूर के गांव से यहां पढ़ने आए कई छोटे बच्चे थे उनको इतनी रात को घर पहुंचाना कैसे संभव था. लेकिन हमने ज़िम्मेदारी लेते हुए कुछ बच्चों के अभिभावकों को बुलाया और कुछ बच्चों को पास की मस्जिद में रखा. उन सबको अगले दिन घर पहुंचाया गया. बच्चे उस माहौल से काफ़ी डर गए थे."

'जिहादी को फांसी हो लेकिन मदरसा तोड़ना उचित नहीं'

पुलिस ने आपके मदरसे में पढ़ाने वाले एक शिक्षक को जिहादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार किया है. ऐसे में मदरसे में शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर आपका क्या मापदंड था?

इस सवाल का जवाब देते हुए मुशर्रफ़ हुसैन कहते हैं, "जिस शिक्षक को गिरफ़्तार किया है वो व्यक्ति इसी गांव का निवासी है. वो पिछले आठ साल से इस मदरसे में बच्चों को पढ़ा रहा था. हमारे मदरसे में 17 शिक्षक हैं और हम उनके काम पर नज़र रखते हैं ताकि वो हमारे यहां बच्चों को अच्छे से पढ़ाए. लेकिन कोई व्यक्ति मदरसे के बाहर क्या कर रहा है उस बारे में हमें कैसे पता चलेगा.

हम जिहादी कार्य में लिप्त किसी व्यक्ति का समर्थन नहीं करते. जब पुलिस उसको पहली बार पूछताछ के लिए बुलाकर ले गई थी तभी हमने उसे मदरसे से निकाल दिया था. हम चाहते हैं कि अगर उस व्यक्ति का किसी भी जिहादी संगठन से संबंध है तो सरकार उसको फांसी की सज़ा दें लेकिन उसके लिए मदरसे को तोड़ देना उचित नहीं था. हमने सरकार से प्रशासन से बहुत अनुरोध किया था. लेकिन इस मदरसे को बचा नहीं पाए."

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि यहां मदरसों से चरमपंथी गतिविधियां चलती हैं. ऐसे में बच्चों को मदरसे में दी जाने वाली शिक्षा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं? इस सवाल के जवाब देते हुए मुशर्रफ़ हुसैन कहते हैं, "हमारे मदरसे में अरबी शिक्षा के अलावा बच्चों को कक्षा आठवीं तक असम माध्यमिक शिक्षा मंडल के तहत सामान्य किताबें भी पढ़ाई जाती थी. इसके लिए हमने विज्ञान, अंग्रेज़ी जैसे विषय के शिक्षकों को भी रखा था."

मदरसों में क़ुरान हदीस की शिक्षा के साथ स्कूली तालीम भी

इसी मदरसे में पिछले चार साल से पढ़ाने वाले शिक्षक नुरुल अमीन बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा पर कहते हैं, "हमारे मदरसे में बच्चों को क़ुरान हदीस और इस्लाम की शिक्षा के साथ स्कूली तालीम भी दी जाती है. मदरसों में पढ़ाई को लेकर बाहर कई तरह की अफ़वाहें फैलाई जाती है लेकिन इस्लाम शांति और अमन का मज़हब है और यही हमारी शिक्षा का आधार है."

इसी मदरसे से पढ़ाई पूरी कर चुके मोफ़ीज़ुद्दीन शेख़ कहते हैं, "अगर गांव के लोगों को हिफ़्ज़ुर रहमान मुफ़्ती की जिहादी गतिविधियों के बारे में पता होता तो उसे कब का पुलिस के हवाले कर देते. क्योंकि आज उनकी वजह से इस मदरसे को तोड़ा गया. इस घटना से हमारे गांव का नाम बदनाम हुआ है. मदरसे को तोड़ने से ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने हमारी गर्दन काट दी हो. गांव के लोगों ने अपने खेत का धान बेचकर इस मदरसे का निर्माण के लिए पैसा दिया था. सालों चंदा एकत्रित करने के बाद इस मदरसे का दो मंज़िला भवन बना था. महज़ कुछ घंटों में सबकुछ तहस-नहस हो गया. मदरसे को तोड़ने से गांव के लोग बहुत दुखी हैं. मैं ख़ुद इस मदरसे में पढ़ा था. जिस दिन इसको तोड़ा गया उस दिन मैंने खाना नहीं खाया. अगर असम के मुख्यमंत्री हम पर थोड़ी दया करते तो यह मदरसा बच जाता."

मदरसा प्रबंधन कमेटी की एक जानकारी के अनुसार, इस मदरसे के निर्माण में क़रीब तीन करोड़ रुपए ख़र्च हुए थे और यह राशि इसी गांव के लोगों से चंदे के तौर पर मिली थी. गांव के लोगों की मदद से ही यह क़ौमी मदरसा चल रहा था.

इस इलाक़े में सालों से पत्रकारिता कर रहे मोनव्वर हुसैन बताते हैं, "उस रात मदरसे को ख़ाली कराने के लिए पुलिस और सुरक्षाबलों के जिस तादाद में जवान गांव में आए थे उससे यहां के लोग बहुत डर गए थे. जबकि ज़िला प्रशासन ने मदरसे को तोड़ने का कारण आपदा प्रबंधन से जुड़े नियमों का उल्लंघन बताया है. यह बात प्रशासन के आदेश कॉपी में भी है. प्रशासन के आदेश में इस मदरसे को तोड़ने का कारण जिहादी गतिविधियों से संबंधित नहीं बताया गया है. मैंने मदरसा तोड़ने के बाद गांव के कई लोगों से बात की है और यहां का कोई भी व्यक्ति किसी जिहादी का समर्थन नहीं करता. बल्कि गांव के लोग जिहादी गतिविधि को जड़ से उखाड़ने के लिए पुलिस की मदद करना चाहते हैं. मदरसा टूटने से यहां हर कोई दुखी है."

मोनव्वर आगे कहते हैं, "दरअसल पास के ग्वालपाड़ा ज़िले में जिहादी गतिविधियों में शामिल दो व्यक्ति की गिरफ़्तारी के बाद इस मदरसे में काम करने वाले शिक्षक हिफ़्ज़ुर रहमान के लिंक का पता चला था. इस शिक्षक को ग्वालपाड़ा पुलिस ने ही गिरफ़्तार किया था. इसके बाद ग्वालपाड़ा पुलिस हिफ़्ज़ुर रहमान को लेकर यहां मदरसे में छानबीन करने आई थी. अगर मदरसे के भीतर से पुलिस को कोई सबूत या फिर आपत्तिजनक दस्तावेज़ मिलते तो शायद मदरसा प्रबंधन कमेटी के और लोग भी गिरफ़्तार किए जाते. हालांकि पुलिस को हिफ़्ज़ुर की दुकान से अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के लीफ़लेट और अल-क़ायदा का एक प्रतीक चिन्ह मिलने की बात सामने आई है."

पुलिस का दावा मदरसे से अल-क़ायदा के दस्तावेज़ मिले हैं

काबाईटरी गांव के मरकज़-उल-मा-आरिफ़ कुरियाना मदरसा को ध्वस्त करने से जुड़ी पूरी कार्रवाई पर बात करते हुए बोंगाईगांव ज़िले के पुलिस अधीक्षक स्वप्निल डेका ने बीबीसी से कहा, "असम में पिछले कई दिनों से बोंगाईगांव, बारपेटा और ग्वालपाड़ा ज़िले में अंसारुल्लाह बांग्ला टीम और अल-क़ायदा भारतीय उपमहाद्वीप का मॉड्यूल पकड़े गए हैं. ऐसा ही एक मॉड्यूल जो ग्वालपाड़ा पुलिस ने पकड़ा था, उसमें मरकज़-उल-मा-आरिफ़ कुरियाना मदरसे के एक सहायक शिक्षक को शामिल पाया गया है. जब ग्वालपाड़ा पुलिस ने उनको लेकर यहा तलाशी अभियान चलाया तो कई आपत्तिजनक दस्तावेज़ मिले हैं. पुलिस को मदरसा के अंदर से अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के लीफ़लेट और अल-क़ायदा का लोगो मिला है. इस जांच के दौरान कई चीज़ें सामने आई और ज़िला प्रशासन की तरफ़ से भी हमें आदेश मिला कि आपदा प्रबंधन क़ानून के अनुसार वो बिल्डिंग असुरक्षित है. लिहाज़ा ज़िला उपायुक्त के आदेश के बाद वहां मदरसा समेत पांच कमज़ोर निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया."

मदरसे को तोड़ने की कार्रवाई को क्या आपदा प्रबंधन क़ानून का उल्लंघन माना जाए या फिर मदरसे में जिहादी गतिविधियां इसका मुख्य कारण है? इस सवाल का जवाब देते हुए पुलिस अधीक्षक ने कहा, "एक तो निर्माण बहुत ख़राब था. एक ही बिल्डिंग थी बाक़ी काफ़ी कमज़ोर निर्माण थे. दूसरी बात यह है कि मदरसे में जिहादी का बेस था. हमें डर था कि मदरसे में 163 छात्र पढ़ रहे थे और जो बयान में आया उसके अनुसार उस सहायक शिक्षक ने उन छात्रों को भी ट्रेनिंग वग़ैरह कराया था. वहां से कई चीज़ें बरामद हुई है. पुलिस मदरसा तोड़ने में नहीं लगी है, लेकिन अगर किसी मदरसे से जिहादी गतिविधियां चलने की लिंक मिलेगा, तो आगे भी कार्रवाई की जाएगी."

बोंगाईगांव पुलिस ने ज़िले में एक सर्वे किया था, जिसमें कुल 48 मदरसे होने की जानकारी सामने आई है.

इस बीच बीबीसी की टीम ने बारपेटा ज़िले के जोशीहाटी पारा गांव का भी दौरा किया जहां हाल ही में जामिउल हुडा इस्लामिक अकादमी नाम के एक मदरसा को ज़िला प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया.

जोशीहाटी पारा गांव के इस मदरसे से पुलिस ने मार्च में अंसारुल्लाह बांग्ला टीम की एक कैडर को गिरफ़्तार किया था, जो बांग्लादेशी नागरिक है. बारपेटा पुलिस का कहना है कि इसका एक और साथी फ़रार है. जिस बांग्लादेशी जिहादी को पुलिस ने गिरफ़्तार किया था, उसकी शिनाख़्त सैफ़ुल इस्लाम उर्फ़ मोहम्मद सुमन के नाम से की गई है.

बारपेटा पुलिस का दावा है कि उसने अब तक जिहादी गतिविधियों में शामिल कुल 24 लोगों को गिरफ़्तार किया है. इस इलाक़े में प्रवेश करते ही डर और दहशत का माहौल दिखने लगता है. कोई भी स्थानीय व्यक्ति इस मदरसे के बारे में पूछने पर बात करने से मना कर देता है.

ज़िला प्रशासन के आदेश पर मदरसे की ज़मीन पर घेरा लगा रहे अब्दुस सलाम कहते हैं, "पहले यह मदरसा ढाकालिया पाड़ा गांव में एक किराए के मकान में था. अभी इस मदरसे को इस गांव में शुरू किए तीन साल ही हुए थे. यहां पूरी आबादी मुसलमानों की है, लिहाज़ा इस मदरसे में क़रीब 150 बच्चे पढ़ रहे थे. मदरसा ख़ाली कराने के लिए पहले पुलिस के लोग आए थे. इसके दूसरे दिन मदरसे को तोड़ दिया गया. इस घटना के बाद से गांव में आतंक का माहौल है. यहां किसी भी व्यक्ति ने इस मदरसे को तोड़ने का विरोध नहीं किया."

इसी गांव में रहने वाले अशरफ़ अली बताते हैं, "यह मदरसा तीन साल से चल रहा था, लेकिन अभी हाल ही प्रशासन ने हमें बताया कि यहां मोहम्मद सुमन नाम का एक चरमपंथी शिक्षक बनकर पढ़ा रहा था. इसलिए मदरसे को तोड़ दिया गया. कई दूसरे गांव के बच्चे भी यहां पढ़ रहे थे. हम चाहते थे कि जिसने अपराध किया है उसे ही सज़ा मिले, लेकिन मदरसे को तोड़ दिया गया."

बरपेटा ज़िला के पुलिस अधीक्षक अमिताभ सिन्हा ने इस मामले की जानकारी देते हुए कहा, "हमने मार्च में सैफ़ुल इस्लाम उर्फ़ मोहम्मद सुमन को पकड़ा था. वो बांग्लादेश का नागरिक है और यहां कुछ स्थानीय लोगों की मदद से मदरसे में पढ़ा रहा था. पुलिस ने अब तक अलग-अलग कार्रवाई में कुल 24 लोगों को गिरफ़्तार किया है, जिनमें 23 लोग बारपेटा ज़िले के हैं. इनमें से कईयों ने ट्रेनिंग भी ली थी. असल में ये लोग अल-क़ायदा की फ्रंटल टीम अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के कैडर बनकर काम कर रहे थे. हमें इन आतंकी संगठनों से जुड़ी कई चीज़ें मिली हैं. फ़िलहाल मामलों की जांच चल रही है. जहां तक मदरसे को तोड़ने की बात है तो ज़िला प्रशासन ने पुलिस की सुरक्षा के बीच यह कार्रवाई की है. मदरसा तोड़ना हमारा मक़सद भी नहीं है. सरकारी ज़मीन पर किसी ने मदरसा बना रखा है और नियमों का उल्लंघन हो रहा तो कार्रवाई तो होगी."

'मदरसों पर कार्रवाई मुसलमानों के साथ अन्याय है'

हालांकि ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रिज़ाउल करीम का कहना है कि मदरसों पर की गई कार्रवाई मुसलमानों के साथ अन्याय है. वो कहते हैं, "असम के मुसलमान किसी जिहादी का समर्थन नहीं करते. लेकिन किसी एक व्यक्ति के जिहादी लिंक को कारण बनाकर मदरसों को तोड़ना कहीं से भी उचित नहीं है. जबकि पुलिस अभी मामलों की जांच कर रही है. मदरसों को तोड़ने को लेकर मुख्यमंत्री और ज़िला प्रशासन की बातें अलग-अलग है. ऐसा लगता है कि असम के मुख्यमंत्री सभी मदरसों को बंद करना चाहते हैं. लिहाज़ा हम इसे उनकी एक राजनीतिक साज़िश मानते हैं. क्योंकि उन्होंने सरकारी मदरसों को पहले ही बंद कर दिया है."

हालांकि मुख्यमंत्री सरमा ने कई दफ़ा कहा है अगर उन्हें मदरसों में चरमपंथी गतिविधियों के बारे में इनपुट मिलेगी तो वे कार्रवाई करेंगे. असम सरकार जल्द ही एक सरकारी पोर्टल बनाने जा रही है जिस पर इमामों और मदरसा शिक्षकों को अपना पंजीकरण कराना होगा. मुख्यमंत्री सरमा का यह दावा है कि इस काम में असम का मुस्लिम समुदाय सरकार की मदद कर रहा है.

इस बीच राज्य के पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत ने रविवार को राज्य में इस्लामिक संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की है. पुलिस महानिदेशक का कहना है कि राज्य में अल-क़ायदा और एबीटी मॉड्यूल के ख़िलाफ़ जारी कार्रवाई में मुसलमान संगठनों से समर्थन और सहयोग देने का आग्रह किया है.

असम में मदरसों का इतिहास आज़ादी के पहले का है. लेकिन बाद के दिनों में ऐसे आरोप लगने लगे कि जिन दूर-दराज़ के इलाक़ों में नियमित स्कूल नहीं है, वहां के कुछ मदरसों में बच्चों को कट्टरपंथी इस्लाम की पढ़ाई करवाई जाती है.

असम सरकार ने हाल ही में प्रदेश में चल रहे क़रीब 700 सरकारी मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदल दिया था. लेकिन राज्य में इस समय 1,000 से भी अधिक प्राइवेट मदरसे चल रहे हैं, जिन पर राज्य सरकार जल्द ही नियमन लाने का विचार कर रही है.

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Assam bulldozer on madarsa
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