कोरोना संकट में किसी 'मनोरोगी' की तरह काम करती दिखी केंद्र सरकार, इसलिए बिगड़े हालात: अमर्त्य सेन
नई दिल्ली, 5 जून: नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कोरोना से देश में पैदा हुए बुरे हालातों को लिए केंद्र सरकार के रवैये को जिम्मेदार कहा है। सेन ने कड़े शब्दों में सरकार के कामकाज की आलोचना करते हुए कहा कि कोरोना को लेकर भारत सरकार किसी भ्रम का शिकार लगी, वो संक्रमण को रोकने के लिए उपाय करने की बजाय अपने कामों का श्रेय लेने पर ध्यान लगाए रही। जिसके चलते हालात बेकाबू होते चले गए। अमर्त्य सेन ने राष्ट्र सेवा दल के एक कार्यक्रम में ये कहा है।
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कोरोना की दूसरी लहर आने के बाद बीते दो महीनों में देश में अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन, दवाओं की भारी कमी रही तो वहीं शम्सान और कब्रिस्तान में जगह तक के लिए लोगों को मुश्किल आई। इसी को लेकर अमर्त्य सेन ने केंद्र सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार एक स्किजोफ्रेनिया (एक मनोरोग जिसमें वास्तविक और काल्पनिक में व्यक्ति भेद नहीं कर पाता) की स्थिति में चली गई। सरकार हकीकत से दूर हो गई, जिसका नतीजा सबके सामने है।
सेन ने कहा, भारत अपने दवा निर्माण के कौशल और साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण महामारी से लड़ने के लिए बेहतर स्थिति में था लेकिन इसका फायदा नहीं लिया जा सका। भारत सरकार ने भ्रम में रहते हुए कोविड को फैलने से रोकने के लिए काम करने के बजाय अपने कामों का श्रेय लेने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे स्किजोफ्रेनिया की स्थिति बन गई और काफी दिक्कतें पैदा हुई।
उन्होंने कहा, सरकार को यह सुनिश्चित करना था कि भारत में यह महामारी ना फैले लेकिन श्रेय पाने की कोशिश करना और श्रेय पाने वाला अच्छा काम ना करना बौद्धिक नादानी का एक स्तर दिखाता है जिससे बचा जाना चाहिए था।
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अमर्त्य सेन ने ये भी कहा कि भारत पहले से ही सामाजिक असमानताओं, धीमे विकास और बेरोजगारी से जूझ रहा है। अब कोरोना के महामारी के बाद ये बहुत बढ़ने वाला है। सेन ने बेरोजगारी और गरीबों को लेकर खासतौर पर ध्यान दिए जाने की जरूरत कही है।