3 राज्यों की जीत से राहुल गांधी की जिंदगी में आएंगे ये 4 बदलाव
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस किंग बनकर उभरी है। 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के लिए यह विजय संजीवनी से कम नहीं है। संयोग देखिए कि एक साल पहले 11 दिसंबर 2017 को राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभाली थी। 11 दिसंबर 2018 को यानी ठीक एक साल बाद उसी दिन कांग्रेस की जीत का डंका बज गया। विधानसभा चुनाव 2018 के इन परिणामों ने राहुल गांधी की जिंदगी रातों-रात बदल दी है।
अब विरोधी राहुल गांधी को नहीं कह सकेंगे पप्पू या पार्ट टाइम पॉलिशियन
भारतीय राजनीति में प्रवेश करने के बाद राहुल गांधी के हिस्से जीत कम ही आईं। नतीजा यह हुआ कि विरोधी उन्हें 'पप्पू', 'पार्ट टाइम पॉलिटिशन', 'नॉन सीरियस नेता' जैसे नामों से बुलाने लगे, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद राहुल गांधी न केवल खुद बेहद आक्रामक नजर आए बल्कि कांग्रेस भी निराशा के दौर से बाहर दिखी। राहुल गांधी के अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस ने गुजरात में भाजपा को कड़ी टक्कर दी। इसके बाद पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता हासिल की। कर्नाटक में भले ही कांग्रेस अपने दम पर वापसी नहीं कर सकी, लेकिन जेडीएस-कांग्रेस सरकार गठन में राहुल गांधी ने बखूबी सांगठनिक कौशल दिखाया और सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी भाजपा को सरकार बनाने से रोक दिया। अब तीन राज्यों में कांग्रेस की वापसी ने राहुल गांधी से हारे हुए युवराज का टैग हटा दिया है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की जीत ने अब उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में दमदार तरीके से नरेंद्र मोदी के सामने खड़ा कर दिया।
अब 2019 लोकसभा चुनाव नहीं होगा अमित शाह के लिए केक वॉक
2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने के बाद एक के बाद एक राज्यों में कांग्रेस को हराने के बाद विजय रथ पर सवार भाजपा के करीब-करीब सभी बड़े नेता एक साल पहले तक मानकर चल रहे थे कि 2019 में उनके लिए चुनौती पेश करने वाला कोई नहीं है। पिछले एक साल में लगातार उपचुनावों में हार पर हार और अब हिंदू हार्टलैंड एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के हाथ से निकलने के बाद भाजपा के लिए 2019 कड़ी चुनौती बन गया है। अब भाजपा का कोई भी नेता राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को नजरंदाज करने की भूल नहीं कर सकता।
महागठबंधन में बढ़ जाएगी स्वीकार्यता
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा ही नहीं बल्कि उनके सहयोगी भी लंबे समय से रणनीतिकार के तौर पर स्वीकार नहीं कर रहे हैं। शरद पवार हों या अखिलेश यादव, मायावती हों या ममता बनर्जी, सभी 2019 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार माानने से खुलकर इनकार करते आए हैं। अब उनके नेतृत्व में मिली जीत के बाद राहुल गांधी की स्वीकार्यता बढ़ जाएगी।
अब पार्टी पर मजबूत पकड़ बना सकेंगे राहुल गांधी
राहुल गांधी की स्वीकार्यता पर भाजपा और सहयोगी दल ही नहीं बल्कि खुद उनकी पार्टी के कई नेता भी सवाल खड़े कर रहे थे। खासकर सोनिया गांधी के करीब पार्टी के सीनियर लीडर्स नहीं चाहते थे कि राहुल गांधी कमान संभालें और अब जब वह कमान संभाल चुके हैं तब भी उनके फैसलों को पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का समर्थन नहीं मिल रहा था, लेकिन अब जीत के बाद राहुल गांधी पार्टी के संगठन पहले से ज्यादा मजबूत पकड़ बना सकेंगे।