दक्षिण गुजरात में आप ने बढ़ाई भाजपा की मुश्किलें, पहले चरण के चुनाव में इन वोटरों के कारण रोचक होगा मुकाबला
दक्षिण गुजरात में आप ने बढ़ाई भाजपा की मुश्किलें, पहले चरण के चुनाव में रोचक होगा मुकाबला
Gujarat Assembly Elections 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान की तारीख अब नजदीक आ चुकी हैं भाजपा समेत सभी पार्टियां अपना प्रचार करने में अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं लेकिन पहले चरण के चुनाव में दक्षिण गुजरात भाजपा के लिए बड़ी टेंशन बन चुका है क्योंकि आम आदमी पार्टी के कारण यहां भाजपा की जीत की राह थोड़ी मुश्किल होती नजर आ रही है। इसकी वजह कि 1 दिसंबर को गुजरात चुनाव के पहले चरण में जिन 89 सीटों पर चुनाव होंगे, उनमें से 35 सीटें दक्षिण गुजरात से हैं। पहले चरण में दक्षिण गुजरात के भरूच, नर्मदा, तापी, डांग, सूरत, वलसाड और नवसारी के दक्षिणी जिलों में वोटिंग होनी हैं। इस विधानसभा चुनावों में दक्षिण गुजरात क्षेत्र में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए आप मुश्किलें खड़ी कर सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि दक्षिण गुजरात में सरकार के विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के खिलाफ आम आदमी पार्टी और स्थानीय आदिवासी समुदाय का जमकर आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन ।
14 आदिवासी-आरक्षित सीटों में से 7 पर है भाजपा का है कब्जा
गौरतलब है कि 2017 में भाजपा इन 35 में से 25 सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं उसकी विरोधी पार्टी कांग्रेस और भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) ने क्रमशः आठ और दो सीटें जीती थीं। इस क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 14 सीटों में से भाजपा केवल पांच ही जीत सकी। बाद के उपचुनावों में, इसने कांग्रेस से दो अतिरिक्त सीटें डांग और कपराडा हासिल की थी। 14 आदिवासी-आरक्षित सीटों में से, भाजपा के पास वर्तमान में सात - डांग, कपराडा, उमरगाम, धरमपुर, गंडेवी, महुवा और मांगरोल हैं।
दक्षिण गुजरात का आदिवासी बहुल क्षेत्र भाजपा की दुखती रग
दक्षिण गुजरात के आदिवासी बहुल क्षेत्रों को अभी भी भाजपा की दुखती रग माना जाता है वहीं दक्षिण गुजरात में शहरी मतदाता 2017 में भाजपा के साथ मबजूती से खड़े रहे। वहीं दक्षिण गुजरात का सूरत शहर 2015 में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आरक्षण आंदोलन का केंद्र था और यहां बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। सूरत के कपड़ा व्यापारी भी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स के कार्यान्वयन के खिलाफ थे, और हड़तालें हुईं लेकिन विरोध और कथित सत्ता-विरोधी कारक के बावजूद, भाजपा ने अंततः सूरत जिले की 16 विधानसभा सीटों में से 15 पर जीत हासिल की, जिसमें सूरत शहर में पाटीदार बहुल वराछा, कामरेज और कटारगाम सीटें शामिल हैं। लेकिन भाजपा उस चुनाव में एक सीट नहीं जीत सकी जो आदिवासी बहुल मांडवी (एसटी) सीट थी।
आप के कारण दिलचस्प होगा इस बार का मुकाबला
वहीं अगर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की बात की जाए तो जोरदार प्रचार अभियान और पिछले साल के सूरत निकाय चुनाव में उसके प्रभावशाली प्रदर्शन के मद्देनजर इस बार मुकाबला फिर से दिलचस्प हो गया है। सूरत नगर निगम चुनाव में आप ने 27 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस का खाता खाली रहा।
आप ने चुनावी मैदान में उतारे हैं ये उम्मीदवार
आम आदमी पार्टी ने वराछा सीट से पाटीदार नेता अल्पेश कथीरिया को उम्मीदवार बनाया है जो कभी हार्दिक पटेल के करीबी सहयोगी थे। एक अन्य पूर्व पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पास) के नेता धार्मिक मालवीय आप के टिकट पर ओलपाड से चुनाव लड़ रहे हैं। आप की गुजरात इकाई के अध्यक्ष गोपाल इटालिया कटारगाम सीट से लड़ रहे हैं, जो पाटीदार चेहरा भी हैं। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भीमाभाई चौधरी को भरोसा था कि पाटीदार समुदाय के समर्थन से फर्क पड़ेगा। इस बार पार्टी आलाकमान और बाकी वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार कर रहे है जिस कारण पार्टी पर वोटरों को भरोसा और बढ़ेगा।
क्यों आदिवासी भाजपा से हैं नाराज?
आदिवासियों ने दावा किया कि परियोजना के हिस्से के रूप में बनाए जाने वाले बांधों के कारण वे अपनी जमीन और घर खो देंगे। हाल ही में, उन्होंने पार-तापी-नर्मदा नदी-लिंक परियोजना के खिलाफ दक्षिण गुजरात में बड़े पैमाने पर विरोध का नेतृत्व किया, जिसमें सौराष्ट्र और कच्छ के शुष्क क्षेत्रों में अधिशेष पानी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव था।
भाजपा का दावा भाजपा के प्रति आदिवासियों में कोई गुस्सा नही है
भाजपा
ने
कहा
भाजपा
के
प्रति
आदिवासियों
में
कोई
गुस्सा
नही
है
भाजपा
के
मुकेश
पटेल
ने
दावा
किया
कि
आदिवासी
आबादी
में
उनकी
पार्टी
के
खिलाफ
कोई
गुस्सा
नहीं
है।
मुझे
विश्वास
है
कि
बीजेपी
सूरत,
तापी,
डांग,
नवसारी
और
वलसाड
जिलों
की
सभी
28
सीटों
पर
जीत
हासिल
करेगी।
आदिवासियों
में
कोई
गुस्सा
नहीं
है।
उन्होंने
कहा
कुछ
लोगों
ने
इन
आदिवासियों
को
उकसाया।
VIDEO:घर के सामने से महिला की चप्पल लेकर भागा सांप, डरने के बजाय लोग लगाने लगे ठहाके