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'माया और मुलायम' के लिए बड़ा गड्ढा खोद रहे हैं नीतीश?

By हिमांशु तिवारी आत्मीय
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लखनऊ। बीते दिनों बीएस-4 द्वारा आयोजित कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने सूबे के सीएम अखिलेश यादव पर तीखेवार करते हुए कहा कि 'घबराईये मत, मुझे भले रैली में आने से रोक लें लेकिन शराबबंदी लागू कर दें।' दरअसल इस बयान के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उत्तर प्रदेश में लोगों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी।

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और वजह थी सुरक्षा के नाम पर नीतीश कुमार को कई घंटों तक वीवीआईपी गेस्ट हाउस में कैद रखना। जिसे लेकर नीतीश को सूबे के मुखिया पर वार करने का मौका मिल गया। हालांकि बिहार के बढ़ते जंगलराज और नीतीश की उत्तर प्रदेश में बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए लोगों ने कई दफे सवाल उठाए हैं। लेकिन नीतीश ने कोई प्रभाव न दर्शाकर यह साबित कर दिया कि वे तमाम ख्वाबों के साथ दिल्ली की मंशा पाल चुके हैं। जिसे हकीकत बनाने की खातिर कवायद जारी है। बहरहाल दिल्ली के लिए रास्ता माना जाता है कि यूपी से होकर गुजरता है तो इसे खेमे में करना एक बड़े टास्क जैसा ही है।

खतरे में सियासी महारथी

कयासें लगाई गईं, कभी जिक्र हुआ कि नीतीश, आरएलडी ( अजीत सिंह की पार्टी) के साथ गठबंधन कर सूबे की सियासत में उतर सकते हैं। तो कभी इस बात की भी चर्चा हुई कि कई दल मिलकर गठबंधन कर सूबे में पहले से काबिज शीर्ष पार्टियों की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। बिहार में भी महागठबंधन भाजपा पर खासा भारी पड़ गया। और बिहार में बहार हो, नीतीश कुमार हों... बिहार के लोगों की जुबान पर चढ़ गया।

महागठबंधन रचेगा इतिहास

जिसे देखते हुए सभी ने आशंकाओं के साथ तैयारी करना शुरू कर दिया। खुले तौर पर यह महागठबंधन यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुक़ाबला करने के लिए होगा। लेकिन इसका असली मक़सद मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी से राजनीतिक बदला लेना है।

लखनऊ में महागठबंधन की अनौपचारिक घोषणा

जनवरी के अंतिम दिन जेडी(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने लखनऊ में महागठबंधन की अनौपचारिक घोषणा की। उसके दो दिन बाद नीतीश कुमार ने यूपी में अपनी पहली जनसभा कर उस तरफ़ क़दम भी बढ़ा दिए।

सपा की बढ़ाएंगे मुश्किलें

जौनपुर से अपनी सभा का आगाज करने के दौरान नीतीश ने भाजपा, पीएम मोदी को निशाने पर लिया था। लेकिन उनका वास्तव में विरोध सपा से है। दरअसल ये 'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना' वाला मामला है। मुलायम सिंह यादव ने बिहार में जेडी(यू)-आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन का साथ छोड़कर, तीसरा मोर्चा बना अलग से चुनाव लड़ने का दांव खेला था।

चुनाव में महागठबंधन भी पलटवार करेगा

तभी तय हो गया था कि यूपी के चुनाव में महागठबंधन भी पलटवार करेगा। हालांकि इस बीच सियासी समीकरणों में खासा बदलाव आए हैं। जहां मायावती का चरणवंदन करने वाले स्वामी भाजपा के साथ जुड़कर अपने राजनीतिक कद के लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बीएस-4 के जरिए नीतीश को सूबे में मजबूत दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है।

कुर्मीवोट बैंक पर नीतीश की नजर

सूबे में तकरीबन 12 प्रतिशत कुर्मी मतदाता है, कहने का आशय यह है कि ब्राह्मण वोटबैंक के बराबर कुर्मी मतदाता है। जो कि पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की क्षमता रखता है। जिस पर निशाना साधते हुए नीतीश ने सूबे की सियासत में दिलचस्पी दिखाई है। दरअसल साफ है कि नीतीश अपना खेल बनाने के इरादे से ज्यादा भाजपा, सपा का खेल बिगाड़ने आ रहे हैं। ऐसे में अन्य दलों का डरना स्वाभाविक है।

महागठबंध में कौन-कौन हाथ मिलाता है?

सवाल यह भी है कि नीतीश की पार्टी द्वारा घोषित गठबंधन में कौन-कौन हाथ मिलाता है। क्योंकि जेडी(यू) और आरजेडी बिहार में व्यापक जनाधार वाली पार्टियां है लेकिन यूपी के लिहाज से उनका जनाधार नहीं है। या यह भी कहा जा सकता है कि यूपी में इन दलों की स्थिति वही है जो सपा की बिहार में है। ऐसे में महागठबंधन को जीवित करने के लिए दरकार है कांग्रेस के साथ की। लेकिन ऐसी कोई भी स्थिति नहीं नजर आ रही है।

शराबबंदी का फायदा भी नुकसान भी

उत्तर प्रदेश में नीतीश बिहार में हुई शराबबंदी को कई मौकों पर दोहरा चुके हैं। वे इस काम को भुनाने के पूरे मूड में नजर आ रहे हैं। हालांकि इस पहल से महिलाओं के चेहरों में सबसे ज्यादा खुशी है। पर, अब खुशी निराशा में बदलती जा रही है। बिहार में शराब प्रतिबंधित है, लेकिन गर किसी घर में शराब मिलती है तो सामूहिक रूप से जुर्माने का प्राविधान बनाया गया है, जिसकी मार महिलाओं पर ही पड़ती नजर आ रही है।

वनइंडिया ने बिहार में महिलाओं से बातचीत की

वन इंडिया ने बिहार में कुछ महिलाओं से बातचीत भी की तो उन्होंने कहा '' अगर घर में शराब मिलता है, जिसे पति ने छिपाकर रखा है तो क्या इस मामले में हमको भी गिरफ्तार कर लीजिएगा...ई ता टोटली रॉन्ग है न''

'M' फैक्टर के लिए मुसीबत बन रहे हैं नीतीश?

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह, बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए नीतीश की सूबे की सियासत में एंट्री के बाद मुश्किलें खड़ी होती नजर आ रही हैं...जहां नीतीश मुलायम से बिहार इलेक्शन की अदावत निकालेंगे वहीं मायावती के साथ जुड़े रहे दलित समुदाय को अपने खेमे में करने का प्रयास करेंगे।

नुकसान मायावती और मुलायम का होगा

हालांकि इन दोनों ही मायनों में नुकसान मायावती और मुलायम का ही होगा। जबकि नीतीश सूबे में किसी स्थान पर काबिज ही नहीं है तो फायदा मिलने की उम्मीद पूर्णतया व्यर्थ है। देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति का बवंडर किन किन सियासी दलों को डुबोता है और किसको पार लगा देता है।

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English summary
Now Nitish Kumar seems to have carefully reworked his UP strategy to balance his attack between Mulayam and Mayawati.
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