Imran Khan: दुनिया भर की हसीनाओं के चहेते रहे क्रिकेटर इमरान खान कैसे बने राजनेता
1980 और 90 के दशक में क्रिकेटर इमरान खान पाकिस्तान ही नहीं बल्कि भारत और इंग्लैंड में भी बेहद लोकप्रिय थे। क्रिकेट में सफल कैरियर के बाद राजनीति में लंबे समय से सक्रिय हैं इमरान खान।
Imran Khan: साल 1997 में 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' को दिये एक इंटरव्यू में इमरान खान ने कहा कि वे पाकिस्तान को सेक्यूलर देश बनाने के खिलाफ हैं। उनका कहना था कि "पाकिस्तान न तो इस्लामिक देश है और न ही लोकतंत्र। पश्चिम जैसा लोकतंत्र यहां काम नहीं करेगा। मैंने राजनीति इस्लामिक देश बनाने के लिए शुरू की है। पाकिस्तानी लोग इस्लामिक देश चाहते हैं।"
पाकिस्तान को और अधिक इस्लामिक देश बनाने की सोच रखने वाले इमरान खान लगभग दो दशकों के बाद पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री बने। मगर उनका यह सफर ज्यादा दिनों तक नहीं टिका। चार सालों तक पाकिस्तान पर राज करने वाले इमरान खान को साल 2022 में इस्तीफा देना पड़ गया। और आज उनके सितारे इतने गर्दिश में है कि पाकिस्तान की पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाये हुए है। दरअसल, इमरान खान पर आरोप है कि प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने मिलने वाले उपहारों को तोशाखाना से कम दाम पर खरीद कर अपने मुनाफे के लिए बेच दिया।
इमरान खान पाकिस्तान की राजनीति में कई सालों से सक्रिय हैं। आइये एक नजर डालते हैं कैसे शुरुआत की थी उन्होंने अपने राजनैतिक कैरियर की।
तानाशाह जिया की सलाह पर लौटे क्रिकेट की दुनिया में
1987 के क्रिकेट विश्वकप के बाद इमरान खान ने सन्यास लेने का फैसला कर लिया था। तब कयास लगाये गए कि वे राजनीति में आ सकते हैं। अखबारों में उन दिनों इस बात कि गहमागहमी बनी हुई थी कि उन्हें पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में सीनेटर बनाया जा सकता है। मगर अचानक से उन्होंने क्रिकेट से रिटायर होने का अपना फैसला वापस ले लिया। ऐसा कहा जाता है कि यह फैसला उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के कहने पर लिया था।
इमरान खान एकबार फिर से क्रिकेट खेलने लगे। साल 1992 में उन्होंने विश्वकप जीतने वाली पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का नेतृत्व किया। पाकिस्तान की इस बड़ी जीत के बाद आखिरकार 39 साल की उम्र में इमराना खान ने क्रिकेट से सन्यास ले लिया।
जब लगे यहूदी जासूस होने के आरोप
इमरान खान का पहला निकाह जेमिमा गोल्डस्मिथ से हुआ। वे इजरायली मूल की ब्रिटिश नागरिक थी जोकि यहूदी धर्म को मानती थी। पाकिस्तान में इस निकाह का जमकर विरोध किया गया। स्थानीय मीडिया में यहां तक आरोप लगे थे कि जेमिमा एक इजरायली जासूस है। हालांकि, उन्होंने इस्लाम में धर्मान्तरण कर लिया था। फिर भी पाकिस्तानी मीडिया में उन्हें 'यहूदी की बेटी' कहकर संबोधित किया जाता था। यही नहीं वहां एक गाना भी बेहद लोकप्रिय हुआ, जिसके बोल थे, "बड़े भैया लाये है लन्दन से छोरी, दिला दो हमें भी दुल्हन गोरी, गोरी।"
जिहादी विचारधारा से प्रभावित थे
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख जनरल हमीद गुल और इमरान खान में बेहद नजदीक का संबंध था। हामिद गुल एक कट्टर जिहादी मानसिकता वाले व्यक्ति थे। कहा जाता है कि इमरान खान को उनकी यही जिहादी मानसिकता पसंद आती थी। इसलिए इमरान, जनरल हमीद गुल और मोहम्मद अली दुर्रानी के बनाये एक संगठन 'पासबान' में शामिल हो गये।
बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने दिया साथ
इसी दौरान 29 दिसंबर 1994 को इमरान खान ने अपनी मां के नाम पर कैंसर अस्पताल बनाने का काम शुरू किया। पूरी दुनिया से तकरीबन $25 मिलियन चंदा इकट्ठा कर दो साल बाद शौकत खानम मेमोरियल चिकित्सालय और अनुसंधान केन्द्र बनाया गया।
गौरतलब है कि इस अस्पताल को भारतीय अभिनेत्री सुष्मिता सेन ने भी पैसा दिया था। उन्होंने अपनी द्वारा बनाई एक पेंटिंग को 25 लाख रुपयों में ऑक्शन किया था। पेंटिंग का नाम "इबादत" था। यही नहीं उस दौर की एक और लोकप्रिय भारतीय अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने भी इमरान खान के इस अस्पताल के लिए दुबई में 3 करोड़ का चंदा इकठ्ठा करने में मदद की थी। इमरान खान से उनकी दोस्ती परमेश्वर गोदरेज की एक पार्टी में हुई थी।
अस्पताल के जरिये आये राजनीति में
अस्पताल का चंदा इकठ्ठा करने के दौरान ही इमरान खान की मुलाकात अरबपति व्यवसायी अब्दुल अलीम खान से भी हुई। उन्होंने इस अस्पताल के लिए 6 करोड़ रुपये का दान देने की घोषणा की। यह वही अब्दुल अलीम खान थे, जिन्हें बाद में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का 'एटीएम' भी कहा जाता था।
ब्रिटेन की राजकुमारी डायना ने भी इस अस्पताल का दौरा किया था। इमरान खान के बुलावे पर वे ईद के दिन पाकिस्तान आई थी। तब पाकिस्तान में इस बात की चर्चा होती थी कि इमरान खान ने डायना को इसलिए बुलाया है जिससे उन्हें राजनैतिक बढ़ावा मिल सके। तब पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो हुआ करती थी। तभी साल 1996 में इस अस्पताल में एक बड़ा बम धमाका हो गया। इस हमले में कई लोगों की मौत हो गयी। बम धमाकों के आरोप-प्रत्यारोप के बीच इमरान खान पाकिस्तान की चुनावी राजनीति में उतर गए।
25 अप्रैल 1996 को इमरान खान ने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की स्थापना की और खुद उसके अध्यक्ष बन गये। बड़ी बात यह थी कि उनकी पार्टी का घोषणापत्र भी 'पासबान' की बुनियाद पर ही आधारित था। जिनमें इस्लामिक मुल्क स्थापित करने के बड़े-बड़े वादे किये गए थे।
पहली बार चुनाव में जमानत हुई जब्त
1997 के आम चुनावों में इमरान खान 9 सीटों से खड़े हुए। उनके मुख्य प्रतिद्वंदी नवाज शरीफ थे। मगर यह चुनाव वे और उनकी पार्टी दोनों हार गये। लगभग हर सीट पर उनके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी। इस हार से उनकी राजनैतिक रूचि कम हो गयी और क्रिकेट की दुनिया में ज्यादा दिखाई देने लगे। इस बीच 2002 चुनावों में उनकी पार्टी को मात्र 0.8% वोट मिले। नेशनल असेम्बली की कुल 272 सीटों में उन्हें एक सीट पर जीत मिली। यह जीत किसी और की नहीं बल्कि खुद इमरान खान को मियांवाली क्षेत्र से मिली थी।
2018 में बने पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री
इमरान खान इस जीत के बाद क्रिकेट और राजनीति दोनों में सक्रिय रहे। फिर 2013 के आम चुनावों में उनकी पार्टी ने 30 सीटें जीतीं और वोट शेयर के मामले में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसके बाद 2018 का समय आया और 25 जुलाई को हुए चुनाव में पीटीआई 116 सीटों पर कब्जा कर पाकिस्तान की सबसे बड़ी पार्टी बन गयी।
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मगर अभी भी बहुमत के लिए पीटीआई को 173 का आकंडा छूना था। अतः पीटीआई नेतृत्व ने मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट- पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी), ग्रैंड डेमोक्रेटिक एलायंस (जीडीए), पीएमएल-कैद (पीएमएल-क्यू) और बलूचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी) के साथ साथ निर्दलियों से संपर्क साधा। इसके बाद संसद में हुई वोटिंग में इमरान खान को इससे तीन अधिक यानी 176 वोट मिले। जबकि उनके विरोधी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के अध्यक्ष शहबाज शरीफ को 96 वोट मिले। इस तरह से इमरान खान ने पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री के रूप में 18 अगस्त 2018 को शपथ ली। मगर साल 2022 आते-आते उनकी पार्टी के दो दर्जन सांसद अपने ही नेता के खिलाफ हो गये और उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ गया। यह माना जाता है कि इमरान खान के राजनीतिक उभार और पतन दोनों में पाकिस्तान की सेना और आईएसआई का हाथ रहा है।
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