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भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल: नरेंद्र मोदी, जनता के साथ से इन बुराइयों को भगा सकते हैं भारत से

By प्रेम कुमार ( वरिष्ठ पत्रकार)
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नई दिल्ली। भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल पूरे हो गये। 9 अगस्त 1942 ही वह दिन था जब महात्मा गांधी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन शुरू किया था। अगस्त के ही महीने में 5 साल बाद हिन्दुस्तान आजाद हुआ। आंदोलन का आगाज और आंदोलन को मुकाम दोनों ही अगस्त महीने में मिले। इस दौरान संघर्ष, त्याग, बलिदान और कुर्बानी के अनगिनत अध्याय लिखे गये।

'भारत छोड़ो आंदोलन' के 75 वर्ष, जानिए जड़ से लेकर अब तक की पूरी कहानी'भारत छोड़ो आंदोलन' के 75 वर्ष, जानिए जड़ से लेकर अब तक की पूरी कहानी

स्वतंत्रता के महान मकसद को पाने के लिए संकल्प और सिद्धि के बीच महज 5 साल का फासला बहुत छोटा लगता है लेकिन इस दौरान कुर्बानियों का वजन इतना ज्यादा रहा कि अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश होना पड़ा।

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2022 में आज़ादी के 75 साल होंगे

75 साल बाद भी आज हमारे पास 5 साल का समय है जब 2022 में आज़ादी के 75 साल होंगे। इस दौरान हम अपने लिए 'भारत छोड़ो' की तर्ज पर अपना मकसद तय कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंदगी, गरीबी, आतंकवाद, जातिवाद और संप्रदायवाद को 'भारत छोड़ो' का आदेश सुनाया है।

कम्युनिस्ट इस आंदोलन से दूर थे

भारत छोड़ो आंदोलन के पहले दिन ही महात्मा गांधी समेत कांग्रेस के सभी अग्रिम पंक्ति के नेता गिरफ्तार कर लिए गये थे। कम्युनिस्ट इस आंदोलन से दूर थे। फिर भी उस युग में, जबकि संचार और संवाद के साधन विकसित नहीं थे, देशभर में यह आंदोलन स्वत: स्फूर्त तरीके से तेज हो गया। सवाल ये है कि आज सरकार हमारी है, मकसद हमारा है और इस मकसद को पूरा करने वाले भी खुद हम हैं।

मोदी की ललकार गांधी की ललकार की तरह असरदार हो पाएगी?

क्या नरेन्द्र मोदी की ललकार 75 साल पहले महात्मा गांधी की ललकार की तरह असरदार हो पाएगी? दोनों ही गुजरात से रहे, दोनों को ही हिन्दुस्तान की असंख्य जनता का समर्थन रहा और दोनों ही दुनिया में मशहूर नेता रहे।

‘गंदगी भारत छोड़ो'

‘गंदगी भारत छोड़ो'

‘गंदगी भारत छोड़ो' को सच कर दिखाना है तो स्वच्छता को हमें अपना स्वभाव बनाना होगा। इस काम में बहुत कुर्बानी की आवश्यकता नहीं है, बस इच्छाशक्ति चाहिए। इसी तरह अगर ‘गरीबी छोड़ो' को सही कर दिखाना है, तो अमीरों को कुर्बानी के लिए आगे आना होगा। आतंकवाद भारत छोड़ो का नारा तभी सफल हो सकता है जब हम आतंकवादियों को पनाह देना बंद कर दें। बिना सहानुभूति और खाद-पानी के आतंकवाद का पौधा यूं ही मुरझा जाएगा। हां। जातिवाद और संप्रदायवाद को भारत छोड़ने के लिए तभी बाध्य किया जा सकता है जब राजनीतिक इच्छा शक्ति होगी। जनता हमेशा से इन विसंगतियों को दूर करने के लिए बेचैन रही है।

चौरी-चौरा कांड

चौरी-चौरा कांड

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान खुद महात्मा गांधी अहिंसा के अपने सिद्धांत पर लचीले दिखे थे। 1942 में गांधी किसी चौरी-चौरा कांड से भी घबराते नहीं दिखे। बल्कि स्वत: स्फूर्त आंदोलन का स्वभाव ही रेल पटरियां उखाड़ना, डाक विभाग और सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ और पुलिस पर हमला था। जगह-जगह पुलिस फ़ायरिंग और मौत की घटनाओं से गुस्सा भड़कता चला गया। हिन्दू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, अन्नामलाई विश्वविद्यालय आंदोलन का केन्द्र बन गये। छात्रों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

‘सबका साथ, सबका विकास'

‘सबका साथ, सबका विकास'

नरेन्द्र मोदी में भी प्रधानमंत्री बनने के बाद से बदलाव दिखता है। गुजरात दंगों से ऐसा लगता है कि उन्होंने सबक लिया है। ‘सबका साथ, सबका विकास' का नारा देते हुए वे गंदगी, गरीबी, आतंकवाद, जातिवाद और संप्रदायवाद के लिए भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए गम्भीर नज़र आते हैं। 1942 में आंदोलन किसी भी मोड़ पर सांप्रदायिक नहीं हुआ। हिन्दू-मुसलमान सबका लक्ष्य अंग्रेजों को मार-भगाना था। अगर इस बार भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नारे के साथ यह गुण जुड़ गया, तो अंग्रेजों की तरह देश से गंदगी, गरीबी, आतंकवाद, जातिवाद और संप्रदायवाद को भी भगाया जा सकता है। लेकिन, ये काम इतना आसान भी नहीं है।

क्या आज उतना एकजुट रह गया है?

क्या आज उतना एकजुट रह गया है?

75 साल पहले देश जितना एकजुट था, क्या आज उतना एकजुट रह गया है? क्या देशभक्ति पहले जैसी रह गयी है? नेतृत्व की राजनीतिक ईमानदारी हो या जनता का नेतृत्व पर विश्वास, दोनों की अहमियत आज भी पहले जैसी ही है। ऐसा नहीं है कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय कोई ‘विपक्ष' नहीं था। यह भूमिका कम्युनिस्ट निभा रहे थे। तब द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और वे नहीं चाहते थे कि मित्र राष्ट्र इंग्लैंड कमजोर हो। इसलिए वे भारत छोड़ो आंदोलन से दूर रहे।

उग्र, नरम और मध्यमार्गी

उग्र, नरम और मध्यमार्गी

वहीं सुभाष चंद्र बोस के रूप में आक्रामक सोच भी मौजूद थी, जो अंग्रेजों को मार भगाने के लिए जापान तक से वे जा मिले थे। आज भी जातिवाद या संप्रदायवाद से लड़ते समय उग्र, नरम और मध्यमार्गी हर तरह की सोच है। लेकिन, एक बात तय है कि सभी देश से बुराइयों को दूर करना चाहते हैं। यही भावना उम्मीद जगाती है कि बुराइयों को भारत छोड़ने के लिए एक बार फिर हम 75 साल बाद मजबूर कर देंगे।

English summary
On the occasion of the 75th anniversary of the Quit India Movement on Tuesday, PM Modi wants the nation to revive this Movement, here are the reasons.
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