Republic Day Parade: किंग्सवे से बना कर्तव्य पथ अब तैयार है पहली गणतंत्र दिवस परेड के लिए
ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी वाली पहचान को मिटाकर लोकतांत्रिक भारत के कर्तव्य पथ पर पहली बार निकलेगी गणतंत्र दिवस 2023 की परेड।
राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक सवा-तीन किलोमीटर लंबा मार्ग जो राजपथ कहलाता था, अब उसे कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाता है। इस नाम को NDMC ने मंजूरी दी थी। जिसके बाद 8 सितंबर 2022 को आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कर्तव्य पथ का उद्घाटन किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने उस अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा था, 'कर्तव्य पथ केवल ईंट-पत्थरों का रास्ता भर नहीं है। ये भारत के लोकतांत्रिक अतीत और सर्वकालिक आदर्शों का जीवंत मार्ग है।'
दरअसल, 102 साल पुराने इस मार्ग को आजादी से पहले किंग्सवे के नाम से जाना जाता था। फिर 1955 से हर साल 26 जनवरी यानि गणतंत्र दिवस के दिन भारतीय सेना की 9 से 12 रेजीमेंट और विभिन्न सैन्य उपकरणों जैसे टैंकों और मिसाइलों के साथ मार्च पास्ट का आयोजन शुरू हुआ। बाद में इस अवसर पर राज्यों और मंत्रालयों द्वारा भारत की सांस्कृतिक झलक झाकियों के माध्यम से प्रदर्शित करने का भी प्रचलन इसमें जोड़ दिया गया।
ब्रिटेन
के
सम्राट
के
नाम
पर
पड़ा
नाम
ब्रिटिश
साम्राज्यवाद
के
दौर
में
कलकत्ता
की
जगह
दिल्ली
को
भारत
की
राजधानी
बनाने
की
घोषणा
हुई।
इस
अवसर
पर
1911
में
किंग
जॉर्ज
पंचम
दिल्ली
आये
तो
उनके
स्वागत
में
अंग्रेज
अधिकारियों
ने
इस
सड़क
नाम
किंग्सवे
रखा
था।
दरअसल,
यह
नाम
सेंट
स्टीफेंस
कॉलेज
के
इतिहास
के
प्रोफेसर
पर्सिवल
स्पियर
ने
दिया
था।
किंग्सवे
का
अर्थ
किंग
यानि
राजा
और
वे
यानि
मार्ग
होता
है,
अर्थात
राजा
का
मार्ग।
मशहूर
आर्किटेक्ट
इडविन
लुटियंस
और
हरबर्ट
बेकर
ने
इस
मार्ग
को
बनवाया
था।
इन
दोनों
आर्किटेक्ट
ने
दिल्ली
की
इमारतों
एवं
सड़कों
के
निर्माण
का
काम
सरदार
नारायण
सिंह
को
दिया
था।
सरदार
नारायण
ने
सड़कों
के
नीचे
भारी
पत्थर,
रोड़ी
और
तारकोल
बिछाया
था।
इस
तकनीक
के
प्रयोग
से
सड़कें
टिकाऊ
रहती
है
और
ध्वनि
प्रदूषण
भी
नहीं
फैलाती।
आजादी
के
बाद
किंग्सवे
बना
राजपथ
1955
में
दिल्ली
के
चीफ
कमिश्नर
ने
दिल्ली
के
ब्रिटिश
नामों
वाले
मार्गों
एवं
स्थानों
के
नाम
बदलने
की
एक
विस्तृत
योजना
तैयार
की।
उन्होंने
एक
नोट
तैयार
किया
और
उसे
प्रधानमंत्री
जवाहरलाल
नेहरू
के
पास
भेज
दिया।
प्रधानमंत्री
नेहरू
ने
उस
नोट
को
ध्यानपूर्वक
पढ़ा
और
24
जुलाई
1955
को
केंद्रीय
गृह
सचिव
को
एक
पत्र
लिखा।
इस
पत्र
में
प्रधानमंत्री
लिखते
है,
"मुझे
यह
कहना
होगा
कि
मुख्य
कमिश्नर
ने
जो
नाम
दिए
है
उनका
वास्तविकता
से
कोई
सम्बन्ध
नहीं
है।
यह
काम
डॉ.
रघुवीर
का
किया
हुआ
है।"
हालांकि,
इसी
पत्र
में
प्रधानमंत्री
ने
दिल्ली
के
मात्र
पांच
मार्गों
एवं
स्थानों
के
नाम
बदलने
की
अनुमति
दी।
इसमें
ग्रेट
प्लेस
को
विजय
चौक,
किंग्स-वे
को
राजपथ,
क्वींस-वे
को
जनपथ,
प्रिंसेस
सर्किल
को
15
अगस्त
का
मैदान
और
अल्बुकर्क
रोड
को
तीस
जनवरी
मार्ग
शामिल
थे।
बाकी
अन्य
नामों
को
उन्होंने
यह
कहकर
नहीं
बदलने
दिया,
"मुझे
नहीं
लगता
कि
अन्य
सड़कों
एवं
स्थानों
के
नाम
बदलने
की
जरुरत
है।"
तीन
दिन
बाद,
27
जुलाई
को
केंद्रीय
मंत्रिमंडल
की
एक
बैठक
में
इन
प्रस्तावित
नामों
को
स्वीकृति
दे
दी
गयी।
किंग्सवे
से
राजपथ
मात्र
हिंदी
अनुवाद
भारत
सरकार
ने
1955
में
किंग्सवे
का
नाम
बदलकर
राजपथ
तो
कर
दिया
लेकिन
यह
केवल
किंग्सवे
का
हिंदी
अनुवाद
मात्र
ही
था।
इस
बात
की
स्पष्टता
13
जुलाई
1956
को
'द
टाइम्स
ऑफ़
इंडिया'
में
Changing
New
Delhi
नाम
से
प्रकाशित
एक
खबर
से
भी
होती
है।
इसमें
राजपथ
को
road
for
the
royalty
के
नाम
से
संबोधित
किया
गया
था।
कर्तव्य
पथ
का
नया
रूप
बीते
महीनों
में
कर्तव्य
पथ
का
पुनर्विकास
किया
गया
है।
इसमें
आस-पास
की
भूमि
का
भी
नवीनीकरण
शामिल
है।
अब
वहां
पार्कों
व
जल
निकास
के
लिए
आधुनिक
सिंचाई
प्रणाली
सहित
वर्षा
जल
संचयन
को
भी
ध्यान
में
रखा
गया
है।
हरियाली
के
लिए
3.9
लाख
वर्ग
मीटर
क्षेत्र
में
4,087
पेड़ों
को
लगाया
गया
हैं।
इसके
अलावा
एक
सीवेज
रिसाइक्लिंग
प्लांट,
पीने
के
पानी
की
सुविधा
और
सार्वजनिक
शौचालय
भी
उपलब्ध
हैं।
अब
यहां
1125
कारों
और
40
बसों
को
भी
पार्क
करने
की
सुविधा
है।
आने
वाले
पर्यटकों
की
सुविधा
के
लिए
यहां
चार
अंडरपास
बनाये
गए
हैं।
114
आधुनिक
इंडिकेटर्स
सहित
900
लाइटें
लगाई
गयी
हैं।
इसके
अतिरिक्त
पथ
के
किनारे
19
एकड़
में
फैली
नहर
को
फिर
से
विकसित
कर
बोटिंग
की
सुविधा
शुरू
की
गयी
है।