बीफ पर बहस करने से पहले पढ़ें इससे जुड़े वैज्ञानिक तथ्य
बेंगलुरु। गोमांस के कारण बीफ का मुद्दा देश में गर्माया हुआ है। राजनेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं और उनके गुर्गे आम जनता के बीच एक दूसरे के प्रति जहर घोलने का काम कर रहे हैं। और वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं कि बीफ के मानव शरीर या पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ते हैं। इन सबके बीच संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बीफ नहीं खाने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है।
आप चौंक जरूर गये होंगे, लेकिन यह सच है। चलिये पर्यावरण से जोड़ कर बीफ से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों से हम आपको रू-ब-रू करवाते हैं। ये तथ्य यूएनईपी और येल यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के हवाले से हैं।
- दिल्ली से आगरा तक कार से जाते हैं, तब जितना कार्बन एमिशन होता है, उतना एक किलोग्राम बीफ से होता है।
गाय या भैंस का मीट पर्यावरण के लिये नुकसानदायक होता है। मीट की वजह से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित होती हैं।
और भी हैं तथ्य, पढ़ सकते हैं स्लाइडर में-

भारत में कितना मीट खाते हैं
भारत में एक व्यक्ति औसतन 12 ग्राम मीट प्रतिदिन खाता है।

दुनिया कितना मीट खाती है
विश्व में एक व्यक्ति औसतन 115 ग्राम मीट प्रतिदिन खाता है।

अमेरिका सबसे आगे
अमेरिका में एक व्यक्ति औसतन 322 ग्राम मीट प्रतिदिन खाता है।

चीन दूसरे नंबर पर
चीन में एक व्यक्ति औसतन 160 ग्राम मीट प्रतिदिन खाता है।

1 ग्राम बीफ
1 ग्राम बीफ के कीमे से 3 किग्रा कार्बन उत्सर्जित होता है।

भारत का पशुधन
पशुधन के रूप में भारत में 51.20 करोड़ पशु हैं, जिनमें 11.1 करोड़ गाय-भैंस हैं।

2012 की रिपोर्ट
भारत में करीब 59 लाख टन मीट खाया जाता है, जिसका 5 प्रतिशत बीफ होता है।

2009 की रिपोर्ट
दुनिया में पशुओं को काटकर 27.80 करोड़ टन मीट निकलता है।

पशु कटते ज्यादा खाये कम जाते हैं
भारत में दुनिया का 17% मीट काटा जाता है, जबकि खाया मात्र 2% ही जाता है।

क्या होगा 2050 में
2050 तक दुनिया में मीट की खपत 46.0 करोड़ टन हो जायेगी।

पेरिस ने उठाया कदम
पेरिस पहला ऐसा देश है जिसने एक दिन "नो मीट डे" मनाने का फैसला किया।
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