
Dr BR Ambedkar Death Anniversary: आखिर क्यों अंग्रेजों के भारत छोड़ने से डरे हुए थे अंबेडकर?

Dr BR Ambedkar Death Anniversary Mahaparinirvan Divas: डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर की 06 दिसंबर को पुण्यतिथि है। देशभर में अंबेडकर की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस भी मनाया जाता है। भारतीय संविधान के जनक बीआर अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महाराष्ट्र की महार जाति के एक हिंदू परिवार में हुआ था। बाबासाहेब के नाम से मशहूर अंबेडकर ने देश में दलितों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए लड़ाई लड़ी। अंबेडकर प्रारूपण समिति के उन सात सदस्यों में भी थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत के संविधान का प्रारूप तैयार किया था। कहा जाता है कि अंबेडकर अंग्रेजों के अचानक भारत छोड़ने की बात से डरे हुए थे। इसलिए उन्होंने भारत छोड़ों आंदोलन में हिस्सा भी नहीं लिया था।
ये बात 8 अगस्त 1942 की है, जब बंबई (वर्तमान में मुंबई) गोवालिया टैंक मैदान पर हजारों की भीड़ के बीच महात्मा गांधी ने देश को आजाद कराने की कसम खाई थी और 'करो या मरो का नारा' दिया था। पूरा देश गांधी जी के इस फैसले के साथ था। लेकिन वहीं दूसरी तरफ भीमराव अंबेडकर इस आंदोलन के समर्थन में नहीं थे। उस वक्त अंबेडकर वायसराय काउंसिल के सदस्य थे। अंबेडकर की जिवनी पर मशहूर फ्रेंच राजनीति विज्ञानी क्रिस्तोफ जाफ्रलो ने एक किताब लिखी है।
इस किताब में बताया गया है कि आखिर अचानक अंग्रेजों के भारत छोड़ने से अंबेडकर क्यों डरे हुए थे। असल में भारत में जिस वक्त भारत छोड़ो आंदोलन जोरों-शोरों से चल रहा था ठीक उसी वक्त दुनिया भर में दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था। दुनिया ने उस वक्त जापानी और जर्मनी की क्रूरता देखी थी। अंबेडकर इस बात को जानते थे कि जापानी और नाजियों की फासीवाद सोच अंग्रेजों की सोच से कहीं ज्यादा खतरनाक थी। इसलिए इन्ही सब वजहों से अंबेडकर चाहते थे कि फिलहाल अंग्रेजों के साथ मिलकर रहने और काम करने में भी भारत की भलाई है।
अंबेडकर अंग्रेजों के भारत से एकदम पूरी तरह से अचानक आजादी नहीं चाहते थे। असल में भारत छोड़ो आंदोलन वक्त अंबेडकर के पास देश के श्रम विभाग की कमान थी। वायसराय काउंसिल का मेंबर होते हुए अंबेडकर ने निचले और दलित तबके के लिए कई कानून बनाए। उन्होंने ब्रिटिश आर्मी में दलितों की भर्ती को भी बहाल करवाया। उनका मत था कि दलितों और निचलों का उत्थान अंग्रेजी शासन में अधिक किया जा सकता है। वे देश की आजादी के समर्थन में थे लेकिन इसके साथ ही वो चाहते थे कि अंग्रेजों से भारत को धीरे-धीरे आजादी मिले ताकि दलित समाज थोड़ा सशक्त हो जाए।