Indian Railway: इस रेलवे स्टेशन का नहीं है कोई नाम, फिर कैसे टिकट कटवाते हैं यात्री?
गजब: इस ट्रेन में सफर का नहीं लगता कोई किराया, 73 सालों से यात्री FREE में कर रहे हैं सफर
नई दिल्ली। भारतीय रेल को देश की लाइफ लाइन कहा जाता है। 7500 से ज्यादा रेलवे स्टेशनों के बीच यहां ट्रेनें चलती हैं और रोजाना लाखों की संख्या में लोग सफऱ करते हैं। आप जब भी टिकट लेते हैं तो बॉर्डिंग और डेस्टिनेशन रेलवे स्टेशन के नाम होते हैं। कुछ नाम छोटे तो कुछ नाम बहुत बड़े होते हैं, लेकिन आज हम आपको ऐसे रेलवे स्टेशन के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका कोई नाम ही नहीं है। जी हां देश में ऐसे दो रेलवे स्टेशन हैं, जो बिना नाम के हैं। आप सोच रहे होंगे कि अगर रेलवे स्टेशन के नाम नहीं है तो लोग टिकट कैसे लेते हैं?
बिना नाम के स्टेशन
भारत के पश्चिम बंगाल और झारखंड में ऐसे दो रेलवे स्टेशन हैं, जिनका कोई नाम नहीं है। रेलवे स्टेशन पर लगे साइन बोर्ड पर कोई नाम नहीं लिखा है। पश्चिम बंगाल के वर्धमान के बांकुरा-मैसग्राम रेलखंड का एक स्टेशन और दूसरा झारखंड के रांची-टोरी रेलखंड में स्थित है। बर्धमान से 35 किमी दूर बांकुरा-मैसग्राम रेल लाइन पर साल 2008 में एक रेलवे स्टेशन बनाया गया। इस रेलवे स्टेशन के नाम पर शुरू से ही विवाद रहा। पहले इसका नाम रैनागढ़ रखा गया, लेकिन वहां के गांव के लोगों को ये नाम पसंद नहीं आया उन्होंने इसकी शिकायत रेलवे बोर्ड से की, जिसके बाद से इस रेलवे स्टेशन के नामकरण का काम अटका हुआ है और आज तक ये रेलवे स्टेशन बिना नाम का है।
बिना साइन बोर्ड वाला रेलवे स्टेशन
वहीं झारखंड के टोरी की ओर जाने वाली रेलवे लाइन पर लोहरादगा से आगे एक स्टेशन है, जिसे 2011 में बनाया गया। इसका नाम बड़कीचांपी रखा गया,लेकिन गांववालों ने इस नाम पर आपत्ति दर्ज की। गांव वालों का कहना है कि इसका नाम कमले रखा जाए। गांव और रेलवे बोर्ड के विवाद के कारण आज तक इस स्टेशन का नाम नहीं रखा गया है।
कैसे सफऱ करते हैं लोग
ऐसे में सवाल उठता है कि लोग सफर कैसे करते हैं। दरअसल रेलवे के दस्तावेजों में इसका नाम बड़कीचांपी दर्ज है। ऐसे में यहां से उतरने वाले लोगों को इसी नाम का टिकट दिया जाता है, लेकिन इस रेलवे स्टेशन पर लगे साइन बोर्ड पर कोई नाम दर्ज नहीं है। यहां स्टेशन पर लगे साइनबोर्ड खाली पड़े हैं। रेलवे के साथ ऐसी कई दिलचस्प कहानियां जुड़ी हैं। कहीं रेलवे स्टेशन का नाम नहीं है तो कहीं लोगों को बिना टिकट यात्रा करने की इजाजत दी जाती है।
फ्री में सफऱ
भाखड़ा-नागल बांध देखने वाले टूरिस्टों के लिए चलाई जाने वाले इस ट्रेन में लोग सालों से फ्री में सफऱ कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश और पंजाब की सीमा के बीच इस ट्रेन को चलाया जाता है। इस ट्रेन में सफऱ करने के लिए लोगों को टिकट की जरूरत नहीं पड़ती है। भारत के अलावा बाहर से भी जो लोग भाखड़ा नागल बांध देखने आते हैं वो इस ट्रेन से फ्री में सफर कर सकते हैं। इस ट्रेन के कोच लकड़ी से बने हैं। इस ट्रेन में कोई टीटीई नहीं होता। इसे साल 1949 में शुरू किया गया था। शुरुआत में इस ट्रेन में 10 कोच लगे थे, लेकिन अब इसे कम कर 3 कर दिया गया है। ट्रेन डीजल से चलती है, जिसका हर दिन का खर्च 50 लीटर का है। इस का खर्च भागड़ा नागलबांध प्रबंधन उठाती है। ट्रेन में मौजूदा तीन कोच में से एक कोच महिलाओं और एक पर्यटकों के लिए रिजर्व है।
क्यों मिलता है मुफ्त सफर का मौका
रिपोर्ट
के
मुताबिक
भाखड़ा
नांगल
बांध
के
निर्माण
के
दौरान
यहां
आने-जाने
के
लिए
एक
ट्रेन
की
जरूरत
को
महसूस
किया
गया,
जिसके
बाद
इस
ट्रेन
की
शुरुआत
हुई।
शुरुआत
में
इसे
स्टीम
इंजन
के
साथ
चलाया
जाता
था,
बाद
में
1953
में
अमेरिका
से
आयात
किए
इंजन
की
मदद
से
इस
ट्रेन
को
डीजल
इंजन
की
मदद
से
चलाया
जाने
लगा।
इस
ट्रेन
में
मुफ्त
में
यात्रा
इसलिए
कराई
जाती
है
ताकि
टूरिस्ट
भाखड़ा
नागल
बांध
को
देख
सकें।
इस
ट्रेन
का
पूरा
मैनेंजमेंट
भाखड़ा
ब्यास
मैनेजमेंट
बोर्ड
करता
है।
इस
ट्रेन
से
हर
दिन
300
लोग
सफर
करते
हैं।
काम
की
खबर:
26
मई
से
बदलेगा
नियम,
बिना
पैन-आधार
के
ना
निकाल-ना
जमा
कर
पाएंगे
इससे
अधिक
कैश