मंकीपॉक्स वायरस से क्या आपको परेशान होने की ज़रूरत है
मंकीपॉक्स, एक ऐसी बीमारी जो दशकों से अफ्रीकी लोगों में आम है लेकिन अब वो दुनिया के अन्य देशों में भी फैल रही है. खासकर अमेरिका, कनाडा और कई यूरोपीय देशों में.
महामारी से अब तक दुनिया पूरी तरह उबर भी नहीं सकी है कि एक नए वायरस ने दस्तक दे दी है.
मंकीपॉक्स, एक ऐसी बीमारी जो दशकों से अफ्रीकी लोगों में आम है लेकिन अब वो दुनिया के अन्य देशों में भी फैल रही है. खासकर अमेरिका, कनाडा और कई यूरोपीय देशों में इसके मामले सामने आ रहे हैं. 11 देशों में अब तक 80 मामले पाए जा चुके हैं.
हालांकि इस बीमारी का प्रकोप अभी बहुत व्यापक तो नहीं है लेकिन कुछ देशों में आए नए केस ने लोगो में चिंता ज़रूर पैदा कर दिया है.
स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि एक बार फिर वायरस के फैलने का कारण क्या है इसे लेकर अधिक जानकारी नहीं है, उनका कहना है कि फिलहाल आम जनता के लिए घबराने की कोई बात नहीं है.
ब्रिटेन के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यालय में राष्ट्रीय संक्रमण सेवा के उप निदेशक निक फिन ने कहा, "इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि मंकीपॉक्स लोगों के बीच आसानी से नहीं फैलता है और आम जनता के लिए जोखिम बहुत कम है."
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय में वैश्विक स्वास्थ्य मामले पर रिसर्च करने वाले सीनियर रिसर्चर माइकल हेड का कहना है कि वर्तमान समय ये वायरस का संक्रमण क्यों फैल रहा है. इसके बारे में जानकारी अभी कम है, लेकिन उन्हें नहीं लगता कि लोगों को संक्रमण के स्तर से उस हद तक डरने की ज़रूरत है जैसे कि कोरोनोवायरस महामारी देखा गया था.
साइंस मीडिया सेंटर में बात करते हुए उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हमारे लिए हर आउटब्रेक में कुछ मामले ही देखने को मिलेंगे, निश्चित रूप से ये संक्रमण कोविड जैसा नहीं होगा. "
जब कोरोनवायरस का पहले केस सामने आया था तो इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था, मंकीपॉक्स एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में पहले से काफ़ी कुछ पता है. इसके लिए टीके हैं, उपचार है और पिछली बार जब ये बीमारी फैली थी तो उसका अनुभव भी हैं.
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यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अब एपिडेमियोलॉजिकल मॉनिटरिंग और सर्विलांस सिस्टम और भी अधिक आधुनिक हो गए हैं और अब वायरस का पता लगाना और पहचान करना पहले से कई ज़्यादा आसान हो गया है. जिसका अर्थ है कि आने वाले समय में और भी वायरस और स्ट्रेन का पता चलता रहेगा.
हालांकि अथॉरिटी का कहना है कि भले ही ये वायरस इतना ख़तरनाक ना दिख रहा हो लेकिन इसे रोकने के व्यापक प्रयासों में कमी नहीं होनी चाहिए क्योंकि वायरस म्यूटेट होते रहते हैं और इनके नए स्ट्रेन सामने आते रहते हैं.
जाना-पहचाना वायरस
जब दुनिया में कोविड-19 के शुरूआती मामले सामने आने लगे, तो एक बड़ा सवाल यह था कि ये बीमारी कहां से और कैसे आई.
हालांकि SARS-Cov-2 की पहचान उम्मीद से कम समय में ही हो गई थी कई थ्योरी बताती हैं कि ये जानवरों से इंसानों में आया, फिर भी यह बहस का विषय है कि आखिर वो कौन सा जानवर था तो जिससे ये इंसानों में आया.
मंकीपॉक्स से अफ्रीका के लोग लंबे वक्त से पीड़ित रहे हैं. साल 1958 में पहली बार इसकी पहचान बंदरों में की गई जिस पर इसका नाम मंकीपॉक्स पड़ा.
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हालांकि एक अन्य अध्ययन बताता है कि बंदरों से पहले ये बीमारी कुतरने वाले जानवरों में पाया जाता रहा है.
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में सेलुलर माइक्रोबायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर साइमन क्लार्क ने साइंस मीडिया सेंटर को बताया, "मंकीपॉक्स को पहली बार 1950 के दशक में बंदरों पाया गया था, लेकिन 1970 तक यह इंसानों में फैल गया था. यह अन्य जंगली जानवरों, जैसे कुछ कुतरने वाले जानवरों में भी पाया जाता है."
शोधकर्ताओं ने इस वायरस के दो वेरिएंट की पहचान की है, एक मध्य अफ्रीका का वेरिएंट जो अधिक लक्षणों वाली बीमारी का कारण बनता है, और दूसरा पश्चिम अफ्रीका में पाए जाने वाला वेरिएंट जो मामूली लक्षणों वाले संक्रमण का कारण बनता है.
इसकी वैक्सीन और उपचार उपलब्ध है
दशकों से एक समुदाय को प्रभावित करने वाला ये वायरस जाना-पहचाना हुआ है और इसके टीके और उपचार उपलब्ध हैं.
चूंकि मंकीपॉक्स वायरस चेचक का कारण बनने वाले वायरस से काफ़ी मिलता-जुलता है इसलिए चेचक के टीके को भी दोनों रोगों के लिए प्रभावी माना गया है.
यूनाइटेड स्टेट्स सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने अपनी वेबसाइट पर बताया कि मंकीपॉक्स के संक्रमण के लिए वर्तमान में कोई विशेष उपचार उपलब्ध नहीं है, लेकिन दवा के साथ इसके फैलने को नियंत्रित किया जा सकता है.
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बाजार में पहले से दवाएं मौजूद हैं जो पहले से मंकीपॉक्स में इस्तेमाल के लिए अप्रूव हैं और बीमारी के खिलाफ प्रभावी रही है. जैसे-सिडोफोविर, एसटी -246 और वैक्सीनिया इम्युनोग्लोबुलिन का इस्तेमाल मंकीपॉक्स के संक्रमण में किया जाता है.
मंकीपॉक्स की रोकथाम और उपचार के लिए एक बहु-राष्ट्रीय स्तर पर मंजूरी पा चुकी वैक्सीन JYNNEOSTM भी उपलब्ध है जिसे इम्वाम्यून या इम्वेनेक्स के नाम से भी जाना जाता है. इस वैक्सीन को डेनिश दवा कंपनी बवेरियन नॉर्डिक बनाती है.
अफ्रीका में इसके इस्तेमाल के पिछले आंकड़े बताते हैं कि यह मंकीपॉक्स को रोकने में 85% प्रभावी है.
इसके अलावा एक चेचक का टीका है जिसका नाम ACAM2000 है. स्वास्थ्य अधिकारी मानते है कि ये वैक्सीन मंकीपॉक्स के खिलाफ भी प्रभावी होती है.
इस वैक्सीन का इस्तेमाल साल 2003 में अमेरिका में इस वायरस के फैलने के समय किया गया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुका है कि चेचक के टीके लगवाने वाले लोग काफ़ी हद तक मंकीपॉक्स वायरस से भी सुरक्षित रहते हैं. हालांकि कई देशों में इस टीकाकरण को लगभग 40 साल पहले ही बंद कर दिया गया था क्योंकि इन देशों से चेचक की बीमारी ही खत्म हो चुकी थी.
अधिकांश देशों में टीके वर्तमान में केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए हैं, जिनपर इस बीमारी का जोखिम में बड़ा माना जा रहा है.
ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी बताती है कि मंकीपॉक्स टीके का उपयोग संक्रमित होने से पहले और बाद में दोनों में स्थिति में किया जा सकता है.
संक्रमण बहुत ज़्यादा नहीं
ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी का कहना है कि अन्य संक्रामक रोगों के उलट मंकीपॉक्स लोगों के बीच आसानी से नहीं फैलता है.
पिछली बार जब इस बीमारी का संक्रमण फैला था तो एक संक्रमित व्यक्ति से वायरस का संक्रमण औसतन जीरो से एक व्यक्ति के बीच था. इसलिए संक्रमण से फैलने का स्तर इस वायरस में बहुत कम रहा है.
अमेरिकी आर्मी मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर इंफेक्शियस डिजीज के जे हूपर ने बीमारी पर एक रिपोर्ट को लेकर बात करने हुए एनपीआर को बताया, "ज्यादातर मामलों में, एक बीमार व्यक्ति किसी को भी संक्रमित नहीं करता. "
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के डॉ. हेड बताते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि संक्रमित व्यक्ति से संक्रमण फैलने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क ज़रूरी है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सामान्य आबादी में मंकीपॉक्स के मामले में मृत्यु दर 0 से 11% तक है और छोटे बच्चों में यह अधिक है.
मंकीपॉक्स तब फैल सकता है जब कोई व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति या संक्रमित जानवर के निकट संपर्क में आता है.
इससे पहले भी कई बार फैल चुकी है बीमारी
मंकीपॉक्स का इंसानों में पहला मामला कॉन्गो गणराज्य में 1970 में दर्ज किया गया था, और इसके बाद दशकों से मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के कई देशों में संक्रमण समय -समय पर फैलता रहा है.
हालांकि अफ्रीका के बाहर मंकीपॉक्स के मामले दुर्लभ हैं लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका, ब्रिटेन , इसराइल और सिंगापुर में इनकी केस सामने आए हैं.
ब्रिटेन में वर्तमान समय में इस बिमारी के मामले सामने आए हैं लेकिन इससे पहले भी ब्रिटेन में इसके मामले साल 2018, 2019 और 2021 में रिपोर्ट किए गए थे.
अफ्रीका के बाहर अब से पहलरे जितने भी मामले सामने आए वे बेहद कम थे. साल 203 में अमेरिका में इसके 47 ममाले सामने आए थे.
पिछले अनुभवों ने स्वास्थ्य अधिकारियों को इस वायरस की जानकरी तो दी ही है साथ ही इसे रोका कैसे जाए ये भी सिखाया है.
हालांकि कई देशों की स्वास्थ्य एजेंसियों ने कहा है कि वो इस वायरस के सामने आ रहे मामलों पर करीब से नज़र बना हुए हैं. ठीक ठीक डेटा मिलने तब नहीं कहा जा सकता कि इस वायरस का प्रकोप पिछली बार जितना हल्का रहेगा या नहीं.
इससे पहले कभी अफ़्रीका के बाहर अन्य देशों में एख के बाद एक इतने मामले मंकीपॉक्स के नहीं देखे गए. इस बात का भी कोई ठीक कनेक्शन नहीं है कि अफ्रीका से किसी संक्रमित व्यक्ति ने प्रभावित देशों में यात्रा की हो.
(ये कहानी बीबीसी की स्पैनिश सेवा से ली गई है)
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