गेहूं की ये जंगली किस्म बचा सकती है दुनिया को?
गेहूं की अत्याधुनिक किस्में जलवायु परिवर्तन का सामना करने में अक्षम हो रही हैं और इससे उत्पादन भी गिर रहा है. सदियों पुरानी गेहूं की किस्मों में आज की चुनौतियों के रहस्य पता चल रहे हैं.
क्या बदलते पर्यावरण में दुनिया की भूख मिटाने का राज़ 300 पुराने म्यूजियम के संग्रह में छिपा है?
नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के आर्काइव में मौजूद गेहूं और इससे जुड़ी किस्मों के 12,000 नमूनों की पड़ताल करने वाले वैज्ञानिकों को इस सवाल का जवाब पाने की उम्मीद बढ़ गई है.
सबसे संभावित नमूनों की जीन सिक्वेंसिंग की जा रही है ताकि गेहूं की कठोर किस्मों के अनुवांशिक रहस्यों का पता लगाया जा सके.
जलवायु परिवर्तन, कीट और बीमारियों की वजह से इस फ़सल पर दबाव बढ़ रहा है.
संग्रहालय की कार्डबोर्ड फ़ाइलों में गेहूं की पुरानी किस्में बहुत साफ़ तरीके से करीने से सज़ा कर रखी गई हैं.
हरेक की बाली के साथ सूखी पत्तियां, तना या अनाज भी हैं या तीनों हैं. इन्हें सदियों पहले संरक्षित किया गया था.
बहुत ध्यानपूर्वक इनकी लेबिलिंग की गई है. अधिकांश लेबल तांबे की प्लेट पर बहुत सुंदर तरीक़े से उकेरा गया है. ये कहां से और कब संग्रहित किए गए, उसका विस्तारपूर्वक ज़िक्र है. इसमें सारी महत्वपूर्ण जानकारी मौजूद है.
लैरिस्सा वेल्टन कहती हैं, “इसके संग्रह 1700 ईस्वी पुराने हैं. इसमें वो नमूना भी है जिसे कैप्टन कुक की पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान लिया गया था.”
वो आर्काइव को डिज़िटल स्वरूप में लाने वाली टीम की हिस्सा हैं, जिससे इसे ऑनलाइन भी देखा जा सके.
जेम्स कुक का नमूना, गेहूं की एक जंगली किस्म का है. आज उगाई जाने वाली किस्म से बिल्कुल अलग यह बहुत पतला और घास जैसा है. लेकिन यही अंतर है जिसे लेकर यह टीम उत्सुक है.
वो कहती हैं, “हमारे पास ऐसे नमूने हैं जो तमाम कृषि तकनीकों के इजाद होने से पहले के हैं. इसलिए इनसे हमें पता चल सकता है कि जब कृत्रिम उर्वरक नहीं थे या अपने आप जंगली रूप में कैसे गेहूं की ये किस्म उगती है.”
गेहूं क्यों इतना अहम है?
गेहूं दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण फसल है. इसे कई पकवानों में इस्तेमाल किया जाता है, ब्रेड से लेकर पास्ता तक में, नाश्ते से लेकर केक तक में और हमारे भोजन का ये ज़रूरी हिस्सा है.
यूक्रेन में गेहूं का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है. जबसे यहां युद्ध शुरू हुआ है, इसके कारण गेहूं की वैश्विक सप्लाई ख़तरे में पड़ गई है.
लेकिन समस्या सिर्फ यही नहीं है. जलवायु परिवर्तन और खराब मौसम वो भी असर डाल रहा है.
वैज्ञानिकों ने गणना की है कि वैश्विक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी होने से पूरी दुनिया की गेहूं पैदावार में 6.4 फ़ीसदी तक की कमी आ सकती है.
कीट और बीमारियां भी एक बड़ी चिंता बनकर उभरे हैं, जिनकी वजह से हर साल अनुमानित पैदावार में 20 फ़ीसदी तक की कमी आ सकती है.
गेहूं की आधुनिक फ़सल ख़तरे में है. 1950 और 1960 के दशक में ग्रीन रिवोल्यूशन ने किसानों को ऐसी किस्में उगाने के लिए प्रेरित किया जो सबसे अधिक पैदावार कर सकती हैं.
लेकिन सबसे बड़ी फसल को पैदा करने की तलाश का मतलब है कि अन्य किस्में दरकिनार हो जाती हैं, वो भी फसलें जिनमें बेहद ख़राब मौसम में भी उगने की क्षमता होती है. और इसकी वजह से गेहूं की विविधता ख़त्म हो रही है.
नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में अनुवांशिक मामलों के वैज्ञानिक डॉ. मैथ्यू क्लार्क कहते हैं, “हम देखना चाहते हैं कि वो कौन सी चीजें हैं, जिन्हें हमने खो दिया है, जिन्हें फिर से आधुनिक किस्मों में शामिल किया जा सकता है.”
और यह बहुत महत्वपूर्ण है: जैसे जैसे दुनिया की आबादी बढ़ रही है, हमें अधिक गेहूं की ज़रूरत होगी- अनुमान है कि 2050 तक 60 % प्रतिशत अधिक पैदावार चाहिए होगी.
इसलिए वैज्ञानिक ऐसी किस्मों की खोज में हैं जो ऐसी जगहों पर भी उग सकें जहां अभी उगाया नहीं जा सकता. साथ ही ऐसी फसलों की भी तालाश है जो बदलते वातावरण में भी उग सकें.
डॉ. क्लार्क कहते हैं, “उदाहरण के लिए हमें ऐसी किस्मों की खोज है जो बहुत गर्मी या सूखे मौसम में भी ज़िंदा रह सकती थीं ताकि ये विकासशील देशों की फूड सप्लाई की बढ़ती मांग को पूरा कर सकें.”
वो बताते हैं कि यह पारंपरिक फसल उगाने के तरीकों, जीन में सुधार या जीन एडिटिंग (जीन में फेरबदल) के द्वारा किया जा सकता है. जीन एडिटिंग एक ऐसी तकनीक है कि जिसमें किसी जीन को बहुत सटीक तौर पर जोड़ा, हटाया या बदला जा सकता है.
नार्विच में जॉन इनेस सेंटर के वैज्ञानिक भी गेहूं की पुराने नमूनों की तलाश कर रहे हैं.
उनका आर्काइव वाटकिन्स लैंड्रेस कलेक्शन 100 साल पुराना है, जिसमें दुनिया भर से लाई गई किस्में हैं.
इन्हें 4 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा गया है, ताकि इनके बीज में उगने की क्षमता बनी रहे, इसका मतलब है कि इन्हें अभी भी बोया और उगाया जा सकता है.
डॉ. साइमन ग्रिफ़िथ के अनुसार, “हम नए और उपयोगी जीन विविधता की तलाश करना चाहते हैं. ताकि बीमारी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता, विपरीत परिस्थियों को सहने की क्षमता, अधिक पैदावार, कम उर्वरक खपत वाली किस्म बना सकें.”
जॉन इनेस में कार्य करने वाली टीम कुछ पुरानी किस्मों का आधुनिक किस्मों के साथ क्रास ब्रीडिंग करा रही है और इसमें उन्हें कुछ सफलता मिली भी है.
डॉ. ग्रिफ़िथ के अनुसार, “गेहूं की एक बहुत ख़ास बीमारी है, जो पूरी दुनिया की ख़ास समस्या है, जिसे येलो रस्ट या पीला रतुआ कहा जाता है. इसे नियंत्रित करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है.”
उनके मुताबिक, “गेहूं की इन पुरानी प्रजातियों में इस बीमारी के ख़िलाफ़ ख़ास प्रतिरोधक क्षमता होती है, जो इस बीमारी से इस फसल को बचाती है. गेहूं उत्पादन के लिए सबसे बड़े ख़तरे के ख़िलाफ़, ब्रीडर ऐसी ही किस्म विकसित करने में लगे हुए हैं.”
वैज्ञानिकों की टीम इसके साथ ही गेहूं की अधिक पौष्टिक किस्मों की भी खोज में हैं.
वो कहते हैं, “गेहूं में और क्या है? हम जानते हैं कि हम गेहूं में फ़ाइबर और मिनरल्स की मात्रा बढ़ा सकते हैं.”
“गेहूं में इतनी विविधता है कि अभी तक आधुनिक गेहूं उत्पादकों ने इसका पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया है और हम समझते हैं कि हम उनके लिए ये कर सकते हैं.”
जो गेहूं हम पैदा करते हैं, उसमें बदलाव आना ही ही है. वैज्ञानिकों को उममीद है कि अपने अतीत में झांकना और गुम हो चुकीं किस्मों को खोजना आगे बढ़ने का सबसे बढ़िया रास्ता है.
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