चार महीने बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इन 29 सीटों पर होगी जोर-आजमाइश
बिहार विधान परिषद की 75 में से अभी 29 सीटें रिक्त हैं। इतनी अधिक संख्या में पहली बार परिषद की सीटें खाली हुई हैं। शिक्षक और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र की चार-चार सीटों पर अप्रैल में चुनाव होना था लेकिन कोरोना संकट के कारण यह टल गया था। इस बीच विधानसभा कोटे की 9 सीटें भी खाली हुई हैं। इस महीने में विधानपरिषद चुनाव कराये जाने की संभावना है। इस चुनाव के जरिये राजनीतिक दल चार महीने बाद होने वाले असेम्बली इलेक्शन के लिए अपने -अपने समीकरण साधेंगे। इस चुनाव से यह भी संकेत मिलेगा कि विधानसभा चुनाव के समय नीतीश कुमार अपने सहयोगी दलों के साथ कैसा रिश्ता रखने वाले हैं।
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कार्यकाल समाप्त होने के बाद 29 सीटें खाली
7 मई को विधानसभा कोटे की 9 सीटें और 8 सीटें शिक्षक-स्नातक निर्वाचन क्षेत्र की खाली हुई हैं। 23 मई को राज्यपाल के जरिये मनोनीत होने वाली 10 सीटें भी रिक्त हुई हैं। 2 सीटें पहले से रिक्त हैं। यानी मनोनयन वाली कुल 12 सीटें रिक्त हैं। शिक्षक और स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में सिर्फ शिक्षक और स्नातक मतदाता ही भाग लेते हैं। इसलिए इस चुनाव में राजनीति एक बंधे बंधाये पैटर्न पर होती है। राज्यपाल के मनोनयन वाली सीटों पर राज्य सरकार की मर्जी प्रभावी होती है। लेकिन विधानसभा कोटे की 9 सीटों पर चूंकि विधायक वोट डालते हैं इसलिए इस चुनाव में राजनीतिक दावपेंच की गुंजाइश रहती है। अगर राजनीतिक दल विधानसभा में संख्याबल के आधार पर रिक्त सीटें बांट लें तो सब कुछ सामान्य तरीके से निबट जाता है। लेकिन अगर सीटों से अधिक उम्मीदवार खड़े हों और मतदान की नौबत आये तो क्रॉस वोटिंग का खतरा रहता है।
9 सीटों पर विधायक डालेंगे वोट
बिहार विधानसभा कोटे की रिक्त होने वाली परिषद 9 सीटों पर चुनाव को लेकर सबसे अधिक गहमागहमी है। एक सीट जीतने के लिए 27 वोट की जरूरत है। विधायकों की संख्या के आधार पर जदयू और राजद को 3-3, भाजपा को 2 और कांग्रेस को एक सीट मिल सकती है। अगर किसी दल ने तय संख्या से अधिक उम्मीदवार खड़े किये तो चुनाव की नौबत आ जाएगी। हर दल में वैसे लोगों की लंबी कतार है जो विधान पार्षद बनना चाहते हैं। इस चुनाव में सोशल इंजीनीयरिंग का पूरा असर रहेगा। विधानसभा चुनाव में लाभ लेने के लिए राजनीतिक दल जाति और समुदाय पर खास ध्यान ऱखेंगे। विधानपरिषद में सबसे अधिक जदयू की छह सीटें रिक्त हुई हैं। लेकिन वह केवल तीन उम्मीदवारों को ही उच्च सदन में भेज सकता है। जदयू की राजनीति अभी अतिपिछड़े और अल्पसंख्यकों पर फोकस है। इसलिए माना जा रहा है कि वह दोनों वर्गों को एक एक सीट दे सकता है। एक सीट सवर्णों को रिझाने के लिए दी जा सकती है। इस चुनाव में राजद को तीन सीटों का फायदा मिलेगा। वह भी अपने वोट बैंक को साधने के ख्याल से उम्मीदवार तय करेगा। लेकिन वह नये सामाजिक समीकरण बनाने के लिए कुछ अलग भी कर सकता है। भाजपा पूर्ववर्ती संतुलन के मुताबिक पिछड़े और सवर्ण में एक-एक सीट बांट सकती है।
जदयू के पास ज्यादा मौके
राज्यपाल के जरिये मनोनीत होने वाली 12 सीटें राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर हैं। सत्ता में रहने वाला दल इस विशेषाधिकार का अपने हक में उपयोग करते रहा है। सरकार अपनी पसंद के नेता को इस अधिकार के दम पर उच्च सदन में भेजती रही है। ललन सिंह जदयू के कद्दावर नेता हैं। वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे निकट लोगों में एक हैं। ललन सिंह मुंगेर से सांसद बनने के पहले मनोनीत विधान पार्षद ही थे। रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति पारस 2015 का विधानसभा चुनाव हार गये थे। जुलाई 2017 में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बनायी थी उस समय लोजपा को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था। लोजपा का प्रतिनिधित्व पशुपति पारस ने किया। पारस मंत्री तो बन गये लेकिन उस समय वे किसी सदन के सदस्य नहीं थे। तब नीतीश सरकार ने पारस को मनोनयन के जरिये विधान पार्षद बना दिया था। बाद में पारस ने हाजीपुर से सांसद बनने के बाद विधान परिषद से इस्तीफा दे दिया था। 2020 में भी नीतीश मनोनयन की 12 सीटों पर वैसे नेताओं को ही मौका देंगे जो विधानसभा चुनाव में अपनी जमात का अधिक से अधिक का वोट दिला सकें।
मनोनयन की सीटों से तय होगा नीतीश का रुख
विधान परिषद में जो अभी 12 सीटें रिक्त हुई हैं उन पर 2014 में मनोनयन हुआ था। उस समय नीतीश कुमार की अकेली सरकार थी। वे निर्दलीय और कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रहे थे। नीतीश ने भाजपा को 2013 में सरकार से बाहर कर दिया था। 2014 में नीतीश कुमार ने सभी 12 सीटों पर अपनी पसंद के लोगों को विधान परिषद में भेजा था। अब स्थिति बदली हुई है। नीतीश के साथ भाजपा और लोजपा भी हैं। अब देखना है कि नीतीश किस हद तक गठबंधन धर्म का पालन करते हैं और अपने सहयोगी दलों को कितनी सीटें देते हैं। इसी समय पता चलेगा कि नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव के समय अपने मित्र दलों के साथ कैसा रुख अख्तियार करने वाले हैं।
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