मध्य प्रदेश में मरीज खा रहे "जानलेवा" दावाइयां
भोपाल। देश में स्वास्थ्य सुविधाओं से वैसे भी एक गरीब तबका वंचित है। ऐसे मेें जिनको स्वास्थ्य सुविधा मिल भी रही है तो उनकी सेहत के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है। मध्य प्रदेश से ऐसा मामला आया है कि राज्य के अपना इलाज कराने आ रहे मरीजों को ऐसी दवाइयां लिखी जा रही हैं जिनको लिखे जाने की अनुमति ही नहीं दी गई है। मरीजों ऐसी दवाइयों का सेवन अंजाने मेें करना पड़ रहा है जो अमानक हैं।
मध्य प्रदेश में अमानक स्तर की दवाइयों का विक्रय जारी है और मरीज उनका सेवन किए जा रहे हैं। यह खुलासा सूचना के अधिकार के तहत राज्य सरकार की प्रयोगशाला की जांच रिपोर्ट से सामने आया है। राज्य का स्वास्थ्य महकमा भी सैम्पल जांच में दवाइयों के अमानक होने की पुष्टि कर रही है, मगर कुछ ब्रांडेड कंपनियों पर भ्रम फैलाने का भी आरोप लगा रही है।
अमानक स्वास्थ्य सेवाएं की पोल
राज्य की गड़बड़ सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं किसी से छुपी नहीं है। अब दवाइयों के अमानक होने का मामला सामने आने के बाद सेहत से हो रहे खिलवाड़ की तस्वीर ही उजागर हो गई है। सूचना के अधिकार के तहत पद्माकर त्रिपाठी ने राज्य में उपलब्ध दवाइयों के सैम्पल के संदर्भ में जो जानकारी हासिल की है, वह चौंकाने वाली है। राज्य के खाद्य एवं औषधि विभाग की प्रयोगशाला ने उपलब्ध दवाइयों में 147 सैम्पल अमानक पाए है, इनमें छह बैंडेज (पट्टी) के हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक दवाइयां गुणवत्ता के मामले में ठीक नहीं हैं। यह मरीजों को राहत नहीं दे सकती।
सूचना के अधिकार के तहत दी गई जानकारी में यह नहीं बताया गया है कि यह दवाइयां सरकारी अस्पतालों से वितरित की जा रही हैं, या दुकानों से बिक रही हैं। चिकित्सा जगत से नाता रखने वाले अमानक दवाइयों की उपलब्धता को गंभीर मामला मानते हैं। उनका कहना है कि चाहे दवा अस्पताल से मिल रही हो या दुकान से बिक रही हो, यह तो सरकार की जिम्मेदारी है कि इस तरह की गतिविधियों पर नियंत्रण रखे, क्योिंक यह प्रदेश की जनता की सेहत से जुड़ा मामला जो है।
चिकित्सकों से उठ रहा है विश्वास
चिकित्सक एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष डा. अजय खरे का कहना है कि अमानक दवाइयों का मामला चिकित्सकों के विश्वास से जुड़ा हुआ है। चिकित्सकों को चाहिए कि वे ऐसी दवाइयां मरीजों को लिखें जो गुणवत्ता वाली और मरीज की सेहत में सुधार लाने वाली हो।
राज्य में अमानक दवाइयों की उपलब्धता को लेकर मचे बवाल के बाद राज्य सरकार भी हरकत में आई है। स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि राज्य सरकार की गरीबों को नि:शुल्क दवा उपलब्ध कराने की योजना दीनदयाल दवा वितरण योजना को केंद्र सरकार ने भी सराहा है। इस योजना से हर रोज चार लाख मरीज लाभान्वित हो रहे हैं।
मिश्रा ने माना कि कुछ सैम्पल अमानक पाए गए हैं। जिन पर खाद्य एवं औषधि नियंत्रक के द्वारा कार्रवाई की जाएगाी। उनका कहना है कि कुछ ब्रांडेड कंपनियां राज्य में बट रही जेनरिक दवाइयों को लेकर भ्रम फैला रही हैं, क्योंकि राज्य सरकार जिन कंपनियों से दवा खरीद रही है, वे कीमत के लिहाज से ब्रांडेड कंपनियों से 25 से 75 प्रतिशत सस्ती होती है, मगर गुणवत्ता के मामले में कमतर नहीं हैं।
उनका कहना है कि ब्रांडेड कंपनियों को नुकसान हो रहा है, लिहाजा वे भ्रम फैलाने में लगी हैं। इन कंपनियों को राज्य के कुछ लोगों का साथ मिल रहा है, राज्य सरकार ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं चूकेगी।
सवाल उठ रहा है कि जब राज्य सरकार की प्रयोगशाला ही सैम्पलों को अमानक ठहरा चुकी है, तो अब तक कार्रवाई में हिचकिचाहट क्यों है। दवा चाहे सरकारी अस्पताल से मिल रही हों या बाजार में बिक रही हों, इससे सेहत तो राज्य के नागरिकों की ही बिगड़ेगी। सरकार का काम सिर्फ सफाई देने से नहीं कार्रवाई से नजर आना चाहिए।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।