भाजपा नहीं बदली तो निश्चित तौर पर आयेगी यूपीए 3
बेंगलुरु। भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी अभियान की कमान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंप दी, यह सोच कर कि वो मिशन 2014 को पक्का हासिल कर लेंगे, लेकिन खुद उसी राह पर चल रही है, जिस राह पर 1992 में थी। अयोधा में 84 कोसी परिक्रमा को समर्थन देना भाजपा की सबसे बड़ी भूल साबित हो सकता है। और तो और विहिप का समर्थन कर सोनिया गांधी के यूपीए 3 के सपने को पूरा कर सकती है।
यह बात हम नहीं बल्कि मोदी और मुस्लिम समाज के बीच की पृष्ठभूमि का बदलता हुआ परिवेश कह रहा है। मोदी, मुसलमान और मीडिया विषय पर बेंगलुरु के राष्ट्रोत्थान शारीरिक शिक्षा केंद्र में आयोजित एक परिचर्चा में यह बात सामने निकल कर तब आयी जब समाजसेविका व वरिष्ठ पत्रकार मधु पूर्णिमा किश्वर के साथ बुद्धिजीवियों और युवाओं ने मंथन किया। इस मंथन सभा में गुजरात दंगे से लेकर अब तक के तमाम महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।
सबसे पहले मधु किश्वर ने अपनी बात रखते हुए गुजरात दंगों की उस सच्चाई से परदा उठाया, जिसके बारे में मेन स्ट्रीम मीडिया में कभी चर्चा नहीं हुई। गुजरात दंगों के वक्त देश भर में एक विचारधारा ने जन्म दिया, वो थी कि मोदी मुसलमानों के विरोधी हैं। सच पूछिए तो यह विचारधारा कांग्रेस की देन है, क्योंकि कांग्रेस शुरू से ही मोदी को अपने लिये बड़ा खतरा मानती आयी है। यही नहीं यह विचारधारा गुजरात में ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पायी, क्योंकि ऐसा कुछ नहीं हुआ था, जो मीडिया ने पूरी दुनिया के सामने परोसा।
तथ्यों पर जायें, तो गुजरात दंगे 27 फरवरी 2002 जिस दिन दंगे भड़के थे, उसी दिन मोदी ने केंद्र से सेना की मांग की। यही नहीं उन्होंने राजस्थान के तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के दिग्विजय सिंह और महाराष्ट्र के विलासराव देशमुख को फैक्स के द्वारा पत्र भेज कर तत्काल अतिरिक्त पुलिस बल की मांग की थी। जो दिग्विजय मोदी पर छींटाकशी करने में दो मिनट नहीं लगाते हैं, उन्होंने उस पत्र का जवाब 13 दिन बाद दिया था, यह कहकर कि वो उनकी मदद नहीं कर सकते हैं। जरा सोचिये क्या दिग्विजय सिंह को गुजरात दंगों पर बोलने का अब कोई अधिकार रह जाता है। शायद नहीं।
बात अगर मुसलमानों को मारने की बात है, तो दंगों में मरने वाले हिन्दुओं की संख्या 254 हिन्दू और 790 मुसलमान थे। यह तो सब जानते हैं, लेकिन यह कोई नहीं जानता कि कितने मुसलमानों को मोदी ने अपने निजी प्रयासों से बचाया था। दंगे के वक्त 5000 मुसलमानों को अहमदाबाद की नूरानी मस्जिद में हिन्दुओं ने घेर लिया था, मोदी की एक कॉल पर पुलिस, पीएस व आर्मी के जवान मौके पर पहुंचे और उन्हें वहां से सुरक्षित निकाल लिया। मेहसाना के सरदार पुरा इलाके में 240 मुसलमानों को, पोर और नरदीपुर गांव में 450, संजोली गांव में 200, वडोडरा के फतेहपुरा गांव से 1500, गुलबर्ग सोसाइटी से 150 और कावंत गांव से 3000 मुसलमानों को मोदी ने सुरक्षित बला लिया। यह बात दुनिया चाहे माने या न माने, लेकिन यहां के मुसलमान यह बखूबी जानते हैं।
इसके अलावा बेहद महत्वपूर्ण बात शायद ही कोई जानता है कि गुजरात दंगे के दौरान करीब 6000 हज यात्री गुजरात पहुंचे थे। मोदी ने अपने अधिकारियों को विशेष आदेश देकर कहा था कि छह के छह हजार मुसलमान अपने-अपने घर तक सुरक्षित पहुंचने चाहिये। आपको यकीन नहीं होगा उन सभी हज यात्रियों को गुजरात के अलग-अलग जिले में स्थित उनके घरों तक खुद पुलिस छोड़कर आयी थी।
दंगे के वक्त छोटा उदयपुर के पास एक मदरसा था, जिसमें 400 छात्र पढ़ते थे उन्हें हिन्दू प्रदर्शनकारियों ने घेर लिया। वे सभी मदरसे को आग लगाने जा रहे थे, लेकिन तभी वाजपेयी की कैबिनेट से एक फोन मोदी के पास आया कि उन बच्चों के लिये कुछ करिये। मोदी ने सिर्फ इतना कहा, आप चिंता मत करिये बच्चों को कुछ नहीं होने दूंगा। जब तक वो बच्चे सुरक्षित घर नहीं पहुंचा दिये गये, तब तक मोदी ने पुलिस अधिकारियों के साथ संपर्क नहीं तोड़ा। गुजरात दंगों से अलग हट कर देखें, तो उन्होंने मुसलमानों के उत्थान के लिये कितने काम किये हैं, यह खुद गुजरात के लोग जानते हैं। फिर चाहे रण हो या गांधीनगर, हर जगह मुसलमानों को ऊपर उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। लेकिन यह सभी बातें होने के बावजूद मेन मीडिया इनसे बेखबर रहा।
अब जब देश के लोगों में मोदी पर विश्वास गहरा चुका है, भारतीय जनता पार्टी की लहर उठ चुकी है, तब एकबार फिर से विश्व हिन्दू परिषद के साथ मिलकर अयोध्या का मसला उठाकर हिन्दू-मुसलमान की एकता को चोट पहुंचा कर भाजपा खुद के लिये गड्ढा खोद रही है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा की एक भूल यूपीए को एक बार फिर देश की सत्ता सौंप देगी।