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युग के साथ बदलती गई होली की पिचकारी

By Ians Hindi
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जैसे-जैसे युग बदलजा जा रहा है, वैसे-वैसे होली की पिचकारियों की बनावट भी बदलती जा रही हैं। त्रेता और द्वापर के लोग जहां स्वर्ण और रजत पिचकारियों से होली खेलते थे, वहीं आज के बच्चे प्लास्टिक की पिचकारियों से रंग फेंकते हैं। पर्व तो वही है, सिर्फ पिचकारियों का स्वरूप बदल गया है। धर्म कथाओं में विभिन्न जगह रंग खेलने के दौरान पिचकारी का वर्णन किया गया है। पिचकारी के बिना रंग पर्व अधूरा माना जाता है। वहीं इतिहास में भी राजा-महाराजाओं द्वारा होली के दौरान पिचकारी का इस्तेमाल किए जाने की बात कही गई है।

होली पर विशेष पृष्‍ठ

इसके साथ ही पुरानी फाग गीतों में भी स्वर्ण-रजत पिचकारियों का वर्णन मिलता है। 'केकरा हाथे कनक पिचकारी, केकरा हाथे अबीरा' आदि गीतें इसका प्रमाण हैं। इस बार भी पिचकारियां बाजारों में सज गई हैं। प्लास्टिक की पिचकारियों के अलावा धातु निर्मित पिचकारियां भी हैं लेकिन वे काफी महंगी हैं।

इनमें चीन निर्मित पिचकारियां डिजाइन में आकर्षक होने की वजह से बच्चों की पहली पसंद बन रही हैं। निर्माता भी बच्चों के मनपसंद कार्टून चरित्रों को ध्यान में रखकर प्लास्टिक की पिचकारियां उन्हीं की डिजाइन में बाजार में उतारे हैं।

इस बार 'टॉम एंड जेरी', 'बार्बी' और 'पावर रेंजर' जैसे कार्टून चरित्र पिचकारियों के रूप में बच्चों की होली को यादगार बनाने के लिए बाजार में सज गए हैं तो वहीं चाइना ने प्रेशर वाली पिचकारी, सिर पर टोपी वाली पिचकारी, गंड़ासा के आकार की पिचकारी बाजार में उतारकर वेराइटी का अंबार लगा दिया है। इन पिचकारियों की कीमत बाजार में 10 रुपये से लेकर 400 रुपये तक है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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English summary
The pichkaari of holi always gets new shape every year. Here is the History of pichkaari.
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