भोपाल गैस त्रासदी के आरोपियों को सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस (लीड-1)
सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1996 में दिए गए एक फैसले पर पुनर्विचार के लिए यह याचिका दायर की है। इस फैसले में आरोपियों के अपराध हल्का कर गैर इरादतन हत्या से बदल कर लापरवाही से हुई मौत में बदल दिया गया था। आरोपियों में भारत में यूनियन काबाईड के पूर्व प्रमुख केशव महिंद्रा भी शामिल है।
गैर इरादतन हत्या के मामले में अधिकतम 10 वर्ष के कारावास की सजा का प्रावधान है। लेकिन जिस आरोप के तहत इस वर्ष जून में भोपाल की एक अदालत द्वारा आरोपियों को दोषी ठहराया गया, उसमें अधिकतम दो वर्ष के कारावास की सजा का प्रावधान है।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एस.एच.कपाड़िया, न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति आर.वी.रवींद्रन की खण्डपीठ ने मंगलवार को कहा, "नोटिस जारी किए जाने के तत्काल बाद क्युरटिव याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए।"
यह फैसला 14 साल पहले तत्कालीन प्रधान न्यायधीश ए.एम. अहमदी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनाया था। इस फैसले के बाद सभी सातों आरोपियों के खिलाफ हल्के आरोपों के आधार पर मुकदमा चला।
भोपाल की एक निचली अदालत ने सात जून, 2010 को सभी आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें दो-दो वर्ष कारावास की सजा सुनाई।
दोषी ठहराए जाने और सजा सुनाए जाने के तत्काल बाद सभी को जमानत भी मिल गई। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिका अभी लंबित है।
ज्ञात हो कि 2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से जहरीली गैस, मिथाइल आइसोसायनाइट का रिसाव होने के बाद कम से कम 3,500 लोगों की तत्काल मौत हो गई थी और बाद में एक हजार लोग और मारे गए थे।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।