मोबाइल फ़ोन से स्वास्थ्य पर खतरा?
मोबाइल फ़ोन से लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले कुप्रभाव का पता लगाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा शोध कार्य शुरू किया गया है.
इस शोध के लिए इंग्लैंड के अलावा पाँच यूरोपीय देशों से क़रीब ढाई लाख मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वालों की मदद ली जाएगी.
इस सवाल का सही जवाब तलाशने के लिए शोध को 20 से 30 वर्ष की समय अवधि में पूरा किया जाएगा.
इस विषय पर पहले भी कई बार शोध हो चुका है. अभी तक के शोध से कोई नकारात्मक असर देखने में नहीं आया है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके बाद भी अनिश्चितता बनी हुई है.
अब तक चिंता की जाती रही है कि जो शोध हुए हैं वे इतने कम हैं कि उससे कुछ पता ही नहीं चलता क्योंकि कैंसर के कुछ लक्षणों को पनपने में कई बरस का समय लग जाता है.
अब तक हुए शोधों में कमी यह भी रही है कि शोध में शामिल लोगों से यह याद करने को कहा जाता रहा है कि वो मोबाइल का उपयोग कितना करते रहे हैं.
इसमें ख़तरा है कि लोगों का पूर्वाग्रह भी शामिल हो सकता है.
लेकिन नया शोध अलग है.
इसमें जिन लोगों को शोध में शामिल किया जाएगा, उनसे यह आँकड़ा एकत्रित किया जाएगा कि वास्तव में मोबाइल का उपयोग कितना कर रहे हैं.
इस शोध में वैज्ञानिक विभिन्न बीमारियों को ध्यान में रखकर काम करेंगे, जिसमें मस्तिष्क का कैंसर, स्ट्रोक, हृदय रोग, अल्ज़ाइमर्स और पार्किंसन्स शामिल हैं.
इस शोध का नाम ‘कॉसमॉस’ रखा गया है जिसे पाँच साल के लिए ब्रिटेन की एक मोबाइल कंपनी और हेल्थ रिसर्च प्रोग्राम नामक संस्था से आर्थिक मदद मिल रही है.
शोध के एक जाँचकर्ता डॉक्टर माइरिली टोलेडानो का कहना है,“हम इसकी भी जाँच करेंगे कि मोबाइल की वजह से सिर में दर्द, नींद न आने और अवसाद जैसे लक्षण बढ़ तो नहीं रहे हैं.”
उनका कहना है कि इसमें लोगों के मोबाइल के उपयोग की अवधि का आकलन किया जाएगा न कि कॉल की संख्या का. जो लोग इसमें शामिल होंगे उन्हें एक प्रश्नावली का उत्तर देने के बाद यह अनुमति देनी होगी कि हम उनके मोबाइल के उपयोग के आँकड़ों का उपयोग कर लें.
इस शोध के लिए ब्रिटेन, फ़िनलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और नीदरलैंड्स से लोगों का चयन किया जाएगा. लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि बाद में विकासशील देशों से भी लोगों को इसमें शामिल किया जाएगा.
पूरी दुनिया में इस समय क़रीब 60 करोड़ लोगों के पास मोबाइल फ़ोन है और इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है.