वेदांता के खनन से उड़ीसा में स्वास्थ्य संबंधी खतरा : एमनेस्टी (लीड-1)
यद्यपि, वेदांता के एक अधिकारी ने इस रिपोर्ट के निष्कर्षो का खंडन करते हुए कहा कि इसकी कई बातें पुराने दस्तावेजों पर आधारित हैं और रिपोर्ट तैयार करते समय कई सामग्रियों व प्रासंगिक तथ्यों को नजरंदाज किया गया।
दक्षिण एशिया में एमनेस्टी इंटरनेशनल के शोधकर्ता रमेश गोपालकृष्णन ने रिपोर्ट में कहा, "लोग यहां प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं और इलाके में पानी के मुख्य स्रोत नदी के जल का इस्तेमाल करने से डरने लगे हैं। "
उन्होंने कहा है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस संयंत्र से प्रभावित लोगों को भ्रमित किया गया। स्थानीय लोगों में जनजाति समुदाय, दलित और समाज के अन्य वंचित वर्ग हैं, जो बताते हैं कि उनसे प्रशासन ने कहा था कि रिफाइनरी से यह इलाका मुंबई या दुबई की तरह विकसित हो जाएगा।
गोपालकृष्णन ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, उड़ीसा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लांजीगढ़ में वेदांता एल्युमिनियम रिफाइनरी से होने वाले वायु और जल प्रदूषण से संबंधित जानकारियों को इकट्ठा कर चुका है।
एक स्थानीय जनजाति महिला के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि वह पहले नदी में नहाती थी लेकिन अब वह अपने बच्चों को वहां ले जाने से डरती है क्योंकि उसके दोनों बच्चों के शरीर पर चकते और फफोले पड़ गए थे।
गोपालकृष्णन के मुताबिक, इस खतरे के बावजूद रिफाइनरी के छह गुने विस्तार की योजना है।
उन्होंने कहा कि उड़ीसा खनन निगम और वेदांता की खनन संबंधी दूसरी इकाई के पास की नियामगिरी पहाड़ियों में बाक्साइट के खनन की भी योजना है। इससे डोंगरिया खोंड जनजाति का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
एमनेस्टी की उप कार्यक्रम निदेशक मधु मल्होत्रा ने आईएएनएस से कहा, "हमने वेदांता के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को इस मुद्दे पर पत्र लिखा था लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।