खुद को सिर्फ साहित्यवादी मानते हैं गोविन्द मिश्र
पिछले पांच दशक से साहित्य जगत में सक्रिय गोविंद मिश्र ने साहित्य अकादमी सम्मान के लिए नामांकित किए जाने के बाद आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि अन्य व्यक्तियों की तुलना में साहित्यकार हमेशा मूल्यों को सबसे अधिक तवज्जो देता है।
अनेक उपन्यास, कहानियां, यात्रा वृतान्त, साहित्यिक निबंध और बाल साहित्य लिखने वाले गोविन्द मिश्र साहित्य और भाषा में गिरावट आने की बात को मानने तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि जब विश्वविद्यालय,अध्यापक, नेता और प्रशाासक वैसे नहीं रहे है जैसे पांच दशक पहले थे तो साहित्य की दुनिया इस बदलाव से कैसे अछूती रह सकती है।
उन्होंने कहा कि पुराने साहित्यकारों में साहित्य के प्रति प्रतिबद्घता थी और वे दूरदर्शी होते थे लेकिन आज आज दिखावा, तड़क भड़क और लीपा पोती बढ़ गई है। यही वजह है कि साहित्यकार भी चमत्कृत करने वाली भाषा और चौंकाने वाली थीम का सहारा लेने लगे हैं।
व्यास सम्मान, सुब्रह्मण्यम भारतीय सम्मान, प्रेमचन्द सम्मान आदि से सम्मानित मिश्र का मानना है कि साहित्य, समाज और व्यक्ति के स्तर पर अलग अलग प्रभाव डालता है। उन्होंने कहा कि हम जिन्दगी जीते तो हैं मगर उसे देख नही पाते। उसी को देखने का जरिया होता है साहित्य। मिश्र ने माना कि मध्यवर्ग की पढ़ने की आदत कम हुई है जिससे उसके जीवन में एक खोखलापन आया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही स्थितियां बदलेंगी और लोगों में फिर से पढ़ने लिखने की आदतें विकसित होंगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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