बस्तर में नही है दशहरे पर रावण वध की परंपरा
जगदलपुर, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)। विजयादशमी पर्व का आशय है बुराई पर अच्छाई की जीत क्योंकि इस दिन भगवान राम ने आतताई रावण का वध किया था। इस मौके पर देश भर में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है, मगर छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में इस पर्व का राम-रावण युद्ध से कोई सरोकार नहीं।
यहां तो इस दिन देवी दन्तेश्वरी के छत्र को दुमंजिला भव्य रथ पर रखकर निकाला जाता है और सभी वर्ग के लोग उस रथ को खींचकर पूजा अर्चना करते हैं।
बस्तर का दशहरा सबसे लंबी अवधि का होता है। इसकी तैयारियां तीन माह पहले से ही शुरू हो जाती हैं। यह सिलसिला 500 वषों से चला आ रहा है। मान्यता है कि बस्तर के राजवंश काकतीय की इष्ट देवी मां दन्तेश्वरी है। इन्हीं की विशेष पूजा अर्चना के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इसके लिए वर्षा काल की हरेली अमावस्या से ही तैयारियों का दौर शुरू हो जाता है। इस दिन रथ निर्माण के लिए पहली लकड़ी काटकर लाई जाती है।
परंपरा के मुताबिक बिलौरी गांव के लोग सिरहासार भवन में स्तंभ रोहण करते हैं। उसके बाद आसपास के गांव के लोग लकड़ियां लाकर रथ निर्माण को गति देते हैं और विभिन्न रस्मों को पूरा करने की प्रक्रिया चलती रहती है जो बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में मूर्त रूप लेती है।
किंवदंती के मुताबिक काकतीय राजवंश के प्रतिनिधि इस रथ पर सवार होकर प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते थे। राजशाही परंपरा के खत्म होने के बाद दशहरा उसी तरह से मनाया जाता है मगर अब रथ पर कोई राजा नहीं बल्कि देवी का छत्र रखा होता है।
बस्तर के दशहरे के लिए बनाए जाने वाले रथ में आदिवासियों की काष्ठ कला का अद्भुत प्रदर्शन होता है साथ ही वह इस इलाके की छुपी सहकारिता के भाव को भी जगाने का काम करती है।
वर्तमान में रथ का निर्माण अंतिम चरण में है। विजयादशमी के दिन नवनिर्मित रथ को यहां के लोग खींचकर माता दंतेश्वरी के छत्र की पूजा अर्चना करेंगे।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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