जीवन में भारी सफलता दिलाता है राहु, अगर कुंडली में बनाता है ऐसे योग
Positive Yogas of Rahu in horoscope gives success in life: राहु के बारे में माना जाता है कि वह कुंडली के जिस भाव में बैठता है या जिस ग्रह के साथ बैठता है, उसे खराब कर देता है। हालांकि, यह बात पूरी तरह सही नहीं है। हमेशा वक्री स्थिति में रहने वाला राहु अगर कुंडली में सही स्थिति में है या योगकारक है तो जातक के जीवन को नई ऊंचाई पर ले जाने में अहम भूमिका निभाता है। साथ ही जीवन की सभी बाधाओं को दूर कर देता है।
हम यहां राहु से बनने वाले ऐसे ही कुछ योगों के बारे में बता रहे हैं...
अष्ट लक्ष्मी योग: जब राहु कुंडली के छठे भाव में और गुरु दशम भाव में हो तो अष्ट लक्ष्मी योग होता है। ऐसा राहु अपने पाप प्रभावों को त्यागकर गुरु के समान फल देने लगता है। ऐसा व्यक्ति अत्यधिक आस्थावान और ईश्वर के प्रति समर्पित होता है। इन्हें जीवन में यश और सम्मान हासिल होता है। ऐसा व्यक्ति कभी धन के अभाव में नहीं रहता है।
परिभाषा योग: अगर राहु लग्न में या 3,6,11 में से किसी भी स्थान में हो तो परिभाषा योग का निर्माण होता है। ऐसे राहु पर शुभ ग्रह की दृष्टि होने से यह शुभ फलदायक होता है। जिन जातकों की कुंडली में परिभाषा योग उपस्थित होता है, उन्हें भी राहु के नकारात्मक प्रभावों का सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे लोगों को जीवन भर आर्थिक लाभ मिलता रहता है। ऐसे लोगों के काम भी आसानी से बनते जाते हैं।
लग्नकारक योग: लग्नकारक योग राहु द्वारा निर्मित शुभ योगों में से एक है। यह योग मेष, वृष और कर्क लग्न की कुंडलियों में बनता है, जब राहु दूसरे, नौवें या 10वें भाव में नहीं होता है। ऐसे जातकों को राहु शुभ फल देता है, उन्हें संकटपूर्ण स्थितियों का सामना ना के बराबर करना पड़ता है। इन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है और जीवन भी सुखमय होता है।
कब योगकारक होंगे राहु: राहु जिस राशि में स्थित हैं, अगर उसका स्वामी योगकारक है तो राहु भी योगकारक हो जाएगा। यदि वह योगकारक नहीं है तो राहु भी योगकारक नहीं होगा। स्पष्ट है कि राहु यदि शुभ भाव में स्थित हैं तो शुभ फल देंगे और अशुभ भाव में होने पर अशुभ फल देंगे। द्वितीय, द्वादश या केंद्र (4, 7, 10) भाव में राहु सम होंगे। त्रिकोण और लग्न में राहु शुभ फल देंगे।
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