Chhath Pooja 2017: छठ पर्व की कथा एवं पूजन विधि
लखनऊ। छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। यह त्यौहार पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश व नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। यह पर्व विशेष कर सन्तान की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। वैसे तो सिर्फ उगते सूरज को ही अघ्र्य दिया जाता है किन्तु इस पर्व में डूबते हुये सूर्यदेव की भी आराधना की जाती है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है। यह पर्व लगातार चार दिनों तक मनाया जाता है। इस बार छठ पर्व 24 अक्टूबर से लेकर 26 अक्टूबर तक मनाया जायेगा।
छठ पूजा के चार दिन
- मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017, स्नान और खाने का दिन है।
- बुधवार, 25 अक्टूबर , 2017 उपवास का दिन है जो 36 घंटे के उपवास के बाद सूर्यास्त के बाद समाप्त हो जाता है।
- गुरुवार, 26 अक्टूबर , 2017 संध्या अर्घ्य का दिन है जो की संध्या पूजन के रूप में जाना जाता।
- शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017 सूर्योदय अर्घ्य और पारान या उपवास के खोलने का दिन है।
छठ पूजा कथा
प्राचीन समय की बात है। एक प्रियब्रत नाम का राजा था और उसकी पत्नी का नाम मालिनी था। वे दोनों बहुत सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते थे किन्तु इनके कोई सन्तान नहीं थी। जिस कारण दोनों बहुत दुःखी रहते थ। राजा और रानी ने महर्षि कश्यप की सहायता से सन्तान प्राप्ति के के लिये बहुत बडा यज्ञ किया। यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी। किन्तु 9 महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। राजा बहुत दुखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।
सन्तान अवश्य प्राप्त करता है
जब राजा आत्महत्या करने जा रहा था तो उसी दौरान राजा के सामने एक देवी प्रकट हुयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी हूँ और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है। राजा प्रियब्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद स्वरुप सुन्दर और प्यारी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।
पहला दिन-नहाय खाय
पहला
दिन
यानि
24
अक्टूबर
कार्तिक
शुक्ल
चतुर्थी
नहाय-खाय
के
रूप
में
मनाया
जाता
है।
सबसे
पहले
स्नान-ध्यान
करके
शुद्ध
शाकाहारी
भोजन
देशी
घी
व
सेंधा
नमक
से
बना
हुआ
अरवा
चावल
और
कददू
की
सब्जी
को
प्रसाद
के
रूप
में
ग्रहण
किया
जाता
है।
दूसरा
दिन-लोहंडा
और
खरना
दूसरे
दिन
25
अक्टूबर
को
व्रत
आरंभ
किया
जायेगा।
कार्तिक
शुक्ल
पंचमी
को
व्रत
रखने
वाले
जातक
उपवास
रखने
के
बाद
शाम
को
भोजन
ग्रहण
करते
है।
इसे
खरना
कहा
जाता
है।
प्रसाद
के
रूप
में
गन्ने
के
रस
में
बने
हुये
चावल
की
खीर
के
साथ
दूध,
चावल
का
पिटठा
और
घी
चुपड़ी
रोटी
बनाई
जाती
है।
इसमें
नमक
व
चीनी
का
उपयोग
नहीं
किया
जाता
है।
ठेकुआ और चावल के लडडू
तीसरे
दिन
26
अक्टूबर
कार्तिक
शुक्ल
षष्ठी
को
दिन
में
छठ
प्रसाद
बनाया
जायेगा।
प्रसाद
के
रूप
में
ठेकुआ
और
चावल
के
लडडू,
जिसे
लडुआ
भी
कहा
जाता
है।
शाम
को
बाॅस
की
टोकरी
में
अघ्र्य
का
सूप
सजाया
जाता
है
और
व्रत
के
साथ
परिवार
के
लोग
अस्ताचलगामी
सूर्य
को
जल
में
दूध
मिश्रित
अघ्र्य
अर्पण
करते
है।
चौथे
दिन-उषा
अघ्र्य
चैथे
दिन
27
अक्टूबर
कार्तिक
शुक्ल
सप्तमी
के
दिन
सुबह
के
समय
उगते
हुये
सूर्य
को
अघ्र्य
दिया
जायेगा।
शाम
को
सूर्य
को
अघ्र्य
देने
के
पश्चात
दूध
का
शरबत
पीकर
व्रत
तोड़ते
है।
इस
पूजा
में
पवित्रता
का
विशेष
ध्यान
रखा
जाता
है।
इन
चार
दिनों
में
घर
के
अन्दर
लहसुन-प्याज
का
प्रयोग
वर्जित
होता
है।
छठ का महात्म्य
उर्जा के अक्षय स्रोत का भण्डार रखने वाले सूर्य देव की उपासना करने से अनेक प्रकार के रोगों का शमन होता है एंव पुत्र की कामना रखने वाले जातकों को विशेष फल मिलता है। भगवान सूर्य वास्तव में एक ऐसे प्रत्यक्ष देवता है, जिनके द्वारा पूरी प्रकृति का जीवन चक्र गतिमाना बना रहता है। पेड़-पौधे, इन्सान, जानवर, औषधियां व खाने वाली हर एक वस्तु सूर्य की किरणों के बगैर जीवित नहीं रह सकती है। इसलिए हम सभी को सूर्य देव की नित्य आराधना करके अघ्र्य अर्पण करना चाहिए।
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