Biggest Supermoon 2022 : 'ब्लडमून' के बाद खत्म हो जाएगी दुनिया? जानिए 'सुपरमून' से जुड़ी भ्रांतियां
नई दिल्ली, 13 जुलाई। आज शाम पूरा ब्रह्मांड एक अनोखी घटना का गवाह बनेगा क्योंकि गुरु पूर्णिमा के खास पर्व पर चंदा मामा अपनी बहन पृथ्वी के काफी निकट होंगे, जिसकी वजह से इनका आकार काफी बड़ा दिखाई देगा और साथ ही ये काफी चमकीले भी नजर आएंगे, यानी कि आज लोगों को 'सुपरमून' या 'ब्लड मून' देखने को मिलेगा। इस खगोलीय घटना को लेकर जहां वैज्ञानिक काफी उत्साहित हैं वहीं दूसरी ओर इस घटना को लेकर कुछ भ्रांतियां भी हैं, जिसके कारण कुछ लोग इस घटना को अच्छा नहीं मानते हैं।
'सुपर ब्लड मून' प्रलय की निशानी है?
दरअसल कुछ लोगों का मानना है कि 'सुपर ब्लड मून' प्रलय की निशानी है और इसका होना अशुभ होता है। चंद्रमा शांति और शीतलता का प्रतीक माना जाता है और इसलिए इसका रंग सफेद होता है लेकिन 'सुपरमून' के वक्त इसका रंग लाल हो जाता है जो कि गुस्से का प्रतीक है और ये गुस्सा ये बताता है कि अब संसार में प्रलय आने वाली है, दुनिया खत्म हो सकती है। विश्व पर प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूकंप या सूखा आएंगे और दुनिया नष्ट हो जाएगी।
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चंद्रमा का लाल होना गुस्से की निशानी!
तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि हमने प्रकृति को नष्ट किया है, इसलिए अब प्रकृति उन्हें खत्म करेगी, चंद्रमा का लाल होने का मतलब लोगों को दंडित करना है।
जगुआर का हमला चांद पर!
अमेरिकी क्षेत्र में प्राचीन समय में चांद के रंग बदलने को जगुआर के हमले से जोड़ा जाता था। आदि लोगों को मानना था कि जगुआर ने चांद पर हमला किया और अब इसके बाद वो पृथ्वी पर हमला करेगा। इसलिए कुछ प्राचीन किताबों में लिखा है कि जब 'ब्लड मून' की घटना होती थी उस रात हाथ में भाले लेकर जागते थे और कुत्ते भौंकते रहते थे ,जिससे जगुआर भाग जाए।
चांद चोटिल हो जाता है
तो वहीं अफ्रीका के टोगो और बेनिन में बाटामालिबा के लोग मानते थे कि सूरज और चांद के बीच जब झगड़ा होता है तो चांद चोटिल हो जाता है और इसी कारण उसका रंग लाल हो जाता है। इसलिए इस दिन वहां के प्राचिन लोग घर में दीए जलाकर माफी दिवस के रूप में सेलिब्रेट करते थे और अपने पुराने गिले-शिकवे दूर कर देते थे। उनका मानना था कि झगड़े से अगर चांद लहू-लुहान हो सकता है तो वो तो आम लोग हैं, इसलिए लोगों के बीच में लड़ाई-झगड़ा नहीं होना चाहिए बल्कि प्रेम और दोस्ती होनी चाहिए।
किताब ‘फोर ब्लड मून्स'
जबकि मौजूदा दौर में 'ब्लड मून' शब्द को लोकप्रियता 2013 में जॉन हेग की किताब 'फोर ब्लड मून्स' से मिली। जिसके बाद ये शब्द आम लोगों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गया।
वैज्ञानिकों ने किया सारी बातों से इंकार
हालांकि उपरो्क्त लिखी सारी बातों को स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं और वैज्ञानिकगण सिरे से इसे खारिज करते हैं। उनका मानना है कि किसी भी खगोलीय घटना को शुभ या अशुभ से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। दरअसल चंद्रमा, पृथ्वी के चारों ओर घूमता है और एक दिन जब वो चक्कर लगाते-लगाते अर्थ के काफी निकट आ जाता है तो उसका आकार काफी बड़ा दिखता है, जिसे कि 'सूपरमून' कहते हैं।
इस वजह से 'ब्लड मून' कहलाता है चांद
अब चूंकि चंद्रमा जैसे ही पथ्वी के ठीक पीछे आता है तो उसका रंग सुनहरा या गहरा लाल हो जाता है। क्योंकि उस तक केवल पृथ्वी के वायुमंडल से ही सूर्य की रोशनी पहुंचती है। इस वजह से वो 'ब्लड मून' कहलाता है।
Biggest Supermoon दिखेगा
मालूम हो कि 13 जुलाई को दिखने वाला चांद का आकार सबसे बड़ा होगा इसलिए इसे Super BLoodmoon कहा जा रहा है। गौरतलब है कि धरती से चांद की दूरी 3 लाख 57 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है। 13 जुलाई की रात 12:07 बजे लोग ब्लडमून का दीदार कर पाएंगे।