फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री की फिल्म The Kashmir Files ने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रच दिया है लेकिन सोशल मीडिया पर इसे लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है।
फिल्म पर आधा सच दिखाने का और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के आरोप लग रहे हैं।
1990 के दौरान कश्मीर से बेघर हुए कश्मीरी पंडितों के साथ घिनौनी हरकतें हुई थीं और रातों-रात उन्हें घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया था।
कश्मीरी पंडितों को बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया , बहन- बेटियों के साथ बलात्कार हुए उन्हें जिंदा जलाया गया।
आतंकवादियों और कट्टरपंथियों ने करीब 20 हजार कश्मीरी पंडितों के घरों को फूंक दिया था और 103 मंदिरों को तहस-नहस कर दिया गया था।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 1990 में कश्मीर में 75,343 हिंदू परिवार थे।
1990 और 1992 के बीच 70,000 से ज्यादा परिवारों को पलायन करना पड़ा।
पिछले 32 सालों के दौरान कश्मीर में 800 हिंदू परिवार बचे हैं। जिनके बारे में कश्मीर के पूर्व सीएम फारुक अब्दुल्ला ने हाल ही में बयान भी दिया था।
जिस समय कश्मीर में नफरत का गंदा खेल खेला जा रहा था, उस वक्त घाटी में केवल एक ही नारा गूंजता था 'काफिरों को मारो, हमें कश्मीर चाहिए पंडित महिलाओं के साथ ना कि पंडित पुरुषों के साथ, यहां सिर्फ निजामे मुस्तफा चलेगा'
फारूक अब्दुल्ला 1987 से 1990 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे।दो दिसंबर 1989 को वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी और 19 जनवरी 1990 को जगमोहन को कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया।
14 सितंबर 1989 को भाजपा नेता टीका लाल टपलू , जो कि पहली कश्मीरी पंडित की हत्या थी। आतंकवादी चाहते थे कि कश्मीर में रहने वाले सभी पंडित मुस्लिम धर्म को अपना लें।
जगमोहन को राज्यपाल नियुक्त होने के एक दिन बाद ही 20 जनवरी 1990 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था।
इस नरसंहार के 32 साल बाद अपने ऊपर उंगली उठने पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि सारी बातों के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं।इसकी जांच होनी चाहिए और अगर मैं दोषी हूं तो मुझे फांसी पर लटका दो।