Sawan 2020: सावन में दो बार शनि प्रदोष का संयोग, शिव दूर करेंगे शनि से जुड़े दोष
नई दिल्ली। भगवान शिव की पूजा शनि की पीड़ा से मुक्ति दिलाने वाली होती है और जब भगवान शिव की सबसे प्रिय तिथि प्रदोष (त्रयोदशी) शनिवार को आ जाए तो यह दिन और भी विशेष हो जाता है। इसके साथ यदि पवित्र श्रावण माह का संयोग बन जाए तो फिर सोने पे सुहागा जैसी स्थिति हो जाती है। इस बार वर्ष 2020 के श्रावण माह के दोनों प्रदोष के दिन शनिवार का संयोग बन रहा है।
शिव दूर करेंगे शनि से जुड़े दोष
अनेकों वर्षों में ऐसा संयोग आता है जब श्रावण माह, प्रदोष तिथि और शनिवार का संयोग बने और वह भी एक ही माह में दो बार। तो यदि आप भी किसी न किसी रूप में शनि की पीड़ा भोग रहे हैं। आपकी जन्मकुंडली में शनि खराब स्थिति में है। शनि की महादशी, अंतर्दशा, शनि की साढ़ेसाती या शनि का लघु कल्याणी ढैया चल रहा है तो 18 जुलाई और 1 अगस्त को आ रहा शनि प्रदोष व्रत जरूर करें और शनि की पीड़ा से मुक्ति पाएं।
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कैसे करें शनि प्रदोष व्रत की पूजा
शनि प्रदोष के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठ जाएं। स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद अपनी किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत का संकल्प लेकर भगवान शिव और उनके पूरे परिवार का पूजन करें। दिनभर निराहर रहें या फलाहार करें। शाम को प्रदोष काल में पूजा करें। प्रदोषकाल सूर्यास्त से एक घंटा पहले से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक का समय होता है। इस प्रदोष काल में पुन: स्नान करें। इसके बाद सर्वप्रथम पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें और भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर को एक चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद भगवान शिव का पंचामृत और फिर गंगाजल से अभिषेक करें। उन्हें पुष्प, बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, सफेद चंदन, गाय का दूध आदि अर्पित करें। इस दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। शिव चालीसा का पाठ करें और अंत में भगवान शिव की आरती करें। क्षमापना करें। प्रसाद वितरित करें।
शनि प्रदोष व्रत की कथा
किसी समय एक नगर में एक धनी सेठ रहता था। कारोबार से लेकर व्यवहार तक में सेठ का आचरण अच्छा था। वह दयालु प्रवृति का था। धर्म-कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेता था। उसकी पत्नी भी उसी की तरह धर्मात्मा थी, लेकिन उस दंपती की कोई संतान नहीं थी, जिससे वह भीतर ही भीतर बहुत दुखी रहते थे। एक बार इसी दुख से पीड़ित दंपती ने तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। दोनों गांव की सीमा से बाहर निकले ही थे कि मार्ग में एक बहुत बड़े और प्राचीन बरगद के वृक्ष के नीचे एक साधु को समाधि में लीन देखा दोनों के मन में साधु का आशीर्वाद पाने की कामना जाग उठी और साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए। धीरे-धीरे समय ढलता गया। पूरा दिन और पूरी रात गुजर गई पर दोनों यथावत हाथ जोड़े बैठे रहे। प्रात:काल जब साधु समाधि से उठे और आंखें खोली तो दंपती को देखकर मुस्कुराने लगे और बोले तुम्हारी पीड़ा को मैंने जान लिया है। तुम एक वर्ष तक शनिवार के दिन आने वाली त्रयोदशी का उपवास रखो और शिवजी का पूजन करो, तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। तीर्थ यात्रा से लौटने पर सेठ दंपती ने साधु की बताई विधि अनुसार शनि प्रदोष व्रत करना शुरू किया। जिसके प्रताप से सेठानी की गोद हरी हो गई और समय आने पर सेठानी ने एक सुंदर संतान को जन्म दिया।
शनि प्रदोष व्रत के लाभ
- सुख, संपत्ति, सौभाग्य, धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- उत्तम संतान सुख की कामना से नियमपूर्वक व्रत किया जाए तो इच्छा पूरी होती है।
- शनि पीड़ा की शांति के उद्देश्य से किया जाए तो शनि की शांति होती है।
- कुंडली में बुरे प्रभाव दे रहे शनि की शांति होती है।
- इस दिन पीपल के वृक्ष में सुबह मीठा दूध अर्पित करने और सायंकाल के समय सरसो के तेल का दीपक लगाने से शनि के दोष दूर होते हैं।
- शनि प्रदोष के दिन कौढ़ियों, नेत्रहीन और भिखारियों को भोजन करवाने से शिव और शनि दोनों प्रसन्न् होते हैं।
- इस दिन शिवजी का अभिषेक काले तिल मिश्रित दूध से करने से पितरों की शांति होती है।
- शनि प्रदोष के दिन चावल का दान करने से स्वर्ण और चांदी के भंडार भर जाते हैं।
- कालसर्प दोष की शांति के लिए शनि प्रदोष के दिन शिवजी की जलाधारी पर अष्टधातु का नाग लगवाएं।
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