Navratri 2019: क्यों धरती पर प्रकट हुई थीं देवी 'योगमाया'?
नई दिल्ली। वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाइसवें युग में देवी के जिस रूप का अवतरण हुआ, वे थीं योगमाया। मां योगमाया उन्हीं मां चामुण्डा का पुनरागमन थीं, जिन्होंने दैत्यराज शुंभ-निशुंभ का वध कर देवताओं को त्राण से मुक्ति दिलाई थी।
आज जानते हैं इस काल में देवी के प्राकट्य की कथा
पुराणों के अनुसार द्वापर काल में दैत्यराज कंस का वर्चस्व था। कंस के लिए आकाशवाणी हुई थी कि उसकी प्रिय बहन देवकी का आठवां पुत्र ही उसका काल होगा। इस तरह की भविष्यवाणी को जड़ से नष्ट कर देने के लिए कंस ने अपने जीजा और बहन को कारावास में बंदी बना लिया था। इस क्रम में वह अपनी बहन के सात बच्चों को मार चुका था। आठवीं संतान के रूप में कृष्ण भगवान अवतरित होने को थे। जिस समय मथुरा के कारावास में देवकी के गर्भ से श्री कृष्ण का जन्म हुआ, ठीक उसी समय गोकुल गांव में नंद बाबा के घर पर एक बालिका ने जन्म लिया। वासुदेव ने सद्यःजात पुत्र को नंद की पुत्री से बदल लाए। इधर जब द्वारपाल ने बच्चे के रोने का स्वर सुना और कंस को देवकी की आठवीं संतान के पैदा होने की सूचना दी। कंस तुरंत आया और देवकी की गोद से बच्ची को छीनकर जमीन पर पटक दिया। यही कन्या देवी योगमाया थीं। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि कंस के पटकने के बाद यह बच्ची धरती पर ना गिरकर सीधे आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर लिया।
सीख
स्त्री हर स्वरूप में पुरुष की सहायक रही है। पुरुषों या यूं कहें कि सामाजिक मूल्यों पर, नैतिकता पर जब-जब संकट आया है। स्त्री स्वरूप ने ही रक्षा की है।

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