बोधिसत्व की प्रेम कविताएं
बो दूँ कविता
मैं
चाहता
हूँ
कि
तुम
मुझे
ले
लो
अपने
भीतर
मैं
ठंडा
हो
जाऊँ
और
तुम्हें
दे
दूँ
अपनी
सारी
ऊर्जा
तुम
मुजे
कुछ
दो
या
न
दो
युद्ध
का
आभास
दो
अपने
नाखून
अपने
दाँत
धँसा
दो
मुझमें
छोड़
दो
अपनी
साँस
मेरे
भीतर,
तुम
मुझे
तापो
तुम
मुझे
छुओ,
इतनी
छूट
दो
कि
तुम्हारे
बालों
में
अँगुलियाँ
फेर
सकूँ
तोड़
सकूँ
तुम्हारी
अँगुलियाँ
नाप
सकूँ
तुम्हारी
पीठ,
तुम
मुझे
कुछ
पल
कुछ
दिन
की
मुहलत
दो
मैं
तुम्हारे
खेतों
में
बो
दूँ
कविता
और
खो
जाऊँ
तुम्हारे
जंगल
में.
आएगा वह दिन
आएगा
वह
दिन
भी
जब
हम
एक
ही
चूल्हे
से
आग
तापेंगे.
आएगा
वह
दिन
भी
जब
मेरा
बुखार
उतरता-चढ़ता
रहेगा
और
तुम
छटपटाती
रहोगी
रात
भर.
अभी
यह
पृथ्वी
हमारी
तरह
युवा
है
अभी
यह
सूर्य
महज
तेईस-चौबीस
साल
का
है
हमारी
ही
तरह,
इकतीस
दिसंबर
की
गुनगुनी
धूप
की
तरह
देर-सबेरे
आएगा
वह
दिन
भी
जब
किलकारियों
से
भरा
हमारा
घर
होगा
कहीं.