मैं मुंबई क्यों छोड़ूं?
जो लोग मुंबई को अपना कहने का दंभ दिखा रहे हों...वो सुन लें... कभी भी अगर बीमार न रहा होऊँ तो 15 से 17 घंटे तक काम करता हूँ...इतनी ही मेहनत हर उत्तर भारतीय यहाँ करता है...वे या मैं किसी भी राज या नाराज ठाकरे या उनके मनसे के किसी सिपाही से कम महाराष्ट्र या मुंबई को नहीं चाहते हैं... अगर उनके पास कोई राज्य भक्ति को मापने का पैमाना हो तो वे नाप लें अगर उनसे कम राज्य भक्त निकला तो खुशी से चला मुंबई से बाहर चला जाऊँगा....
लेकिन अगर मेरे मन में कोई खोट नहीं है और मैं एक अच्छे शहरी की तरह मुंबई को अपना मानता हूँ तो मैं अपनी हिफाजत के लिए गोलबंद होने की आजादी रखता हूँ....अगर हमें खतरा लगा तो बाकी भी खतरे में ही रहेंगे...
क्योंकि तोड़- फोड़ के लिए बहुत कम हिम्मत की जरूरत होती है....लूट और आगजनी से बड़ी कायरता कुछ नहीं हो सकती....रास्ते में जा रहे या किसी चौराहे पर किसी टैक्सी वाले को उतार कर पीटना और उसके रोजीके साधन को तोड़ देना तो और भी आसान है....
मैं यह सब कायरता भरा कृत्य करने के लिए गोलबंद नहीं होना चाहूँगा बल्कि मैं ऐसे लोग का मुँह तोड़ने के लिए उठने की बात करूँगा जो हमें यहाँ से हटाने की सोच रहे हैं....
मेरा दृढ़ मत है कि उत्तर भारत के ऐसे लोगों को आज नहीं तो कल एक साथ आना होगा .....उत्तर भारतीयों को एक उत्तर भारतीयों को सुरक्षा देने वाली मनसे के गुंड़ो को मुहतोड़ उत्तर देने वाली उत्तर सेना बनाने के वारे में सोचना ही पड़ेगा....
जो
लोग
आज
भी
मुंबई
में
अपनी
जातियों
का
संघ
बना
कर
जी
रहे
हैं....मैं
उन
तमाम
जातियों
को
अलग-अलग
नहीं
गिनाना
चाहूँगा....उत्तर
भारत
से
बहुत
दूर
आ
कर
भी
आज
भी
बड़े
संकीर्ण
तरीके
से
अपने
में
ही
सिमटे
हुए
लोगों
से
मैं
कहना
चाहूँगा
कि
...
आज
जरूरत
है
सारे
उत्तर
भारतीयों
को
एक
साथ
आने
की
जिन्हें
यहाँ
भैया
कह
कर
खदेड़ा
जा
रहा
है....
उनमें
अमिताभ
बच्चन
भी
हैं
जो
कि
अभिनय
करते
हैं...और
शत्रुघन
सिन्हा
भी
उनमें
हसन
कमाल
भी
हैं...जो
कि
लिखते
हैं...और
निरहू
यादव
भी
जो
कि
सब
कुछ
करते
हैं.........
उनमें
राम
जतन
पाल
भी
हैं
जो
किताब
बेंचते
हैं
और
सुंदर
लाल
भी
जो
कि
कारपेंटर
हैं...
जिनका
दावा
है
कि
हम
काम
न
करें
तो
मुंबई
के
आधे
घर
बिना
फर्नीचर
के
रह
जाएँ......
तो
आज
नही
तो
कल
होगा.....
संसाधनों
के
लिए
दंगल
होगा....
और इसके लिए तैयार रहने को मैं कायरता नहीं मानता। ऐसा मैं अकेला ही नहीं सोच रहा ऐसे लाखों लोग हैं जो अपनी मुंबई को छोड़ने के बदले लड़ कर मरना बेहतर समझेंगे.
बोधिसत्व की विनय पत्रिका से